महान नाटककार शेक्सपियर द्वारा रचित नाटक फ़िल्मकारों हेतु सदा ही प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। इसीलिए उन नाटकों की कथाओं पर आधारित अनेक फ़िल्में बनी हैं। ऐसा ही एक नाटक ‘ओथेलो’ है जिसके कथानक का आधार मुख्य पात्र का अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह करना है। इसके आधार पर इक्कीसवीं सदी में विशाल भारद्वाज ने ‘ओमकारा’ नामक फ़िल्म बनाई थी। किंतु मैं एक ऐसी फ़िल्म के बारे में बात करूंगा जो कि कई दशक पूर्व १९६७ में प्रदर्शित हुई थी। यह फ़िल्म है – ‘हमराज़’ जिसका निर्माण एवं निर्देशन किया था – सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार बी.आर. चोपड़ा ने।
‘हमराज़’ एक प्रेमकथा के रूप में आरंभ होती है किंतु मध्य तक आते-आते एक रहस्यकथा का रूप धारण कर लेती है। फ़िल्म की नायिका मीना (विमी) अपने प्रेमी राजेश (राजकुमार) जो कि एक सैनिक है, से गुप्त विवाह कर लेती है। राजेश के युद्ध में मारे जाने का समाचार आता है। मीना गर्भवती होती है जिसे प्रसव के उपरांत बताया जाता है कि उसका शिशु जीवित नहीं रहा। कुछ समय के उपरांत उसके जीवन में एक कलाकार कुमार (सुनील दत्त) का प्रवेश होता है जिससे मीना विवाह कर लेती है। मीना कुमार को अपने अतीत के विषय में कुछ नहीं बताती। कुछ वर्षों के उपरांत उसके पिता अपनी मृत्यु से पूर्व उसे बताते हैं कि उसका शिशु जो कि एक बालिका है, जीवित है तथा वह एक अनाथ-आश्रम में पल रही है। अब मीना अपनी बच्ची से मिल तो लेती है किंतु उसे गोद नहीं ले पाती क्योंकि कुमार इसके पक्ष में नहीं है।
फ़िल्म की वास्तविक कहानी अब आरंभ होती है जो कि ‘ओथेलो’ से प्रेरित है (कुमार को रंगमंच पर भी ‘ओथेलो’ नाटक में शीर्षक भूमिका निभाते हुए ही दिखाया गया है)। नव वर्ष की पार्टी में मीना को राजेश का एक पुराना मित्र मिलता है जो कि उसे उसके द्वारा राजेश को लिखे गए प्रेमपत्रों के विषय में बताता है। अगले दिन मीना के पास उसका फ़ोन आता है। अब एक ओर तो मीना की गतिविधियां कुमार को संदेह में डालती हैं, दूसरी ओर दर्शकों को किसी पात्र के केवल पैर दिखाए जाते हैं जिनमें वह पात्र दो रंगों वाले जूते पहनता है। यह दोरंगे जूते पहनने वाला कौन है, दर्शक इसका केवल अनुमान ही लगा सकते हैं। लेकिन इससे फ़िल्म में रहस्य बहुत उत्पन्न होता है।
बहरहाल कुमार को अपनी पत्नी मीना पर संदेह हो जाता है तथा वह शहर से बाहर जाने का बहाना करके तथा वेश बदलकर उस पर नज़र रखता है। उसी रात मीना की हत्या हो जाती है। पुलिस को इस हत्या के लिए कुमार पर ही संदेह होता है। अब कुमार को एक ओर तो पुलिस से बचना है, दूसरी ओर मीना के हत्यारे का भी पता लगाना है। इधर दोरंगे जूतों वाला भी सक्रिय है जो कुमार के घर में घुसकर कुछ काग़ज़ात चुरा ले जाता है। यह रहस्यपूर्ण आख्यान एक प्रबल जलधारा की भांति दर्शकों को अपने साथ बहाए ले चलता है। आख़िर में दोरंगे जूतों वाले की वास्तविकता भी पता चलती है तथा मीना के हत्यारे की भी। फ़िल्म का नाम ‘हमराज़’ (ऐसा व्यक्ति जिसे आप अपनी कोई गोपनीय बात बताते हैं) रखा जाने का कारण भी स्पष्ट होता है।
‘हमराज़’ एक अत्यंत रोचक फ़िल्म है जो यह बताती है कि पति-पत्नी को एकदूसरे पर संदेह करने के स्थान पर विश्वास करना चाहिए एवं एकदूसरे को अपने विश्वास में लेना चाहिए। विश्वास से समस्याएं हल होती हैं जबकि संदेह से समस्याएं जन्म लेती हैं। फ़िल्म में लेखक एवं निर्देशक ने कहीं पर भी समय नष्ट नहीं किया है। उस युग में बॉलीवुड की फ़िल्मों में एक हास्य का ट्रैक रखा जाता था। ऐसा कोई ट्रैक ‘हमराज़’ में नहीं रखा गया है। न ही कोई हास्य कलाकार इसमें है। फ़िल्म की प्रत्येक बात, प्रत्येक घटना, प्रत्येक दृश्य सार्थक है एवं मुख्य कथानक से संबद्ध है। फ़िल्म में गीत अवश्य हैं किंतु न केवल वे अत्यंत सुरीले हैं वरन कथानक को आगे बढ़ाने वाले हैं। और विशेष बात यह है कि सभी गीत (कुल पाँच) फ़िल्म के पहले घंटे में ही आ जाते हैं जिसके उपरांत केवल फ़िल्म की कहानी तीव्र गति से आगे बढ़ती है जिसमें किसी गीत का कोई व्यवधान नहीं आता। दर्शक को फ़िल्मकार घड़ी देखने का कोई अवसर नहीं देता। फ़िल्म देखने वाला प्रारंभ से अंत तक पटल से बंधा रहता है।
‘हमराज़’ संगीतमय प्रेमकथा देखने वालों के लिए भी है तो रहस्यकथाएं पसंद करने वालों के लिए भी। कलाकारों ने प्रभावशाली अभिनय किया है और बी.आर. चोपड़ा का निर्देशन बेहतरीन है। शायद ही किसी और फ़िल्म में किसी पात्र के जूतों को रहस्य उत्पन्न करने वाली बात के रूप में इस प्रकार काम में लिया गया हो जिस प्रकार ‘हमराज़’ में लिया गया है। इसी कहानी को १९९४ में ‘इम्तिहान’ के नाम से पुनः बनाया गया था किंतु वह फ़िल्म ‘हमराज़’ की भांति प्रभावशाली नहीं रही। अंत में मैं यही कहूंगा कि पुरानी अच्छी फ़िल्में देखने के शौकीन लोगों के लिए ‘हमराज़’ किसी उपहार से कम नहीं।
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मैं तुम्हारी ऑंटी का आंटा
जवाब देंहटाएंयाद आय़ा कि नहीं
आभार पूरी फिल्म ही दिखा दी आपने
सादर
हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी
हटाएंहमेशा की तरह बहुत ही सुंदर विवेचन किया है आपने। जीतेन्द्र भाई। फिल्म देखने की इच्छा जागृत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया ज्योति जी। फ़िल्म अवश्य देखिए। सचमुच बहुत ही अच्छी है।
हटाएंHey Mr. Jitendra! Read your review of DDLJ on IMDB a few minutes ago and then chanced upon your blogs, let me just say I'm so glad to have found someone who loves movies, shows, music and writing so much, I have similar interests and would love to chat with you!
जवाब देंहटाएंAlso I noticed that you have written a Hindi book as well? I would love to read that!
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Hearty thanks Sarthak. Hope to interact with you in future.
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