रविवार, 31 जनवरी 2021

कँवल शर्मा करवाते हैं विनय रात्रा के साथ एक रहस्यभरी यात्रा

एक समय था जब न तो हिंदी में जासूसी उपन्यासों अथवा रहस्यकथाओं को पढ़ने वालों की कोई कमी थी और न ही लिखने वालों और छापने वालों की । ऐसे कथा-साहित्य का बाज़ार बहुत बड़ा था, इसलिए ढेर सारी किताबें लुगदी कागज़ पर छपती थीं और माँग के हिसाब से पठन-सामग्री का इंतज़ाम करने के लिए प्रकाशक बहुत-से लेखकों को मौका देते थे । इसीलिए बहुत-से (वास्तविक नाम वाले भी और छद्म नाम वाले भी) लेखक सक्रिय थे तथा असेम्बली लाइन उत्पादन की तरह दर्ज़नों जासूसी उपन्यास विभिन्न प्रकाशनों के सौजन्य से प्रति माह हिंदी के पाठकों की रहस्य-रोमांच की क्षुधा को तृप्त करने हेतु पुस्तकों की दुकानों पर अवतरित हो जाया करते थे ।

वक़्त बदला और इक्कीसवीं सदी में पाठकों और किताबों, दोनों की ही तादाद घटने से प्रकाशक भी घटे जबकि हिंदी के जासूसी उपन्यास लेखक तो केवल दो ही रह गए – सुरेन्द्र मोहन पाठक और वेद प्रकाश शर्मा । १७ फ़रवरी, २०१७ को वेद प्रकाश शर्मा का असामयिक निधन हो गया जबकि बढ़ती आयु तथा प्रकाशन में लगातार आ रही अड़चनों के कारण सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित नवीन पुस्तकें भी अब कम आ रही हैं । इन वजूहात से कुछ अरसा पहले ऐसा लगने लगा था कि पाठक साहब के बाद हिंदी में जासूसी उपन्यास छपने ही बंद हो जाएंगे । इस निराशाजनक स्थिति में आशा की एक किरण बनकर उभरे हैं एक युवा लेखक - कँवल शर्मा । प्रारम्भ में जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों के हिंदी अनुवादों के माध्यम से रहस्य-रोमांच के शैदाई हिंदी के पाठकों को अपना तआरूफ़ देने वाले कँवल शर्मा ने अपने पहले मौलिक उपन्यास - वन शॉट’ के द्वारा हिंदी जासूसी उपन्यासों के संसार में पदार्पण किया । कँवल जी का यह प्रथम उपन्यास दो वर्ष पूर्व आया था एवम् इसके उपरांत भी उनके द्वारा रचित कई उपन्यास हिंदी के पाठक समुदाय के समक्ष आ चुके हैं, इसलिए वन शॉट’ की यह समीक्षा निश्चय ही विलम्बित है लेकिन यह उपन्यास मुझे इतना पसंद आया था कि देर से ही सही, इस पर कुछ लिखे बिना मेरा मन नहीं माना ।   


कँवल शर्मा का यह पहला उपन्यास उनके कथा-नायक विनय रात्रा का भी पहला कारनामा है । विनय रात्रा प्रत्यक्षतः एक प्राध्यापक है लेकिन वस्तुतः वह एक गुप्तचर है जो अपने देश अर्थात् भारत के लिए सम्पूर्ण निष्ठा, कुशलता एवम् साहस के साथ काम करते हुए राष्ट्र की सुरक्षा में संलग्न रहता है । उपन्यास की शुरुआत एक तूफ़ानी रात में घनघोर अंधकार और बरसात के माहौल में एक कार से एक लाश को वीराने में फेंके जाने के दृश्य से होती है लेकिन उसके बाद उपन्यास का घटनाक्रम विनय रात्रा के साथ-साथ ही चलता है । देश की धरती से दूर विदेशी धरा पर देश के हित में कार्यरत विनय को स्वदेश लौटकर एक निजी अभियान आरम्भ करना  पड़ता है – अपने भाई रोहन रात्रा की निर्मम हत्या की छानबीन करके हत्यारे तक पहुँचने का अभियान । यह कार्य सरल नहीं है क्योंकि इस कार्य के लिए उसे कोई विभागीय सहायता उपलब्ध नहीं है । यद्यपि निजी सम्बन्धों एवम् मित्रता के आधार पर वह विभाग में अपने सहकर्मी मथुरा प्रसाद का सहयोग प्राप्त कर लेता है, तथापि इस सत्य से वह परिचित है कि अधिकांश कार्य उसे अपने आप ही करना है । उसके लिए अच्छी बात यह होती है कि वह पूरी तरह अकेला नहीं पड़ जाता, राजेश नामक उसका एक मित्र एवम् विभाग में लिपिकीय स्तर का कामकाज देखने वाला युवक इस सिलसिले में उसकी परछाईं की मानिंद उसके साथ रहता है और उसके दर्द को समझते हुए उसकी भरपूर मदद करता है । विनय किस प्रकार विभिन्न लोगों से मिलते हुए और नगर के प्रभावशाली व्यक्तियों से टकराव मोल लेते हुए वास्तविक अपराधियों तक पहुँचता है, यह इस उपन्यास का शेष भाग बताता है ।

