सोमवार, 8 मार्च 2021

डॉक्टर हाथी की ज़िन्दगी और ज़िंदादिली

(यह लेख मूल रूप से कवि कुमार आज़ाद के देहावसान के उपरांत 13 जुलाई, 2018 को प्रकाशित हुआ था)

गुज़री नौ जुलाई को जब मैं सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित एक बहुत पुराने हिन्दी उपन्यास नौ जुलाई की रात पर अपना लेख लिख रहा था, तब मुझे शानो-गुमान भी नहीं था कि हिंदुस्तानी छोटे परदे के एक बहुत ही मक़बूल अदाकार डॉक्टर हाथी नहीं रहे थे । इंटरनेट से ही मैंने जाना कि उनका वास्तविक नाम कवि कुमार आज़ाद था अन्यथा उनके करोड़ों प्रशंसकों की ही तरह मैं भी उन्हें उनके स्क्रीन नेम डॉक्टर हंसराज हाथी के नाम से ही जानता था । दुख की बात है कि इतने लोकप्रिय कलाकार के निजी जीवन के विषय में इंटरनेट पर कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है । उनकी आयु तथा विवाहित एवं पारिवारिक जीवन के विषय में अलग-अलग साइटें विरोधाभासी तथ्य बता रही हैं । बहरहाल इतना तय है कि उनकी आयु अधिक नहीं थी और वे अल्पायु में ही दिवंगत हो गए । 

सब टी.वी. पर एक दशक से अभी अधिक समय से निरंतर प्रसारित हो रहे अत्यंत लोकप्रिय सिटकॉम तारक मेहता का उल्टा चश्मा में डॉक्टर हाथी के किरदार को जीने वाले इस बहुत मोटे लेकिन बेहद ज़िंदादिल अदाकार की इस अकाल मृत्यु से मुझे न केवल गहरा धक्का लगा बल्कि मुझे अपने पिता की याद हो गई जिनके देहावसान को पंद्रह वर्ष पूरे हो रहे हैं । मेरे पिता भी अपने स्वस्थ जीवनकाल में लंबे-चौड़े व्यक्तित्व के स्वामी थे जब तक कि मधुमेह के कारण अपने अंतिम वर्षों में उन्हें दुर्बलता ने नहीं घेर लिया । जीवन की समस्याओं और दुखों से दिन-प्रतिदिन जूझते हुए भी वे सदा हँसते-मुसकराते रहते थे । उनके ज़िंदादिली भरे ठहाकों और ऊंची आवाज़ से उनके आसपास का सारा वातावरण गूँजता रहता था । १९४४ में ही अध्यापक के रूप में नौकरी पर लग जाने के उपरांत वे लगभग सम्पूर्ण जीवन हमारे गृहनगर साम्भर झील (साम्भर लेक जो कि नमक की विश्वप्रसिद्ध झील है) में मोटे मास्टर साहब के नाम से जाने जाते रहे । उनके गुस्से से बहुत-से लोग उनसे नाराज़ हो जाते थे लेकिन उनकी साफ़दिली उस नाराजगी को दूर भी कर देती थी । पंद्रह जुलाई को उनका जन्मदिन पड़ता है और अपने जन्मदिन से एक दिन पहले चौदह जुलाई दो हज़ार तीन को उनका निधन हो गया । उनके अवसान के बाद मेरा अपने हँसना-मुसकराना बहुत कम हो गया लेकिन तब से अब तक मेरे मन में कई बार यही ख़याल आता है कि काश मैं उनकी तरह ज़िंदादिल होता क्योंकि अगर ऐसा होता तो ज़िंदगी की दुश्वारियों से दो-चार होने की जैसी कूव्वत उनमें थी, मुझमें भी होती । 


