जीवन में प्रेम अधिकांश स्त्री-पुरुष करते हैं। लेकिन सभी अपने प्रेम को जीवन भर के लिए प्राप्त नहीं कर पाते। प्रेम किसी से हुआ होता है और विवाह किसी और से हो जाता है। ऐसे में अपने अतीत को पीछे छोड़कर वर्तमान को स्वीकार करना ही होता है। स्त्रियां इस कार्य को अधिक सुगमता से कर पाती हैं तथा विवाह की पवित्र अग्नि में अपने अतीत को भस्म करके एक नये जीवन का आरंभ कर लेती हैं क्योंकि उनकी मानसिकता परिवार तथा समाज के पारम्परिक परिवेश में विकसित हुई होती है। इसके अतिरिक्त विवाहोपरांत मातृत्व भी उनके जीवन का एक नया मोड़ होता है जिसके उपरांत वही उनके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य बन जाता है और अन्य सभी बातें पार्श्व में चली जाती हैं। ऐसे में विवाह-पूर्व का कोई संबंध उनके लिए अब कोई महत्व नहीं रखता।
किंतु अनेक पुरुष ऐसा नहीं कर पाते। वे अतीत में
विचरते हैं तथा वर्तमान में जिस संबंध में वे बंधे हैं उसे उतना महत्व नहीं दे
पाते जितना कि देना चाहिए। इसका उनके वैवाहिक जीवन पर अनुचित प्रभाव पड़ता है। होना तो यही चाहिए कि अतीत को पीछे छोड़कर वर्तमान
में ही जिया जाए तथा अपने जीवन-साथी को उसके सम्पूर्ण रूप में स्वीकार किया जाए
(बिना किसी से तुलना किए हुए)। चूंकि किसी भी प्रेम-संबंध में पुरुष एवं स्त्री दोनों ही सम्मिलित होते हैं, विवाहित पुरुष को यह समझना चाहिए कि उसकी तरह उसकी पत्नी का भी विवाह-पूर्व
का कोई संबंध हो सकता है जिसका वर्तमान संदर्भ में कोई महत्व नहीं है। यद्यपि किसी को
क्षमा करने वाली बात तर्कपूर्ण नहीं है क्योंकि प्रेम करना कोई अनुचित बात नहीं है, तथापि यदि पति चाहता है कि उसकी पत्नी उसके ऐसे किसी
(पूर्व) संबंध हेतु उसे क्षमा कर दे तो ऐसा ही क्षमाशील उसे भी अपनी पत्नी के
प्रति होना चाहिए।
‘कभी-कभी’ कॉलेज जीवन में अमित
(अमिताभ बच्चन) एवं पूजा (राखी) के प्रेम को बताती है। अमित शायर है तथा वह पूजा
के प्रेम से ही प्रेरित होकर शायरी करता है। परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि पूजा को
विजय (शशि कपूर) से विवाह करना पड़ता है। वह अमित से वचन लेती है कि वह शायरी करना
जारी रखेगा। अमित इस वचन को नहीं निभा पाता। वह अपने पिता के व्यवसाय में व्यस्त
हो जाता है तथा अंजलि (वहीदा रहमान) से विवाह कर लेता है। जहाँ विजय एवं पूजा एक
पुत्र विकी (ऋषि कपूर) के माता-पिता बनते हैं, वहीं अमित एवं अंजलि एक पुत्री स्वीटी (नसीम) के माता-पिता बनते हैं।
वर्षों बीत जाते हैं। बच्चे बड़े हो चुके हैं।
विकी को पिंकी (नीतू सिंह) से प्रेम हो जाता है। पिंकी को अचानक पता चलता है कि
उसे पालने वाले माता-पिता ने उसे गोद लिया था एवं उसके वास्तविक माता-पिता कोई और
हैं। वह अपनी माता की तलाश में निकलती है और अंजलि तक जा पहुँचती है जो कि उसकी वास्तविक माता है जिसने उसे विवाह से
पूर्व जन्म दिया था। उसे अपनी बच्ची को गोद इसलिए देना पड़ा था क्योंकि बच्ची के
पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी एवं उनका विवाह नहीं हो सका था। चूंकि उसने अपने
पति अमित को इस विषय में कुछ नहीं बताया था, वह पिंकी को अपनी बहन की बेटी बताकर परिवार
में परिचित करवाती है। विकी भी पिंकी के पीछे-पीछे वहीं जा पहुँचता है। अमित एवं अंजलि की पुत्री स्वीटी
उससे प्रेम करने लगती है।
इधर दूरदर्शन पर पूजा
द्वारा प्रस्तुत एक कार्यक्रम देखते समय विजय को ऐसा आभास होता है कि उसकी पत्नी