कँवल शर्मा ने उपन्यास में विनय रात्रा का प्रवेश ही अत्यंत प्रभावी और स्टाइलिश ढंग  से करवाया है । विनय रात्रा किसी गल्प के नायक की भाँति ही वन शॉट’ के पाठकों के समक्ष अवतरित होता है और उनके दिलों पर अपनी छाप छोड़ देता है । और सही मायनों में नायक तो वही होता है जो दिलों पर छाप छोड़ जाए । इस रूप में विनय रात्रा एक पारम्परिक नायक की मानिंद ही कथानक में आता है और अपनी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से उसी रूप में उसके अंत तक छाया रहता है । ये गतिविधियां दिमागी दांव-पेच, जासूसी, मारधाड़ और एक्शन के साथ-साथ वतनपरस्ती और इनसानी जज़्बात से भी लबरेज़ रहती हैं । उपन्यास के सारे वाक़यात क़त्ल और उसके राज़ के फ़ाश होने से जुड़े हुए नहीं हैं लेकिन वे नायक को नायक के रूप में स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाते हैं और इसीलिए अपनी अहमियत रखते हैं । उपन्यास के संवाद (विशेषतः नायक के संवाद) भी अत्यंत प्रभावशाली हैं जो उपन्यास की गुणवत्ता एवम् मनोरंजन-तत्व को बहुत अधिक बढ़ा देते हैं । लेखक हत्या के रहस्य को अंतिम पृष्ठों तक बनाए रखने में सफल रहा है जो एक उत्तम रहस्यकथा की पहचान है । उपन्यास का अंतिम दृश्य भी अत्यंत रोचक और प्रभावी है जो नायक के कद को और भी ऊंचा उठा देता है । सभी पात्र स्वाभाविक एवम् सजीव हैं तथा नायक के अतिरिक्त अन्य पात्रों को भी उभरने का अवसर मिला है जो इस बात का प्रमाण है कि लेखक ने उपन्यास-लेखन की विधा को भलीभाँति समझा और साधा है ।

उपन्यास में प्रयुक्त हिंदी सरल एवम् बोधगम्य होते हुए भी अपने भाषाई सौंदर्य को आद्योपांत बनाए रखती है (यद्यपि कहीं-कहीं यह प्रयोगधर्मी भी है) । उपन्यास में प्रूफ़-रीडिंग तथा सम्पादन की त्रुटियां हैं जो न होतीं तो यह उपन्यास अधिक सराहना का पात्र होता । कथ्य में कहीं-कहीं कसावट की कमी है लेकिन किसी भी स्थान पर मनोरंजन की कमी नहीं है । उपन्यास किसी कुशल निर्देशक द्वारा निर्मित साफ़-सुथरी बॉलीवुड फ़िल्म सरीखा सम्पूर्ण मनोरंजन प्रदान करता है जिसमें कहीं किसी प्रकार की अश्लीलता अथवा अभद्रता विद्यमान नहीं है । उपन्यास में क़त्ल के रहस्य के अतिरिक्त भी कई मनोरंजक घटक हैं जो पाठक को आदि से अंत तक उपन्यास से चिपकाए रखते हैं तथा समापन के उपरांत उसे संतुष्टि की सुखद अनुभूति होती है । इस उपन्यास को इसे पढ़ने वाले के लिए एक ऐसा रहस्यभरा सफ़र कहा जा सकता है जिसमें मंज़िल अहम तो है लेकिन सफ़र अपने आप में ऐसा दिलचस्प और ख़ुशनुमा है कि उसकी अहमियत भी मंज़िल से कुछ कम नहीं । इसीलिए मंज़िल मिल जाने के बाद भी (यानी रहस्य खुल जाने के बाद भी) ऐसे सफ़र को बार-बार करने का मन करता है । किसी रहस्यकथा की इतनी रिपीट वैल्यू होना उसके रचयिता की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । मैं स्वयम् वन शॉट’ को कई बार पढ़ चुका हूँ और मेरा आंकलन यही है कि जो भी हिंदी पाठक विनय रात्रा के साथ इस रहस्यभरी यात्रा को एक बार कर लेगा, वह इस यात्रा पर पुनः जाना चाहेगा ।

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