शनिवार, 17 अप्रैल 2021

राजनगर : हिंदी जासूसी उपन्यासों के संसार का एक कल्पित किन्तु लोकप्रिय नगर

भारत में एक ही नाम के कई नगर या कस्बे मिल जाना एक सामान्य बात है । ऐसा ही एक नाम राजनगर है । हमारे देश में राजनगर नाम के कई नगरकस्बे और विधानसभा क्षेत्र हैं । राजनगर आपको छत्तीसगढ़ में भी मिलेगाबिहार में भीओडिशा में भीराजस्थान में भीपश्चिम बंगाल में भी । यहाँ तक कि बांग्लादेश में भी एक राजनगर है । लेकिन मेरा यह लेख राजनगर नामधारी वास्तविक स्थानों के सम्बन्ध में नहीं है बल्कि एक काल्पनिक राजनगर के सम्बन्ध में है जिसे पिछली आधी शताब्दी से भी अधिक समय से हिंदी में लुगदी साहित्य के नाम से सस्ता और लोकप्रिय गल्प रचने वाले लेखकों ने अपनी रचनाओं (उपन्यासों) में बड़ी उदारता से स्थान दिया है और उसके विभिन्न स्थलों का ऐसा सजीव वर्णन किया है मानो वह भारत के नक़्शे पर स्थित कोई वास्तविक नगर हो । संयोगवश ऐसी लगभग सभी रचनाएं जासूसी कथा साहित्य अथवा रहस्यकथाओं की श्रेणी में आती हैं । वैसे तो राज कॉमिक्स से प्रकाशित होने वाली कॉमिक पुस्तकों में भी विभिन्न पात्रों के कार्यकलापों का स्थल राजनगर ही है लेकिन इस लेख की विषय-वस्तु मैंने राजनगर को घटनाओं के केंद्र में रखने वाले लोकप्रिय उपन्यासों तथा उनके रचयिताओं को बनाया है । 

पहले वेद प्रकाश काम्बोज ऐसे उपन्यास अपनी विजय-रघुनाथ सीरीज़ के अंतर्गत लिखते थेबाद में स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा अपनी विजय-विकास सीरीज़ में राजनगर का चित्रण करने लगे । सत्तर का दशक बीतने के बाद जासूसी उपन्यासों के क्षितिज पर दो ही नाम छाए हुए थे – वेद प्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक । वेद जी के निधन के उपरांत अब केवल पाठक साहब ही हैं जो हिंदी में इस विधा के झंडाबरदार के रूप में कायम हैं और अपनी सुनील सीरीज़ के माध्यम से पाठक वर्ग को राजनगर नामक काल्पनिक नगर से जोड़े हुए हैं । लेकिन २०१६ में इस आकाश पर एक नया सितारा भी उभर कर आया – कँवल शर्मा जिनके पहले ही उपन्यास ‘वन शॉट’ ने हिंदी में लुप्तप्राय होते जा रहे लुगदी साहित्य (या पल्प फ़िक्शन) की लोकप्रियता को फिर से परिभाषित किया । और कँवल शर्मा ने भी अपने पदार्पण उपन्यास में घटनाक्रम का आधार उसी कल्पित राजनगर को बनाया जिससे कि हिंदी जासूसी साहित्य पढ़ने वाले पुराने पाठक अपने हाथ के पृष्ठ भाग की भाँति परिचित हो चुके हैं ।

 

मैं खेद के साथ लिख रहा हूँ कि मैंने एक ज़माने के अत्यंत लोकप्रिय जासूसी उपन्यासकार वेद प्रकाश काम्बोज का अब तक कोई उपन्यास नहीं पढ़ा है लेकिन उनके उत्तराधिकारी वेद प्रकाश शर्मा के और उनके समकालीन सुरेन्द्र मोहन पाठक के लगभग सभी उपन्यास पढ़े हैं । हिंदी जासूसी कथा-साहित्य के सिरमौर रहे इन दोनों ही उपन्यासकारों ने राजनगर के भूगोल को अपने-अपने ढंग से गढ़ा । इन दोनों ने ही इस कल्पित नगर के आसपास के तथा इससे सड़करेल या वायु मार्ग से जुड़े हुए नगरों के नाम भी कल्पित ही रखे हैं । नवोदित उपन्यासकार कँवल शर्मा ने भी राजनगर को एक काल्पनिक नगर ही रखा हैअतः उसके भीतर के उल्लिखित स्थान (जहाँ कि उपन्यास की घटनाएं घटित होती हैं) भी स्वभावतः काल्पनिक ही हैं । कँवल जी ने ‘अपने  राजनगर’ में जिन जगहों को खास तवज्जो के काबिल माना हैवे हैं – पलटन बाज़ाररॉयाल एस्टेट और पूर्वा इलाही बक्श ।

