हिन्दी के महान कवि सुमित्रानंदन पंत जी की अमर पंक्तियाँ हैं – ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, निकलकर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान’ । सत्य ही यह अपने प्रिय से बिछुड़ने की पीड़ा ही तो है जो अमर कविताओं और गीतों को जन्म देती है । वियोग की पीड़ा ही ऐसी कालजयी रचनाओं के जन्म से पूर्व की प्रसव पीड़ा का कार्य करती है । यह पीड़ा ही वह मूल्य है जो अमर कृतियों के रचयिताओं को अपने निजी जीवन में चुकाना पड़ता है । ऐसे ही एक विरही की घनीभूत पीड़ा से उद्भूत भावों का सागर है महाकवि कालीदास द्वारा संस्कृत में रचित खंड-काव्य ‘मेघदूतम’ और उस काव्य को आधार बनाकर सृजित चित्रों की एक शृंखला प्रस्तुत है संप्रति समीक्षित पुस्तक ‘मेघदूत-चित्रण’ में । ‘मेघदूत-चित्रण’ एक विलक्षण पुस्तक है जिसमें विरह-वेदना दो पृथक-पृथक स्वरूपों में उपस्थित है – शब्दों में एवं चित्रों में । इसके सर्जक हैं पारंपरिक राजस्थानी शैली में बनाए गए अपने चित्रों के लिए देश-विदेश में ख्याति प्राप्त मूर्धन्य भारतीय चित्रकार स्वर्गीय कन्हैयालाल वर्मा ।
मूल रूप से एक शिक्षक तथा
अपना सम्पूर्ण जीवन चित्रकला की साधना को समर्पित करने वाले कन्हैयालाल वर्मा ने महाकवि
के अमर काव्य पर चौंतीस चित्रों की एक शृंखला तैयार की है जो समीक्षित पुस्तक में
इस प्रकार प्रस्तुत की गई है कि दाईं ओर के पृष्ठ पर चित्र है जबकि बाईं ओर के
पृष्ठ पर उस चित्र से संबंधित संस्कृत का
मूल श्लोक, उसकी स्वयं चित्रकार
द्वारा हिन्दी भाषा में की गई सुंदर व्याख्या एवं उस व्याख्या का अंग्रेज़ी अनुवाद दिया
गया है । अपने ढंग की यह एकमात्र पुस्तक साहित्य-प्रेमियों तथा कला-प्रेमियों के
हृदय को विजय करने में पूरी तरह सक्षम है ।
‘मेघदूतम’ अथवा ‘मेघदूत’ की कथा
कैलाश पर्वत के समीप बताई गई अलकापुरी नगरी के राजा कुबेर के सेवक यक्ष के प्रेम
एवं विरह की कथा है । अपनी प्रेयसी के प्रेम में उन्मत्त यक्ष द्वारा अपने कर्तव्य-निर्वहन
में हुई त्रुटि का दंड उसे रामगिरी पर्वत पर निर्वासन के रूप में मिलता है ।
विरह-विदग्ध यक्ष जैसे-तैसे समय व्यतीत करता है किन्तु आषाढ़ माह अर्थात वर्षा ऋतु
के आगमन पर उसकी वेदना सहिष्णुता की सभी सीमाओं को तोड़ने लगती है और वह अपनी दूर
बैठी प्रेयसी तक प्रेम-संदेश पहुंचाने को आतुर हो उठता है । वह आकाश में स्थित एक
मेघ को अपना दूत बनाकर उसे अपना संदेश देता है और उसे अलकापुरी स्थित अपनी प्रिया
तक ले जाने की प्रार्थना करता है । इसी संदेश का विस्तार है कालीदास का काव्य और
इसी का अंकन है वर्मा के सौन्दर्य-बोध से ओत-प्रोत चित्रों में ।
‘मेघदूत’
खंड-काव्य दो भागों में बंटा है – १. पूर्वमेघ, २.