पूजा का विवाह से पूर्व अमित से प्रेम-संबंध था। वह स्वयं अमित की शायरी का
प्रशंसक रहा है एवं उसने अपनी सुहागरात को पूजा को अमित की ही शायरी की पुस्तक
भेंट की थी। जब अतीत से जुड़ी बातें वर्तमान में सतह पर आती हैं एवं सभी को पता
चलती हैं तो रिश्ते उलझ जाते हैं। अमित को पता चलता है कि पिंकी अंजलि की
विवाह-पूर्व की संतान है तो वह अंजलि से दूर हो जाता है। अंततः इन सभी लोगों का
विवेक जागृत होता है तथा वे अतीत को वर्तमान की वास्तविकता के साथ स्वीकार कर लेते
हैं। फ़िल्म के क्लाईमेक्स में विकी एक दुर्घटना से स्वीटी की जान बचाता है तथा उसे
अपने और पिंकी के प्रेम के विषय में बताता है तो उसके एवं पिंकी के संबंध में
स्वीटी की ग़लतफ़हमी दूर हो जाती है तथा वह उनके प्रेम को स्वीकार कर लेती है। अमित
भी पिंकी को अपनी पुत्री की तरह स्वीकार कर लेता है एवं अंजलि को स्वयं को छोड़कर
नहीं जाने देता।
यश चोपड़ा रोमांटिक
फ़िल्में बनाने में सिद्धहस्त माने जाते थे। इस फ़िल्म में भी उनकी इस प्रवीणता का
पता चलता है। फ़िल्म की कहानी उनकी पत्नी पामेला चोपड़ा ने लिखी है जबकि पटकथा सागर
सरहदी ने लिखी है जिसमें कई मोड़ हैं जो दर्शकों को बांधे रखते हैं । यश चोपड़ा ने फ़िल्म
की कथा को कहीं पर भी पटरी से नहीं उतरने दिया है तथा दर्शकों को फ़िल्म के परदे पर
उमड़ रहे भावनाओं के सागर में डूबने-उतराने का पूर्ण अवसर दिया है। चाहे युवा पीढ़ी
का रोमांस हो हो या परिपक्व व्यक्तियों का प्रेम,
वह वास्तविक लगता है, बनावटी नहीं। विवाहित स्त्री-पुरुषों द्वारा अपने अतीत एवं वर्तमान में सामंजस्य स्थापित करने को दर्शाने वाली इस फ़िल्म का प्रवाह
स्वाभाविक है एवं दर्शकों को अपने साथ बहाए ले चलता है। आदि से अंत तक रोचक इस
फ़िल्म की शूटिंग कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियों में की गई है तथा साहिर के गीतों पर ख़य्याम
ने मधुर संगीत दिया है। मुकेश का गाया हुआ गीत ‘कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल
आता है’ हिंदी फ़िल्म संगीत के इतिहास के सर्वाधिक लोकप्रिय
प्रेमगीतों में सम्मिलित किया जाता है। अन्य गीत भी अच्छे बन पड़े हैं।
यश चोपड़ा ने नवोदित नसीम सहित सभी कलाकारों
से अत्यन्त स्वाभाविक अभिनय करवाया है। वे सदा ही अमिताभ बच्चन, शशि
कपूर तथा राखी जैसे कलाकारों से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाने में सफल रहे
थे। ‘कभी-कभी’ में भी इन सभी कलाकारों
के साथ-साथ वहीदा रहमान, ऋषि कपूर एवं नीतू सिंह ने भी अपना
सर्वश्रेष्ठ ही दिया है। जिस प्रकार की कथा है, उसमें अपनी
आंतरिक भावनाओं का प्रदर्शन न्यूनतम प्रयास के साथ बिना किसी प्रकार की नाटकीयता
के किया जाना था। सभी कलाकार ऐसा करने में सफल रहे हैं।
यश चोपड़ा के बैनर ‘यश राज
फ़िल्म्स’ की प्रतिष्ठा के अनुरूप यह एक भव्य फ़िल्म है।
तकनीकी रूप से फ़िल्म उत्कृष्ट है। अनेक स्थलों पर यह फ़िल्म दर्शकों के मन पर एक
अमिट छाप छोड़ देती है। आँखों को सुहाने वाली तथा कानों में माधुर्य घोलने वाली इस
फ़िल्म को एक क्लासिक प्रेमकथा माना जाता है। वस्तुतः यह एक परिपक्व प्रेमकथा कही
जा सकती है जिसमें नई एवं पुरानी दोनों ही पीढ़ियों के लिए कुछ-न-कुछ है।
गुणवत्तापूर्ण सिनेमा के शौकीनों के लिए भी तथा अमिताभ, शशि, राखी, ऋषि जैसे कलाकारों के प्रशंसकों के लिए भी यह
फ़िल्म किसी तोहफ़े से कम नहीं।

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