 

स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा ने वेद प्रकाश काम्बोज की विजय-रघुनाथ सीरीज़ में विकास नाम का एक नवीन पात्र सृजित करके उसे विजय-विकास सीरीज़ के रूप में ढाला  विजय-विकास भारतीय सीक्रेट सर्विस के लिए काम करने वाले सरकारी जासूस हैं और राजनगर में रहते हैं । राष्ट्रहित के काम करने के लिए वे चाहे सारी दुनिया में घूमते रहें लेकिन उनका स्थाई ठिकाना राजनगर ही है । यहीं विकास के पिता और विजय के मित्र पुलिस सुपरिटेंडेंट रघुनाथ भी अपनी धर्मपत्नी (जो  विजय की चचेरी बहन है) रैना के साथ रहते हैं और विजय के पिता इंस्पेक्टर जनरल ऑव पुलिस ठाकुर निर्भयसिंह भी अपनी धर्मपत्नी उर्मिलादेवी के साथ रहते हैं । विकास तो अपने माता-पिता के साथ ही रहता है लेकिन विजय अपने माता-पिता से अलग रहता है । विजय की बहन कुसुम का विवाह हो चुका है जबकि विकास अपने माता-पिता की इकलौती संतान है ।

 

वेद प्रकाश शर्मा के इस सीरीज़ के उपन्यासों में अकसर होटल डिगारिगा का ज़िक्र आता है । यह होटल वस्तुतः राजनगर में स्थित एक रेस्तरां है जिसमें विजय जब-तब रघुनाथ की जेब से दावत उड़ाता है । जब भी रघुनाथ को किसी केस को हल करने के लिए विजय की मदद की ज़रूरत पड़ती हैउसे विजय को पटाने के लिए पहले उसे होटल डिगारिगा में शाही दावत देनी पड़ती है । होटल डिगारिगा में (रघुनाथ के खर्च पर) अपनी पसंद का भरपेट भोजन करने के बाद ही विजय उसकी मदद के लिए हाथ-पाँव हिलाने को राज़ी होता है । इसी होटल में विकास और उसका साथी बंदर धनुषटंकार उर्फ़ मोंटो भी गाहे-बगाहे चक्कर लगाते रहते हैं । मोंटो एक अद्भुत प्राणी है जिसका शरीर बंदर का है लेकिन उसमें मस्तिष्क मनुष्य का है । वह शराब और सिगार का रसिया है और वक़्त-वक़्त पर विजय-विकास की उनके कामों में मदद करने के अलावा विकास के साथ राजनगर में तफ़रीह करना ही उसका शगल है । होटल डिगारिगा विकास और मोंटो का पसंदीदा अड्डा है ।


वेद प्रकाश शर्मा ने अपने इस सीरीज़ के उपन्यासों में राजनगर की भौगोलिक स्थिति का अधिक विस्तार से चित्रण नहीं किया है । कुछ उपन्यासों में राजनगर के निकट स्थित एक अन्य नगर रामनगर का उल्लेख अवश्य उन्होंने किया है । सुपरिटेंडेंट रघुनाथ की कोठीआई. जी. पुलिस ठाकुर साहब की कोठी और विजय की अपनी कोठी कहाँ स्थित हैं (उन्होंने इन सभी को कोठियों में रहते हुए ही बताया है)वे नहीं बताते । लेकिन राजनगर की जिस जगह ने उनके विजय-विकास सीरीज़ वाले उपन्यासों में सबसे ज़्यादा ज़िक्र हासिल किया हैवह है – ‘गुप्त भवन’ । अब नाम ही ‘गुप्त भवन’ है तो ज़ाहिर-सी बात है कि उसके बारे में सामान्य लोगों को जानकारी नहीं हो सकती । इस गुप्त स्थान पर सीक्रेट सर्विस का मुखिया ब्लैक ब्वॉय तथा सीक्रेट सर्विस के अन्य सदस्य मिलते हैं । यहीं पर सीक्रेट सर्विस द्वारा निपटाए गए मामलों की फ़ाइलें रखी जाती हैं । यहाँ एक डेथ चैम्बर भी है । इसमें पहुँचने के सभी रास्ते आम लोगों की निगाहों से छुपे हुए हैं जिनमें से एक रास्ता विजय की कोठी के भीतर से जाता है । जब भी ब्लैक ब्वॉय को विजय-विकास या अन्य सदस्यों से सीक्रेट सर्विस के किसी अभियान या अन्य संबंधित विषय पर बात करनी होती हैवह अपनी भर्राई हुई आवाज़ में उन्हें ‘गुप्त भवन’ पहुँचने का हुक्म देता है जहाँ वह अपनी चीफ़ वाली कुरसी पर बैठकर सिगार पीते हुए उनसे बातचीत करता है ।