मैंने अपने परिवार के साथ तारक मेहता का उल्टा चश्मा देखना २००८ में आरंभ किया था । प्रारम्भ में डॉक्टर हाथी की भूमिका एक दूसरे कलाकार (निर्मल सोनी) निभाते थे लेकिन कुछ समय के उपरांत ही कवि कुमार आज़ाद इस भूमिका में ले लिए गए । यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करते हुए इस धारावाहिक में डॉक्टर हाथी के चरित्र को एक अत्यंत मोटे व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया और इस कसौटी पर कवि कुमार आज़ाद पूरी तरह खरे उतरते थे । दो सौ किलो से भी अधिक वज़न वाले इस मोटे कलाकार ने किसी बालक की भाँति निर्दोष और निश्छल डॉक्टर हंसराज हाथी के रूप में एक दशक तक भारतीय दर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान किया । धारावाहिक में उन्हें एक उत्तर-भारतीय व्यक्ति बताया गया है जो पेशे से चिकित्सक है, धारावाहिक के अन्य स्थायी पात्रों के साथ गोकुलधाम नामक हाउसिंग सोसायटी में रहता है, कोमल नामक अपने जैसी ही एक भारी देह वाली महिला का पति है और वैसे ही मोटे गोली नामक एक बालक का पिता है । खाने-पीने के बेहद शौकीन तथा सदा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहने वाले इस किरदार में ज़िंदादिली कूट-कूटकर भरी है । कवि कुमार आज़ाद ने इस किरदार को बाख़ूबी निभाया और सम्पूर्ण देश में अपने वास्तविक नाम के स्थान पर डॉक्टर हाथी के रूप में ही जाने जाने लगे ।  

जैसे धारावाहिक में अपने नाम के अनुरूप वे हाथी जैसे व्यक्तित्व के स्वामी थे, वैसे ही वास्तविक जीवन में भी अपने नाम के अनुरूप वे एक (हिन्दी भाषा के) कवि थे । नाम और काम में ऐसा अद्भुत साम्य कम ही देखने को मिलता है । धारावाहिक में वे परदे पर आते ही अपनी छाप छोड़ देते थे । उनका सही बात है कहने का अंदाज़ कौन भूल सकता है । एक अत्यंत सामान्य-सा यह वाक्य वे सहज भाव से ही बोलते थे लेकिन उनका बोलने का यह सहज स्वाभाविक ढंग ही सुनने वाले दर्शकों का दिल जीत लेता था । उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी अभिनय किया लेकिन अंततः उन्होंने डॉक्टर हाथी के चरित्र को ही आत्मसात् कर लिया था या यूँ कहा जाए कि इस चरित्र ने उन्हें आत्मसात् कर लिया था । उनके इस अकस्मात् और असमय ही  संसार छोड़ देने से जैसा आघात उनके साथी कलाकारों को लगा है, वैसा ही उनके अनगिनत चाहने वालों को भी लगा है । धारावाहिक के निर्माता असित कुमार मोदी ने उन्हें जो श्रद्धांजलि अर्पित की है (यह टी.वी. पर प्रसारित हुई है), वह सर्वथा उचित है ।


ऐसा कहा जा रहा है कि कवि कुमार आज़ाद को अभिनेता बनने के लिए प्रसिद्ध हास्य अभिनेत्री स्वर्गीया टुनटुन ने प्रेरित किया था । और जैसे उमा देवी नामक सुरीली आवाज़ वाली पार्श्व गायिका अपनी भारी देह के साथ हास्य-अभिनेत्री टुनटुन बन गईं, वैसे ही कवि कुमार आज़ाद नामक हिन्दी कवि अपने भारी शरीर के साथ डॉक्टर हाथी रूपी अभिनेता बन गए । जैसे टुनटुन की भारी देह बाद में उनको फ़िल्मों में भूमिकाएं मिलने का माध्यम बन गई, वैसे ही कवि कुमार आज़ाद का भारी शरीर आगे चलकर उन्हें अभिनय का काम दिलाने वाला ज़रिया बन गया । अब अपनी आजीविका के साधन से जैसे टुनटुन कभी मुक्ति नहीं पा सकीं, वैसे ही कवि कुमार आज़ाद भी नहीं पा सके । आजीविका कमाने की यह भी कितनी बड़ी विडम्बना है कि शारीरिक न्यूनताओं या दोषों को भी अपरिहार्य आवश्यकता के रूप में सदा साथ रखना होता है और उनसे मुक्त होने के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता चाहे वे प्राणों के लिए संकट ही क्यों न खड़ा कर दें । कवि कुमार आज़ाद का मोटापा ही अंततः उनके हृदयाघात और प्राणान्त का कारण  बना ।  

