बुधवार, 5 नवंबर 2025

वेद प्रकाश शर्मा और फ़ेयरफ़ैक्स स्कैंडल

स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा सदैव समसामयिक विषयों पर अपनी क़लम चलाने में विश्वास रखते थे। जब भी कोई घटना राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होने लगती थी, वे उस पर आधारित उपन्यास लिखने लगते थे (अथवा उस घटना को अपने उपन्यास में स्थान दे देते थे)। ऐसी ही एक घटना थी – १९८७ में भारत सरकार द्वारा फ़ेयरफ़ैक्स नामक अमरीकी संस्था को विदेशों में जमा भारतीय धन की जाँच का काम सौंपा जाना। कहा जाता है कि तत्कालीन भारतीय वित्त मंत्री वी.पी. सिंह ने यह कार्य अपने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सहमति के बिना किया था। इस बात पर संसद में विपक्ष ने बहुत शोर-शराबा किया था एवं अंततः सरकार ने इस मामले की जाँच हेतु एक आयोग का भी गठन किया था। आम जनता तो इस तथ्य से परिचित नहीं थी कि फ़ेयरफ़ैक्स संस्था वस्तुतः क्या थी एवं उसे भारत सरकार द्वारा क्या दायित्व सौंपा गया था किंतु समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से कुछ ऐसी धारणा बन गई कि वित्त मंत्री तो ईमानदार थे एवं विदेशों में जमा काले धन का पता लगाना चाहते थे जबकि प्रधानमंत्री ऐसा नहीं होने देना चाहते थे। मामले का सत्य तो आज तक छुपा हुआ ही है किंतु वेद प्रकाश शर्मा को इस मामले में अपने विजय-विकास सीरीज़ के उपन्यास की विषय-वस्तु मिल गई एवं उन्होंने दो भागों में विभाजित एक विस्तृत कथानक अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया।


इस कथानक के दो भागों के नाम हैं – 1. विजय और केशव पंडित तथा 2. कोख का मोती। वेद प्रकाश शर्मा ने इस उपन्यास में विजय, विकास तथा अपने इस सीरीज़ के अन्य स्थायी पात्रों के साथ-साथ अपने ही द्वारा सृजित केशव पंडित के पात्र को भी लिया। उपन्यास में उन्होंने फ़ेयरफ़ैक्स का नाम फ़ेवर फ़ैक्ट्स रख दिया तथा यह बताया कि यह संस्था कोबरा संगठन नामक एक विशाल अपराधी संगठन की एक शाखा थी। चूंकि यह धारणा थी (एवं अब भी है) कि काला धन स्विस बैंकों में रखा जाता है, वेद प्रकाश शर्मा ने उपन्यास में स्विस बैंक को स्वांग बैंक कहा। विजय और विकास भारतीय गुप्तचर हैं जिन्हें भारतीय सीक्रेट सर्विस के मुखिया द्वारा यह दायित्व सौंपा जाता है कि वे स्वांग बैंक में प्रधानमंत्री से संबंधित जो लॉकर है (जिसमें एक विशाल धनराशि जमा है), उसके स्वामित्व की जानकारी को किसी भी सूरत में सार्वजनिक न होने दें। इसके लिए उन्हें आवश्यकता है एक कलाई घड़ी (रिस्टवॉच) तथा अंगूठी (रिंग) की जिन पर स्वांग बैंक के संबंधित खाते के लॉकर नम्बर एवं लॉक नम्बर लिखे हुए हैं।