 

लेकिन जिस उपन्यासकार ने अपने उपन्यासों में सचमुच एक जीता-जागता राजनगर दर्शाया हैवे हैं वन एंड द ओनली सुरेन्द्र मोहन पाठक । पाठक साहब ने अपनी सुनील सीरीज़ का आग़ाज़ १९६३ में पुराने गुनाह नए गुनाहगार’ के साथ किया और तब से अब तक वे इस खोजी पत्रकार नायक के पुस्तकाकार में १२२ उपन्यास लिख चुके हैं और उसे लेकर कई लघु उपन्यास तथा लघु कथाएं भी उन्होंने रची हैं । सुनील कुमार चक्रवर्ती का राजनगर स्थित आवासीय पता - ३बैंक स्ट्रीट उसी तरह प्रसिद्ध हो चुका है जिस तरह सर आर्थर कॉनन डॉयल के अमर चरित्र शेरलॉक होम्स का लंदन स्थित आवासीय पता - २२१ बीबेकर स्ट्रीट हो चुका है । ब्लास्ट’ नामक राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्र में नौकरी करने वाला यह साहसी और निष्ठावान पत्रकार अपने फ़र्ज़ को अंजाम देने के लिए सारे राजनगर में घूमता रहता है । सुरेन्द्र मोहन पाठक ने राजनगर का बाकायदा एक विस्तृत नक़्शा बना रखा है जिसके विभिन्न स्थानों का वर्णन वे बड़ी प्रामाणिकता के साथ करते हैं । उनके द्वारा रचित इस राजनगर में मैजेस्टिक सर्कल है, मुग़ल बाग़ है, जौहरी बाज़ार है, शंकर रोड है, हर्नबी रोड है, मेहता रोड है, धोबी नाका क्रीक है, शेख सराय है, नेपियन हिल रोड है, कूपर रोड है, धर्मपुरा है, विक्रमपुरा है,  लिंक रोड है (जहाँ श्मशान घाट है),  ईसाई  समुदाय की बहुतायत वाला इलाका जॉर्जटाउन है, मुख्य शहर से कोई तीस मील दूर समुद्र के किनारे स्थित इलाका नाॅर्थ शोर है और भी बहुत-से स्थल हैं जिनके बारे में पढ़ते समय पाठकों को लगता ही नहीं कि उनके द्वारा पढ़ी जा रही कहानी किसी काल्पनिक नगर में घट रही है । सुनील का मित्र रमाकांत मल्होत्रा 'यूथ क्लब' के नाम से एक मनोरंजन प्रदान करने वाला क्लब चलाता है जिसमें सुनील नियमित रूप से आता-जाता रहता है । पाठक साहब ने  हमेशा से राजनगर को एक घनी आबादी वाले महानगर के रूप में चित्रित किया है जिसकी आबादी अब कम-से-कम करोड़ में होनी चाहिए  इस महानगर में सुनील कभी अपनी मोटर साइकिल पर घूमता है तो कभी रमाकांत से उधार ली हुई कार पर । और सुनील के साथ भ्रमण करते हैं उपन्यास के पाठक 

 

सुरेन्द्र मोहन पाठक ने एक अन्य नायक प्रमोद को लेकर भी चार उपन्यास लिखे हैं और प्रमोद का निवास भी उन्होंने राजनगर में ही बताया है । समय-समय पर भारत छोड़कर विदेश चला जाने वाला प्रमोद राजनगर में कमर्शियल स्ट्रीट में मार्शल हाउस नामक एक इमारत में रहता है । बहरहाल सुरेन्द्र मोहन पाठक के शैदाइयों का राजनगर भ्रमण प्रमोद के स्थान पर सुनील के ही साथ भलीभाँति हो पाया है ।