उत्तरमेघ । वर्मा ने पूर्वमेघ पर उन्नीस चित्र बनाए हैं जो कि रामगिरी से अलकापुरी
के पथ का वर्णन करते हैं । उत्तरमेघ पर उन्होंने पंदरह चित्र बनाए हैं जो कि यक्ष
की विरह-विदग्धा प्रेयसी श्यामा की अवस्था तथा यक्ष द्वारा उसे भेजे जा रहे
प्रेम-संदेश का वर्णन करते हैं । वर्मा के कतिपय चित्र स्त्री के सौंदर्य तथा
स्त्री-पुरुष के प्रेम को तो दर्शाते हैं किन्तु उनमें अश्लीलता लेशमात्र भी नहीं
है । सौंदर्य-बोध एवं अश्लीलता के मध्य की क्षीण सीमा-रेखा को वर्मा की तूलिका भली-भांति
पहचानती है । वर्मा की चितपरिचित पारंपरिक राजस्थानी शैली में बनाए गए इन चित्रों
में रंग संयोजन भी उत्कृष्ट एवं सुरुचिपूर्ण है । इन चित्रों में रचा-बसा सौंदर्य
कला-प्रेमी के नेत्रों को भी ठण्डक पहुंचाता है एवं उसके हृदय को भी ।
प्रत्येक चित्र पर संबंधित
संस्कृत श्लोक चित्रकार की अत्यंत सुंदर लिखावट में दिया गया है । वर्मा ने
प्रत्येक श्लोक की व्याख्या हिन्दी भाषा में तत्सम शब्दों का अद्भुत चयन करते हुए
की है जो कि यह दर्शाता है कि वे एक उच्च कोटि के चित्रकार होने के साथ-साथ भाषा
एवं साहित्य का भी विशद ज्ञान रखते थे । हिन्दी न जानने वाले पाठकों की सुविधा के
लिए इस व्याख्या का अंग्रेज़ी अनुवाद भी साथ में दिया गया है जो रूपनारायण काबरा ने
किया है । वर्मा ने पुस्तक के आरंभ में दिए गए प्राक्कथन में इन चित्रों के सृजन
की पृष्ठभूमि तथा महाकवि के अमर काव्य के प्रति अपनी समझ एवं दृष्टि का विवेचन
प्रस्तुत किया है । हिन्दी में लिखे गए इस प्राक्कथन का भी अंग्रेज़ी अनुवाद साथ ही
दिया गया है ।
चित्रकला एवं साहित्य का
अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करती ‘मेघदूत-चित्रण’ एक ऐसी अनुपम पुस्तक है जो
कला एवं साहित्य के प्रेमियों को अवश्य पढ़नी एवं संगृहीत करके रखनी चाहिए । ‘मेघदूत-चित्रण’ के
पृष्ठों की यात्रा इस शाश्वत सत्य को रेखांकित करती है कि प्रेम का आनंद और विरह
की वेदना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । विरह की वेदना क्या होती है, यह वही
जानता है जो किसी को हृदय की गहनता से प्रेम करता है ।
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सुन्दर व प्रेरक जानकारी।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी।
हार्दिक आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी।
हटाएंसुंदर जानकारी...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया विकास जी।
हटाएंबहुत सुन्दर जानकारी भरा सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया मीना जी।
हटाएंवाह ... बहुत अच्छी जानकारी देती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार माननीया संगीता जी।
हटाएंमहाकवि कालिदास जी द्वारा रचित खण्डकाव्य 'मेघदूतम' को आधार बनाकर सृजित चित्रों की समीक्षित पुस्तक ‘मेघदूत-चित्रण’ देश-विदेश में ख्याति प्राप्त मूर्धन्य भारतीय चित्रकार स्वर्गीय कन्हैयालाल वर्मा जी द्वारा सृजित पुस्तक की लाजवाब समीक्षा के साथ जानकारी देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी!
जवाब देंहटाएंहृदय की गहनता से आपका आभार आदरणीया सुधा जी।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार १८ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
इस सम्मान के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 19-04 -2021 ) को 'वक़्त का कैनवास देखो कौन किसे ढकेल रहा है' (चर्चा अंक 4041) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
इस सम्मान हेतु हार्दिक आभार आदरणीय रवीन्द्र जी।
हटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंहृदय से आपका आभार आदरणीय अमित जी।
हटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख साधुवाद आपको आदरणीय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंहृदय की गहनता से आपका आभार आदरणीया अभिलाषा जी।
हटाएंबहुत सुंदर तथा सारगर्भित जानकारी भरा आलेख ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार माननीया जिज्ञासा जी।
हटाएंवाह! सुंदर!!
जवाब देंहटाएंहृदय के तल से आपके प्रति कृतज्ञताज्ञापन करता हूं आदरणीय विश्वमोहन जी। आपका आगमन मेरे लिए अतीव सम्मान का विषय है।
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 19 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार आदरणीया संगीता जी।
हटाएंबेहतरीन लेख।
जवाब देंहटाएंसादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी।
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जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम तथा सारगर्भित जानकारी से भरा आलेख 👌
हृदय से आपका आभार माननीया उषा किरण जी।
हटाएंज्ञानवर्धक जानकारी।
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी।
हटाएंबहुत सार्थक।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शास्त्री जी।
हटाएंसारगर्भित जानकारी..
जवाब देंहटाएंबधाई
धन्यवाद पम्मी जी।
हटाएंआभार। कहाँ मिलेगी पुस्तक?
जवाब देंहटाएंआभार आपका देवेंद्र जी। २०१३ में प्रकाशित इस पुस्तक की उपलब्धता के विषय में मैं आपको सूचित करूंगा।
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