प्रसिद्ध फ़िल्मकार स्वर्गीय यश चोपड़ा प्रेमकथाओं के सुंदर चित्रण के लिए ही प्रमुखतः जाने जाते हैं यद्यपि उन्होंने ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’, ‘काला पत्थर’ जैसी फ़िल्मों का भी दिग्दर्शन किया जो प्रेमकथाओं से इतर विषयों पर आधारित थीं। १९८१ में उनके द्वारा निर्मित एवं निर्देशित फ़िल्म ‘सिलसिला’ प्रदर्शित हुई जो कि एक प्रेम-त्रिकोण के कथानक पर आधारित थी। यह फ़िल्म न केवल व्यावसायिक रूप से असफल रही वरन फ़िल्म-समीक्षकों की भी आलोचना का पात्र बनी। किन्तु आने वाले समय में इसे एक क्लासिक माना गया। आज भी माना जाता है। आइए, देखें कि क्यों यह प्रदर्शन के समय दर्शकों एवं समीक्षकों की सराहना नहीं पा सकी एवं क्यों अब यह एक क्लासिक की श्रेणी में रखी जाती है।
इस फ़िल्म की कास्टिंग कुछ ऐसी थी जिसने इसे
प्रदर्शन से पूर्व ही चर्चा का विषय बना दिया था। फ़िल्म में प्रमुख भूमिकाएं
अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी (बच्चन) एवं
रेखा की थीं (यद्यपि संजीव कुमार एवं मेहमान भूमिका में शशि कपूर भी इस फ़िल्म में
थे)। अमिताभ एवं जया वास्तविक जीवन में पति-पत्नी थे तथा विगत आठ वर्षों से (१९७३ से) विवाहित थे जबकि अमिताभ एवं रेखा के
रोमांस के चर्चे विगत चार-पाँच वर्षों से फ़िल्मी
दुनिया में चल रहे थे। अमिताभ और रेखा की जोड़ी दर्शकों में भी अत्यन्त लोकप्रिय
थी। ऐसे में फ़िल्मों से संन्यास ले चुकीं जया और उनके साथ रेखा को फ़िल्म में लेना
ही एक अत्यन्त कठिन कार्य था जो यश चोपड़ा कैसे कर सके, आज तक एक रहस्य ही है।
फ़िल्म की कथा में बताया गया है कि अमिताभ एवं
रेखा प्रेमी-युगल थे किन्तु अपने बड़े भाई शशि कपूर के आकस्मिक निधन के कारण अमिताभ
को जया से विवाह करना पड़ा जबकि रेखा का विवाह संजीव कुमार से हो गया। विवाह के कुछ
समय उपरांत अमिताभ एवं रेखा मिलते हैं तथा प्रेम की चिंगारी उनके मन में फिर से
भड़क उठती है। ऐसे में अमिताभ, जया एवं रेखा
का प्रेम-त्रिकोण बन जाता है (एक कोने पर संजीव कुमार भी विवश से इस विवाहेतर
प्रेम को देख रहे होते हैं)। अमिताभ जया को छोड़कर रेखा के साथ जीवन बिताने चल देते
हैं लेकिन समाज के बंधन उन्हें एवं रेखा को लौटने पर विवश कर देते हैं। अंत में
अमिताभ एक विमान दुर्घटना से संजीव कुमार की जान बचाते हैं तथा वे और रेखा
अपने-अपने परिवार में सीमित हो जाते हैं।
जया बच्चन वैसे भी विवाह के उपरांत फ़िल्मों से
दूर हो गई थीं। इस फ़िल्म के उपरांत वे पुनः अपनी घर-गृहस्थी में रम गईं तथा अनेक
वर्षों तक रजतपट पर दिखाई नहीं दीं। पर विशेष बात यह है कि अमिताभ ने रेखा के साथ
अपनी जोड़ी की लोकप्रियता के बावजूद आगे उनके साथ कोई फ़िल्म नहीं की और यही फ़िल्म
उनकी एवं रेखा की एक साथ आई हुई अंतिम फ़िल्म सिद्ध हुई। वास्तविक जीवन में भी उनके
मध्य दूरियां आ गईं जो आज तक अनुभव की जाती हैं। जया ने संजीव कुमार के साथ