इधर केशव पंडित जो कि स्वयं वकील न होते हुए भी भारतीय कानून का ज्ञान वकीलों से अधिक रखता है, राजनगर (वेद प्रकाश शर्मा अपनी विजय विकास सीरीज़ के उपन्यासों का घटनाक्रम इसी काल्पनिक नगर में दर्शाते हैं) में अपनी एक संस्था खोल लेता है जो कि विभिन्न अपराधों में पकड़े गए व्यक्तियों को कानून से बचाने का कार्य शुल्क लेकर करती है। विकास जो कि ऐसी बातों को लेकर अपना आपा खो बैठता है, जाकर केशव एवं उसके कर्मचारियों से मारपीट करता है एवं दुकान को क्षतिग्रस्त कर देता है। अब केशव भी पलटवार करते हुए विकास को गिरफ़्तार करवा देता है। आइंदा घटनाक्रम कुछ ऐसी करवट लेता है कि विकास की मारपीट के कारण केशव की पत्नी सोनू का गर्भपात हो जाता है और उससे प्रतिशोध लेने के लिए केशव पंडित कोबरा संगठन में सम्मिलित हो जाता है। उसके उपरांत होते हैं केशव तथा विजय-विकास के साथ-साथ संपूर्ण भारतीय सीक्रेट सर्विस के बीच घात-प्रतिघात जो तब तक चलते हैं जब तक कि विजय-विकास रिस्टवॉच एवं रिंग प्राप्त नहीं कर लेते तथा उनके एवं केशव पंडित के मध्य की ग़लतफ़हमियां दूर नहीं हो जातीं। अंत में विजय-विकास तथा केशव पंडित कोबरा संगठन के मुख्यालय को भी नष्ट करवा देने में सफल हो जाते हैं।

वेद प्रकाश शर्मा ने उपन्यास एक बहुत बड़े कैनवास पर लिखा है जिसमें घटनाओं की भरमार है तथा विजय-विकास एवं केशव पंडित के टकराव को कोबरा संगठन की गतिविधियों तथा फ़ेवर फ़ैक्ट्स द्वारा स्वांग बैंक में लिए गए लॉकर के तथ्य से जोड़ा गया है। वेद जी ने केशव पंडित नामक पात्र का सृजन पृथक् रूप से किया था एवं कानून के अगाध ज्ञान के कारण वे उसे कानून का बेटा बताते हैं। केशव का पात्र इस उपन्यास में पूरी तरह से उभर कर आता है एवं उपन्यास के अधिकांश भाग तक ऐसा लगता है कि विजय-विकास एवं भारतीय सीक्रेट सर्विस के साथ अपने टकराव में केशव पंडित पूरी तरह दूसरे पक्ष पर हावी है। पर विजय-विकास सीरीज़ के उपन्यास में विजय-विकास की पराजय हो, यह संभव नहीं। उपन्यास के दूसरे भाग का नाम कोख का मोती इसलिए रखा गया है क्योंकि केशव अपनी पत्नी के (जिसका कि गर्भपात हो जाता है) गर्भ में पल रहे शिशु को कोख का मोती कहता है (जिसकी मृत्यु का प्रतिशोध उसे विकास से लेना है)।

इसके अतिरिक्त वेद जी ने विकास को जल्दी उत्तेजित हो जाने वाला तो बताया है पर साथ ही वे यह  भी बताते हैं कि विकास की देशभक्ति अटूट है एवं अपने देश के हित के लिए वह अपने प्राणों पर खेल जाने से भी नहीं हिचकता। वेद जी ने सदा यह भी बताया है कि विजय एक अत्यंत बुद्धिमान एवं ठंडे दिमाग़ वाला व्यक्ति है जो जल्दबाज़ी में कभी कोई ग़लत क़दम नहीं उठाता। वह शांत भाव से परिस्थिति पर विचार करता है एवं सूझबूझ से उचित निर्णय लेता है। उपन्यास में विजय-विकास सीरीज़ के अन्य पात्रों यथा सीक्रेट सर्विस के मुखिया ब्लैक ब्वॉय, अन्य सीक्रेट एजेंट, अंतर्राष्ट्रीय अपराधी अलफ़ांसे, विकास के माता-पिता (रैना एवं पुलिस सुपरिंटेंडेंट रघुनाथ), विजय के पिता ठाकुर निर्भयसिंह जो कि राजनगर पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल हैं, धनुषटंकार अथवा मोंटो नामक बंदर (जिसकी देह में मनुष्य का मस्तिष्क है) आदि को भी समुचित स्थान दिया गया है।