अपनी अभिनेता बनने की लगन के चलते घर से भागकर अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले ज़िंदादिल कवि कुमार आज़ाद उर्फ़ डॉक्टर हाथी को मैं अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ जिनके साथ ही मुझे अपने पिता स्वर्गीय श्री सूरज नारायण माथुर की भी याद आ रही है जिनके बाह्य व्यक्तित्व में मेरे साथ कुछ भी उभयनिष्ठ (कॉमन) नहीं था क्योंकि उन्हें साहित्य, संगीत, सिनेमा या ललित कलाओं में कोई रुचि नहीं थी, वे तो प्रायः हिन्दी भी नहीं बोलते थे (वे राजस्थानी भाषा में ही बात करना पसंद करते थे) लेकिन भीतर से मैं उन्हीं के (और डॉक्टर हाथी के) जैसा ही हूँ – संवेदनशील और किसी के भी दुख-तकलीफ़ से पिघल जाने वाला जो पीड़ा सह सकता है, दे नहीं सकता; दूसरों के द्वारा ठगा जा सकता है, किसी को ठग नहीं सकता । काश उनकी ज़िंदादिली भी मुझे मिल गई होती तो ज़िन्दगी की जंग को लड़ना कुछ आसान होता मेरे लिए ! ख़ैर ... ।

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11 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सच कहा आपने । अब तो कलाकारों साहित्यकारों का कोई मूल्य ही नहीं रहा । पहले पत्रकार ख़बरें पाने के लिए ह्रदय से उत्सुक रहते थे । पर अब तो वह ऑफिस मैं बैठ कर ही सामग्री एकत्र ।करते हैं ।आपकी शिकायत बिलकुल उचित है ।

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  2. जी आपने सही कहा कि कई बार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आपको टाइप कास्ट कर देती है। ऐसे कई कलाकार हैं जिन्हें उनके अधिक वजन के कारण काम मिलता है और चूँकि काम मिलता है तो वह इस वजन को बनाये रखने के लिए मजबूर से हो जाते हैं। रोल में फिट जो होना होता है। कवि कुमार आज़ाद का जाना वाकई हैरत में डालने वाला था। सुंदर लेख।

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  3. "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" के मेरे पसंदीदा एक्टर के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। मुझे जब उनके देहांत के बारे में जानकारी मिली सहसा विश्वास ही नहीं हुआ था। वो एक शानदार कलाकाल और कवि थे। एक सुंदर आलेख के लिए आपको बधाई।

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    1. आपकी बात बिलकुल ठीक है वीरेन्द्र जी । कवि कुमार आज़ाद एक शानदार कलाकार और कवि थे । उनके देहान्त के बारे में जानकर मुझे भी एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ था । पर यह अत्यंत दुखद तथ्य सत्य ही था । आगमन एवं अभिव्यक्ति हेतु आभार आपका ।

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  4. वाह भाई बहुत ही शानदार लिखा है और इस लेख को पढ़ने पर स्वर्गीय ताऊजी की याद भी दिला दी। वाकई तुम्हारी लेखनी मैं। बहुत दम है🙏

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  5. मै भी प्रशंसक हूं उनकी अदाकारी की..मेरा बच्चा भी यह धारावाहिक देखता है..बेहद दुख हुआ जानकर कि कवि कुमार आज़ाद दिवंगत हो गए..उनकी अदाकारी की सराहना करता आपका लेख सच्ची श्रद्धांजलि है उनके लिए

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  6. मूल प्रकाशित लेख पर दीपशिखा जी की टिप्पणी :

    deepshikha70August 22, 2018 at 10:26 PM
    सर, आपने बहुत सही बात कही ....."आजीविका कमाने की यह भी कितनी बड़ी विडम्बना है कि शारीरिक न्यूनताओं या दोषों को भी अपरिहार्य आवश्यकता के रूप में सदा साथ रखना होता है और उनसे मुक्त होने के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता चाहे वे प्राणों के लिए संकट ही क्यों न खड़ा कर दें".

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    जितेन्द्र माथुरAugust 23, 2018 at 9:58 PM
    हार्दिक आभार दीपशिखा जी ।

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