 

सुरेन्द्र मोहन पाठक ने राजनगर से पैंसठ मील दूर एक रमणीक पर्यटन-स्थल भी बताया है जिसका नाम ‘झेरी’ है और जिसका मुख्य आकर्षण एक झील है । उससे भी कोई छह मील आगे वे सुंदरबन नामक एक और पर्यटन-स्थल बताते हैं जो एक विशेष मौसम में ट्राउट-फिशिंग के लिए प्रसिद्ध है । उससे भी और आगे एक पंचधारा नामक स्थान है और है ‘स्कैंडल प्वॉइंट’ 

 

सुरेन्द्र मोहन पाठक ने राजनगर को न केवल समुद्र के किनारे स्थित महानगर बताया है बल्कि उसके भीतर बहने वाली एक नदी भी बताई है – कृष्णा नदी । उन्होंने राजनगर के आसपास स्थित नगर और कस्बों के नाम भी काल्पनिक ही रखे हैं । ये हैं – विशालगढ़विश्वनगरइक़बालपुरतारकपुरसुनामपुरसोनपुरनूरपुरखैरगढ़ आदि । इनमें से पहले चार नगरों के और झेरी के चक्कर पाठक साहब ने सुनील से लगवाए हैं तो बाकी जगहों के चक्कर अपने दूसरे लोकप्रिय नायक विमल से लगवाए हैं । अपने कुछ अत्यंत लोकप्रिय कारनामों में विमल ने भी राजनगर में काफ़ी वक़्तगुज़ारी की है तो एक असाधारण उपन्यास के असाधारण क्लाईमेक्स में विमल के साथ-साथ सुनील भी नूरपुर जा पहुँचता है । पाठक साहब का इन काल्पनिक नगरों से लगाव कितना ज़्यादा हैइस बात का प्रमाण यह है कि उनके कई थ्रिलर उपन्यास भी इनमें ही अपनी कथा को प्रवाहित करते हैं ।

 

राजनगर के बाद पाठक साहब का सबसे ज़्यादा दुलार किसी कल्पित नगर ने पाया है तो वह है – विशालगढ़ जिसमें उनके कई लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों का पूरा-का-पूरा घटनाक्रम चलता है । पाठक साहब ने जहाँ राजनगर को एक महानगर बताया हैवहीं विशालगढ़ को वे एक छोटा शहर बताते हैं । लेकिन राजनगर की तरह इसे भी एक नदी का सान्निध्य प्राप्त है – सोना नदी । इसके अतिरिक्त यहाँ रिचमंड रोड है जो एक कारोबारी चहल-पहल वाला इलाका लगता है । पाठक साहब के किसी उपन्यास की कहानी जब विशालगढ़ में घटती है तो रिचमंड रोड का उल्लेख आए बिना नहीं रहता । 

कथ्य की प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए पाठक साहब सहित अधिकांश रहस्य-कथा लेखक प्रायः वास्तविक शहरों और उनके भीतर स्थित वास्तविक स्थानों के नाम ही अपनी रचनाओं में प्रयुक्त करते हैं लेकिन काल्पनिक शहरों विशेषतः लुगदी साहित्य की दुनिया में एक किवदंती का दर्ज़ा पा चुके राजनगर और उसके निकटस्थ नगरों में उपन्यासों के पृष्ठों के द्वारा बैठे-बैठे ही विभिन्न स्थानों की सैर करने का आनंद ही कुछ और है । यह आनंद हक़ीक़त में नहीं लिया जा सकता क्योंकि ये नगर कहीं मौजूद नहीं हैं । बहरहाल तसव्वुर में ही सही, इस सैर से मिलने वाला आनंद अद्भुत है और इस बात का ज़ामिन मैं ख़ुद हूँ 

© Copyrights reserved

15 टिप्‍पणियां:

  1. मूल प्रकाशित लेख (12 दिसम्बर, 2018 को) पर ब्लॉगर मित्रों की टिप्पणियां :

    विकास नैनवाल 'अंजान'December 13, 2018 at 4:02 AM
    रोचक और ज्ञानवर्धक लेख। वेद प्रकाश कम्बोज जी के उपन्यास डेली हंट में मौजूद हैं। आप चाहें तो उधर जाकर उन्हें पढ़ सकते हैं।

    हिन्दी अपराध साहित्य के और भी ऐसे रोचक विषयों पर आपकी लेखनी चलती रही यही मेरी आशा है।