बहुत-सी फ़िल्में की थीं जिन्हें उन दोनों के सामूहिक अभिनय ने जीवंत तथा प्रभावशाली
बना दिया था लेकिन ‘सिलसिला’ उन दोनों की भी एक साथ की गई अन्तिम फ़िल्म सिद्ध हुई।
फ़िल्म के गीत-संगीत के लिए यश चोपड़ा ने
सुप्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा तथा सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित
हरिप्रसाद चौरसिया को (शिव-हरि के नाम से) लिया था तथा इन दोनों ही असाधारण
कलाकारों ने फ़िल्म का संगीत सृजित करने के अपने दायित्व का निर्वहन बहुत अच्छे ढंग
से किया। ‘ये कहाँ आ गए हम’, ‘नीला आसमां सो गया’, ‘देखा एक
ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए’, ‘रंग बरसे’ आदि गीत तो अत्यन्त लोकप्रिय हुए ही, अन्य गीत भी बहुत अच्छे बन पड़े। आज यदि इस फ़िल्म को एक
क्लासिक का दरज़ा मिला है तो इसमें इसके गीत-संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान है।
समय के साथ-साथ समाज की सोच भी बदली। और इसीलिए
शायद कुछ वर्षों बाद ‘सिलसिला’ को क्लासिक माना गया। पर सच यही है कि चाहे कोई भी समाज हो, विवाह की संस्था अपना जो महत्व रखती है, उसे हलके में नहीं लिया जा सकता। इस संस्था के बाहर किसी
अन्य के साथ प्रेम-संबंध रखना न तो पति के लिए वांछनीय है, न ही पत्नी के लिए। इसीलिए ‘सिलसिला’ का कथ्य न तो उस ज़माने में
गले उतरने वाला था, न ही आज है।
आज यह फ़िल्म पसंद भी की जाती है एवं सराही भी जाती है पर इसका संदेश आज भी
स्वीकार्य नहीं है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि यह एक सुंदर किंतु
त्रुटिपूर्ण फ़िल्म है।
‘सिलसिला’ के असफल होने के उपरांत यश
चोपड़ा ने आने वाले कुछ वर्षों तक प्रेमकथाएं नहीं रचीं। पर न तो वे ‘सिलसिला’ को भूल पाए और
न ही उसकी असफलता को पचा पाए। आठ वर्षों के उपरांत १९८९ में वे ‘चांदनी’ के रूप में एक और प्रेमकथा लेकर आए (वह भी प्रेम-त्रिकोण
ही है) जिसमें उन्होंने ‘शिव-हरि को ही
संगीतकार के रूप में लिया। फ़िल्म की नायिका का नाम उन्होंने ‘चांदनी’ ही रखा जो कि ‘सिलसिला’ में रेखा के
चरित्र का नाम था। ‘सिलसिला’ तो असफल रही थी किंतु श्रीदेवी अभिनीत ‘चांदनी’ ने अभूतपूर्व
व्यावसायिक सफलता अर्जित की।
‘सिलसिला’ में जो प्रेम-त्रिकोण
दिखाया गया था उसने फ़िल्म के प्रदर्शन के उपरांत वास्तविक जीवन में उसी प्रेम-त्रिकोण
का पटाक्षेप कर दिया। फ़िल्म पर बहुत कुछ कहा गया था और आज भी कहा जाता है। मैं तो
यही कहूंगा कि इसे देखा जा सकता है और विचार किया जा सकता है कि वैवाहिक जीवन में
प्रवेश कर लेने के उपरांत उससे बाहर का प्रेम-संबंध कितना उचित है। अमिताभ और रेखा
तो इसे समझ गए। हम भी समझ लें तो क्या हर्ज़ है ?
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सुंदर समीक्षा
जवाब देंहटाएंशुक्रवार तक लोगों को पढ़ने दीजिए
नहीं तो मैं शनिवार को पढ़वाउंगी
सादर
हृदयतल से आपका आभार माननीया यशोदा जी
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