शुक्रवार, 19 मार्च 2021

सलेब्रिटी और सत्ता

(यह लेख मूल रूप से 29 सितम्बर, 2019 को प्रकाशित हुआ था)

अमिताभ बच्चन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिए जाने की घोषणा कर दी गई है । अमिताभ बच्चन इस पुरस्कार के सर्वथा योग्य हैं किंतु उन्हें यह पुरस्कार दिया जाना केवल उनकी योग्यता पर आधारित नहीं लगता क्योंकि भारतीय फ़िल्म जगत से जुड़े ऐसे कई कर्मयोगी इस पुरस्कार से वंचित रहे जो इसके लिए उनसे अधिक अर्हता रखते थे एवं उनसे कहीं पहले इसके अधिकारी थे । वे हमेशा सत्ता एवं सरकार के पक्ष में रहते हैं, इसलिए उन्हें यह सम्मान मिलना तो था ही ।  

अमिताभ बच्चन ने फ़िल्में (तथा रियलिटी शो भी) केवल धनार्जन के निमित्त कीं और लगभग सदा राजनीतिक सत्ताधारियों से निकटता बनाए रखी । वे अच्छे अभिनेता हैं, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि वे सदा अभिनय ही करते हुए लगते हैं । अपने वास्तविक एवं स्वाभाविक रूप में सम्भवतः वे केवल अपने परिजनों के समक्ष ही आते हैं । 'कौन बनेगा करोड़पति' शो हो या धन कमाने के लिए किए गए विज्ञापन या सरकारी योजनाओं के ब्रांड ऐम्बैसडर की भूमिका या कोई सार्वजनिक कार्यक्रम या फिर सोशल मीडिया पर उनकी अभिव्यक्तियां; उनका प्रत्येक शब्द एवं भावभंगिमा उनके द्वारा किया जा रहा अभिनय ही प्रतीत होते हैं । सत्तर के दशक में रूपहले परदे पर जिस व्यवस्था के फ़िल्मी विरोधी बनकर उन्होंने एंग्री यंग मैन के रूप में जनता के हृदय पर राज किया और चोटी के सितारे बनकर अकूत धन कमाया, वास्तविक जीवन में वे सदा उसी शोषक व दमनकारी व्यवस्था के साथ ही खड़े दिखाई दिए । १९८४ में लोकसभा का चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बनने के उपरांत भी उन्होंने उस जनता के प्रति अपना कोई कर्तव्य नहीं निभाया जिसने उन्हें सदा सर-आँखों पर बिठाया था । विगत ढाई दशक से तो वे हर ताक़तवर के आगे झुकते तथा पैसे के लिए किसी का भी प्रचार करते दिखाई देते हैं । जो मुँहमाँगी रकम दे, वे उसी की बोली बोलने को तैयार बैठे रहते हैं । और उनकी ख़ुदगर्ज़ी  व अहसानफ़रामोशी की हद यह है कि उन्होंने उसी सुब्रत रॉय से उसके बुरे वक़्त में मुँह मोड़ लिया जिसने उनके बुरे वक़्त में उनकी भरपूर सहायता की थी (जब अमिताभ की कम्पनी एबीसीएल दिवालिया होने के कगार पर खड़ी थी) । ख़ैर ...

 

यह रवैया सिर्फ़ उनका ही नहीं, उनके जैसे ज़्यादातर सलेब्रिटी लोगों का है हमारे देश में । सलेब्रिटी उन लोगों को कहा जाता है जो प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय होते हैं तथा सदैव समाचारों एवं पत्रिकाओं की सुर्खियों में बने रहते हैं । यद्यपि इनमें से अधिकांश धनी होते हैं किंतु सलेब्रिटी कहलाने का आधार धन से अधिक उनकी प्रसिद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मीडिया की चर्चा में बने रहना होता है । ये ख्यातनाम व्यक्ति (अंग्रेज़ी) दैनिकों के साथ संलग्न परिशिष्टों के पृष्ठ संख्या तीन पर अपने से संबंधित छोटी-बड़ी ख़बरों और तसवीरों के प्रकाशन के कारण 'पेज थ्री पर्सनैलिटी' कहलाते हैं । इनकी ख्याति अपने कार्यक्षेत्र में पर्याप्त सफलता अर्जित करने के कारण तो होती ही है, अपनी ओर से भी चर्चा में बने रहने के लिए ये मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करते हैं । जनसामान्य में इनकी लोकप्रियता ही इनकी शक्ति होती है जिसे भुनाने एवं बनाए रखने में ये कोई कसर नहीं छोड़ते ।