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:07 PM
    हार्दिक आभार विकास जी ।

    हितेष रोहिल्लाDecember 13, 2018 at 4:07 AM
    Karnataka mein jagah ka Naam Shimoga hai na ki shimago
    बहरहाल, लेख रोचक है और इस के लिए लेखक बधाई का पात्र है।

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:12 PM
    हार्दिक आभार हितेश जी । मुझे मालूम है कि शिमोगा (अब शिवमोग्गा) नामक पर्यटन स्थल कर्नाटक में है लेकिन गूगल सर्च में हिंदी के कुछ पृष्ठों पर मैंने कर्नाटक में एक स्थान के लिए शिमागो नाम पाया । चूंकि कँवल शर्मा ने अपने उपन्यास में 'शिमागो' का ही उल्लेख किया है (न कि 'शिमोगा' का), इसलिए मैंने अपने इस लेख में उक्त बात लिखी ।

    SVN LibraryDecember 13, 2018 at 4:30 AM
    एक अलग तरह का और रोचक आलेख लिखा है। राजनगर कथा साहित्य में चाहे वह उपन्यास हो या काॅमिक्स सभी में शामिल रहा है।
    आपने इस विषय को रोचक तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया।
    हार्दिक धन्यवाद।
    www.sahityadesh.blogspot.in

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:06 PM
    हार्दिक आभार ।

    शोभितDecember 13, 2018 at 5:13 AM
    बहुत शानदार लेख. वेद प्रकाश शर्मा जी और वेद प्रकाश कांबोज जी इतना पढ़ा नहीं तो एक नई जानकारी मिली. आप यूं ही मनोरंजक ज्ञानवर्धक लिखते रहें.

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:05 PM
    हार्दिक आभार शोभित जी ।

    UnknownDecember 13, 2018 at 5:14 AM
    रोचक लेख

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:04 PM
    हार्दिक आभार त्यागी जी ।

    AMIT WADHWANIDecember 13, 2018 at 9:36 AM
    उम्दा लेख लिखा है जीतेन्द्र माथुर जी, पाठक साहब को पढ़ने वाले उनके नियमित पाठक तो इनसे परिचित है ही पर एक साथ पूरी जानकारी किसी नए पाठक के लिए खासी प्रयोज्य और साथ ही रोचक भी साबित होंगी,आपको साहब इस लेख के लिए मेरा साधुवाद।

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 13, 2018 at 8:04 PM
    हार्दिक आभार अमित जी ।

    kanwalDecember 17, 2018 at 5:33 PM
    This is very informative. Am amazed to see that my name is mentioned there with such greats... but then in my case I had a sentimental reason for using that city in my story. As an avid follower of Pathak Sir wanted to connect my story with him in any way.

    Rajnagar was the answer for me.

    Reply
    जितेन्द्र माथुरDecember 17, 2018 at 7:00 PM
    Hearty thanks Kanwal Ji. You did the rightest thing. Hope to see a full-fledged Vinay Ratra Series with his base being at the fictitious Rajnagar.

    अमृतमन्थनMay 31, 2020 at 9:27 PM
    Awesome informative blog

    Reply
    जितेन्द्र माथुरJune 1, 2020 at 3:05 AM
    Hearty thanks.

    UnknownJune 28, 2020 at 6:14 AM
    माथुर साहब मैं विजय रघुनाथ सीरीज का चाहने वाला हूं और वेदप्रकश कंबोज के उपन्यासों का एक पुराना पाठक हूं आपका लेख बहुत अच्छा लगा है l

    Reply
    जितेन्द्र माथुरJune 29, 2020 at 1:35 AM
    बहुत-बहुत आभार । यदि आप अपना नाम लिखते तो मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होती ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच   "ककड़ी खाने को करता मन"  (चर्चा अंक-4040)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    --

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी भरा लेखन,राजनगर की विवेचना लेख को रोचक बना गई।

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी प्रिय रहे लेखकों और विस्तृत चर्चा में रोचक जानकारी मिली। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. राजनगर का उल्लेख इन उपन्यासों लेखकों ने इतना जीवंत किया है कि उपन्यास पढ़ते हुए सदा ही जाना-पहचाना शहर सा लगा।
    आपका लेख कमाल का है । कंई पढ़े उपन्यासों का राजनगर साकार हो उठा आँखों के आगे । आपके सृजन कौशल को नमन।

    जवाब देंहटाएं