जहाँ तक फ़ेयरफ़ैक्स (वेद जी के लिए फ़ेवर फ़ैक्ट्स) मामले का संबंध है, वेद जी ने अपना यह दृष्टिकोण बताया है कि भारत के प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री दोनों ही ईमानदार थे। चूंकि लॉकर का लिया जाना गोपनीय राष्ट्रीय हितों से जुड़ा था, प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री से त्यागपत्र तो ले लिया किंतु उन दोनों ने लॉकर के रहस्य को उजागर नहीं होने दिया। वेद जी यह भी बताते हैं कि वित्त मंत्री को यह तथ्य पता नहीं था कि वह संस्था किसी अपराधी संगठन की शाखा है। इस प्रकार उन्होंने इस वास्तविक प्रकरण को अपने उपन्यासकार वाले मस्तिष्क से सुलझाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री दोनों को ही दुग्ध-धवल बताया जो कि सच्चे मन से देश के हित के लिए कार्य कर रहे थे एवं संयोगवश ही यह स्कैंडल उठ खड़ा हुआ था जिसके लिए कोई दोषी नहीं था।

उपन्यास के दोनों ही भाग अत्यन्त रोचक हैं। जहाँ पहले भाग में विकास ही अधिक दोषी दिखाई देता है, वहीं दूसरे भाग में केशव पंडित एक अपराधी सरीखा दिखाई देने लगता है। विजय को भी वेद जी ने उपन्यास के अधिकांश भाग में विवश-सा दिखाया है (उसे केशव पंडित कोबरा संगठन की क़ैद में डलवा देता है) पर उस स्थिति में भी वह कौनसी चाल चल रहा है, यह उत्सुकता का विषय बना रहता है। जहाँ केशव का ध्यान अपने कोख के मोती की मृत्यु के प्रतिशोध पर केंद्रित है, वहीं विजय का ध्यान दोतरफ़ा है – एक ओर उसे विकास को केशव एवं कोबरा संगठन की शक्ति से बचाना है, दूसरी ओर लॉकर के रहस्य को गोपनीय बनाए रखने के अभियान (मिशन) को भी पूरा करना है। पाठक इतना तो अंदाज़ा लगा सकते हैं कि प्रमुख पात्रों में से कोई मरेगा नहीं तथा केशव पंडित भी अंततः कोबरा संगठन जैसे अपराधी संगठन के साथ काम नहीं करेगा लेकिन घटनाक्रम अपने चरम तक कैसे पहुँचेगा एवं लॉकर का रहस्य वास्तव में क्या है, यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है। कोबरा संगठन के शक्ति-प्रदर्शन से आरंभ हुए इस उपन्यास का अंत विजय और केशव पंडित द्वारा कोबरा संगठन को पहुँचाई गई चोट से होता है। सभी प्रमुख स्थायी पात्र देशप्रेम से ओतप्रोत हैं।

उपन्यास प्रथम बार १९८७ में वेद प्रकाश शर्मा द्वारा आरम्भ की गई अपनी प्रकाशन संस्था तुलसी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था। अपनी रोचकता के साथ-साथ उन दिनों भारत में फ़ेयरफ़ैक्स मामले के सुर्खियां बटोरने तथा तत्कालीन वित्त (बाद में रक्षा) मंत्री के त्यागपत्र के संदर्भ में यह सामयिक भी था। आज भी इस विस्तृत कथानक को पढ़ना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है। यह वेद प्रकाश शर्मा के विजय-विकास सीरीज़ के संसार (उसमें उपस्थित परिवेश एवं पात्रों) से भी परिचय करवाता है। एक बार पढ़ना आरंभ कर देने के उपरांत इसे पूरा पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता। वेद जी तो दिवंगत हो चुके हैं किंतु उनका सृजन अब भी सुधी पाठकों हेतु उपलब्ध है एवं यह कथानक उनके श्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है, इसमें संदेह नहीं।

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