 

वैसे तो राजनीतिक सत्ता के महत्वपूर्ण एवं शीर्ष पदों पर विराजमान व्यक्ति तथा अनौपचारिक सत्ता एवं प्रभाव रखने वाले (बालासाहेब ठाकरे जैसे) व्यक्ति स्वयं भी सलेब्रिटी होते हैं, यहाँ मैं उन सलेब्रिटी लोगों की बात कर रहा हूँ जो राजनीतिक सत्ता से सीधे-सीधे संबद्ध नहीं होते हैं । ऐसे व्यक्ति फ़िल्म तथा टीवी के सितारे भी होते हैं, सफल एवं लोकप्रिय कलाकार व साहित्यकार भी, फ़ैशन डिज़ाइनिंग व मॉडलिंग जैसे ग्लैमरयुक्त पेशों से जुड़े लोग भी और खेल के मैदान में झंडे गाड़ने वाले भी । इनमें से अधिकांश लोगों में जो एक समानता स्पष्टतः दिखाई देती है, वह है शक्तिशाली सत्ताधारियों से मधुर संबंध बनाए रखने में इनकी रुचि । अमिताभ बच्चन ऐसे ही एक व्यक्ति हैं और उनके जैसे दर्ज़नों को पहचाना जा सकता है । क्या कारण है इसका ?

 

कारण एक ही है - राजनीतिक सत्ता में निहित अत्यधिक शक्ति जो किसी व्यक्ति-विशेष का जीवन सँवार भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है; उसे लाभान्वित भी कर सकती है और भारी हानि भी पहुँचा सकती है । अतः सलेब्रिटी जिन्हें अपनी सफलता, समृद्धि एवं लोकप्रियता से ही वास्तविक लगाव होता है; सत्ताधारियों से डरते हैं । मैंने अपने लेख - सफलता बनाम गुण  में इस बात को रेखांकित किया है कि वर्तमान पीढ़ी यह मानती है कि सफलता के लिए बहुत कुछ त्यागा जा सकता है लेकिन सफलता को किसी के भी लिए दांव पर नहीं लगाया जा सकता क्योंकि (सफल व्यक्तियों के लिए) वह सबसे अधिक मूल्यवान होती है । सलेब्रिटी लोगों के सत्ता-प्रेम का सच यही है । वे अपने कामयाब करियर के बरबाद होने का ख़तरा नहीं उठा सकते ।

 

लेकिन इस प्रेम के कारण वे न केवल अपने प्रशंसकों, समाज एवं देश के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते वरन उसकी कुसेवा भी करते हैं । वे न केवल जब-तब सत्ताधारियों की चाटुकारितापूर्ण प्रशंसा करते रहते हैं वरन उनकी स्पष्टतः अनुचित नीतियों एवं कार्यकलापों का भी समर्थन ही करते हैं । येन-केन-प्रकारेण उनकी गुड-बुक्स में बने रहना ही ऐसे लोगों की नीति बन जाती है । ऐसे में ये सलेब्रिटी किसी भी विषय पर अपने वास्तविक विचार यदि रखते भी हैं तो उन्हें व्यक्त नहीं करते हैं (जो भूले-भटके ऐसा कर बैठते हैं, वे सत्ताधारियों के निशाने पर आ जाते हैं एवं उनके कोप का भाजन बनते हैं) । ऐसे लोगों की किसी भी सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर कही गई बातें सरकारी नीतियों की अनुगूंज ही होती हैं । परदे पर दर्शकों के समक्ष निडर एवं साहसी मानव के रूप में आने वाले अमिताभ बच्चन जैसे सलेब्रिटी अपने निजी जीवन में डर-डर के जीते हैं ।

 

लेकिन इनसे भी कहीं अधिक कुसेवा अपने देश और नागरिकों की वे फ़िल्मी सलेब्रिटी करते हैं जो अपने सर्जक माध्यम का दुरूपयोग सत्ताधारियों के हित-साधन के निमित्त करते हैं । फ़िल्म-निर्माण या साहित्य-लेखन या चित्रकारी या संगीत जैसी कोई भी कला किसी राजनीतिक दल को (चुनावी) लाभ पहुँचाने के लिए नहीं होती, समाज के मन रंजन तथा मार्गदर्शन (यदि संभव हो) के लिए होती है । यदि किसी कृति के सृजन का प्रयोजन ही मतदाताओं को (मिथ्या सूचनाओं द्वारा) भ्रमित करके किसी विशिष्ट राजनीतिक दल की चुनाव जीतने में सहायता करना है तो यह निश्चय ही ऐसा करने वाले सलेब्रिटी सर्जकों का एक निंदनीय कृत्य है । हाल के वर्षों में वर्तमान सत्ताधारी दल के प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने के लिए मिथ्या सूचनाओं से भरी कई फ़िल्में बनाई गई हैं जिनमें अप्रमाणित तथा अपुष्ट तथ्यों को इस तरह प्रस्तुत किया गया है मानो वे स्थापित सत्य हों । वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री के जीवन पर भी उन्हें महिमामंडित करने वाली एक फ़िल्म बनाकर प्रदर्शित की गई है जिसमें ऐसी-ऐसी घटनाएं दिखाई गई हैं जो कभी हुई ही नहीं । ऐसी फ़िल्में भावी पीढ़ी के साथ अन्याय हैं जो स्वयं सत्य का अण्वेषण करने के स्थान पर इनमें  प्रदर्शित बातों को ही सत्य मान बैठेगी ।

 

वो ज़माना गया जब विभिन्न क्षेत्रों के सितारे चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए वोट माँगने तथा नेताओं की चुनावी सभाओं में भीड़ जुटाने का साधन थे । अब तो वे स्वयं राजनीतिक दलों के सदस्य बनते हैं और तुरत-फुरत टिकट पाकर चुनाव लड़ भी लेते हैं व प्रायः जीत भी लेते हैं । अब फ़िल्मी दुनिया का भी जाति-धर्म-नस्ल के आधार पर भेदभाव न करने वाला चरित्र नहीं रह गया । अब तो ताक़तवर राजनेता के आगे मत्था टेकना और फ़ायदा उठाना ही ज़्यादातर लोगों का उसूल बन गया है । सलेब्रिटी बनकर सत्ता का दामन पकड़ा जा रहा है तो सत्ता का साथ पकड़कर भी सलेब्रिटियों की जमात में शामिल होने का जुगाड़ किया जा रहा है । देश, समाज, मानवता, सत्य, न्याय, जीवन-मूल्य; सब नेपथ्य में चले गए हैं । अमिताभ बच्चन ने २००४ में गोविंद निहलानी कृत फ़िल्म 'देव' में एक कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई थी जो गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों से जूझता है और ऊपर से आए ग़लत आदेशों की परवाह न करके निर्दोष तथा असहाय मुस्लिमों की जान बचाने व दोषियों को कानून द्वारा दंडित करवाने का प्रयास करता है । क्या वर्तमान राजनीतिक वातावरण में ऐसी भूमिका निभाने का साहस अब उनमें है ?


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7 टिप्‍पणियां:

  1. मूल प्रकाशित लेख पर ब्लॉगर मित्रों की प्रतिक्रियाएं :

    Jyoti DehliwalSeptember 30, 2019 at 10:18 PM
    सच कहा जितेंद्र भाई की रील लाइफ और रियल लाइफ में बहुत अंतर हैं।

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    जितेन्द्र माथुरOctober 1, 2019 at 1:02 AM
    हार्दिक आभार आदरणीया ज्योति जी ।

    Aditi KapurOctober 1, 2019 at 6:31 AM
    बहुत बढ़िया। रियल लाइफ और रील लाइफ में बहुत अंतर है।

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    जितेन्द्र माथुरOctober 3, 2019 at 5:00 AM
    बहुत-बहुत आभार अदिति जी ।

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  2. आज के समय में यह पता करना कठिन है कौन असली है कौन नकली, सभी के चेहरों पर नकाब हैं

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  3. जी हाँ अनीता जी । इसीलिए तो महसूस कर रहे हैं कि दुनिया बड़ी ख़राब है । आगमन एवं टिप्पणी के लिए आभार आपका ।

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  4. आज के समय में तो बॉलीवुड से मन बिलकुल बिदक गया है, इन्हीं सब कारणों से ।। आपका लेख बहुत ही सार्थक विषय पर है ।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी । वैसे बॉलीवुड के बाहर के अनेक सलेब्रिटी भी अब इसी राह पर चल रहे हैं ।

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