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शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

दुनिया से निराले, मतवाले जादूगर की दास्तान

श्री पराग डिमरी मेरे अत्यंत प्रिय मित्र हैं और हम दोनों के स्वभाव की समानताओं के अतिरिक्त जो दो तथ्य हमें निकट लेकर आए (विगत आठ-नौ वर्षों से हमारी मित्रता अनवरत चल रही है), वे हैं – श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित उपन्यासों का रसिया होना तथा संगीत से लगाव । मैं यह जानता था कि पराग जी संगीत में गहन रुचि रखते हैं एवम् स्वर्गीय ओ.पी. नैय्यर साहब द्वारा सृजित गीतों के प्रति उनका अनुराग असाधारण है लेकिन मैं यह कभी नहीं भाँप सका था कि इस संबंध में उनका ज्ञान इतना अधिक है जब तक कि मैंने उनके द्वारा रचित पुस्तक – दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँनहीं पढ़ी थी ।

दुनिया से निराला हूँ, जादूगर मतवाला हूँओ.पी. नैय्यर के नाम से सुविख्यात ओंकार प्रसाद नैय्यर की दास्तान है, जीवन-कथा है । नैय्यर साहब सचमुच ही निराले थे, दूसरों से अलग थे, फिल्मी संगीतकारों की भीड़ में अपना अलग ही अस्तित्व, अलग ही परिचय रखते थे । वे अतुलनीय संगीतकार थे जिसने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी और जिसे शास्त्रीय संगीत का आधारभूत ज्ञान तक नहीं था लेकिन जिसकी बनाई हुई धुनों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाला सम्मोहन था । उन्हें सदा एक ऐसे संगीतकार के रूप में स्मरण किया जाएगा जिसने स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर से कभी कोई गीत नहीं गवाया । यहाँ तक कि लता मंगेशकर के नाम से दिए जाने वाले सरकारी सम्मान को भी उन्होंने निस्संकोच ठुकरा दिया था ।

सम्प्रति समीक्षाधीन पुस्तक के रचयिता पराग डिमरी इस अनूठे संगीतकार के मुरीद हैं जिन्होंने इस पुस्तक को अत्यंत परिश्रमपूर्वक लिखा है और इसके लिए गहन शोध द्वारा प्रामाणिक तथ्य एकत्र किए हैं । न केवल नैय्यर साहब के निजी तथा कार्यसाधक जीवन वरन उनके सृजन से संबंधित तथ्यों के वर्णन की भी एक-एक पंक्ति, एक-एक शब्द डिमरी जी की निष्ठा, श्रम तथा सुरों के इस जादूगर के प्रति उनकी अनन्य आस्था को प्रतिबिम्बित करता है । परंतु इसके साथ-साथ यह श्रेय भी उन्हें देना ही होगा कि उन्होंने  भावनाओं में बहकर किसी अंधभक्त की भाँति लेखन नहीं किया है । उनका लेखन-कार्य पूर्णरूपेण वस्तुपरक एवम् निष्पक्ष है और इसीलिए विश्वसनीय है । स्वयम् मुरीद होकर भी उन्होंने अपने आराध्य को पीर-पैगम्बर या भगवान के समकक्ष न रखते हुए दुर्बलताओं से युक्त एक साधारण मानव के रूप में ही चित्रित किया है ।     

ओ.पी. नैय्यर मनमौजी थे और काम के साथ-साथ जीवन का भरपूर आनंद लेने में विश्वास रखते थे । सम्पूर्ण जीवन अपनी शर्तों पर जीने वाले इस अलबेले संगीतकार ने अपनी ज़िन्दगी का अंदाज़ हमेशा  शानो-शौक़त और स्टाइल से लबरेज़ रखा । अपनी रसिकमिज़ाजी के कारण महिलाओं का साथ उन्हें बहुत भाता था । संभवतः महिलाएं उनके सृजन के लिए प्रेरणा-स्रोत की भाँति थीं । इसके कारण उन्होंने अपने परिवार के प्रति दायित्वों से तो मुंह नहीं मोड़ा लेकिन अपने जीवन की संध्या में वे संगीत से मुंह मोड़कर अपना वार्धक्य एक ऐसे अजनबी परिवार (नख़वा परिवार) के साथ बिताने लगे जिससे उनके संबंध को समझ पाना किसी बाहरी व्यक्ति के लिए  असम्भव ही था (और है) । उन्होंने गीता दत्त तथा लता मंगेशकर की बहन आशा भोसले को गायिकाओं के रूप में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई (चाहे आज आशा इसे स्वीकार न करती हों) । लेकिन गुरु दत्त को आत्मघात से न रोक पाने तथा गीता दत्त के जीवन के बुरे दौर में उन्हें सहारा न देने के लिए वे स्वयं को कभी मा नहीं कर सके और इन बातों के लिए आजीवन पछताते रहे । उनके स्वभाव का अक्खड़पन भी सदा बना रहा – जैसा उनके बेहतरीन वक़्त में था, वैसा ही उनके ढलते दौर में भी रहा । लेकिन भारतीय फ़िल्मी संगीत में शास्त्रीय परम्परा से हटकर नवाचरण की नई बयार चलाने वाले इस विद्रोही संगीतकार ने प्रत्येक फ़िल्म में अपना सर्वश्रेष्ठ ही दिया चाहे फ़िल्म किसी प्रतिष्ठित निर्माता की हो या फिर वह किसी छोटे निर्माता द्वारा बनाई गई दोयम दर्ज़े की फ़िल्म रही हो । अपने मिज़ाज के साथ समझौता नहीं करने वाले ओ.पी. नैय्यर ने कभी अपने काम की बेहतरी और पैसा देने वाले को उसका पूरा सिला देने की अपनी ईमानदाराना नीयत से भी कभी समझौता नहीं किया । नतीज़ा यह रहा कि लोग चाहे फ़िल्मों को भूल गए, ओ.पी. नैय्यर द्वारा रचे गए उनके गीतों को नहीं भूले । इन सभी तथा ओ.पी. नैय्यर के जीवन से संबंधित ऐसे अनेक अन्य तथ्यों को लेखक ने विभिन्न अध्यायों में विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है ।

शब्दों में पिरोए गए महत्वपूर्ण तथ्यों के अतिरिक्त जो बात इस पुस्तक को विशिष्ट एवम् संग्रहणीय बनाती है, वह है उस बीत चुके स्वर्णिम युग की दुर्लभ तसवीरें । जो श्वेत-श्याम चित्र लेखक ने अपने अनथक परिश्रम से जुटाए हैं, उन्होंने इस किताब को केवल ओ.पी. नैय्यर की संगीत-यात्रा के ही नहीं, वरन हिंदी फ़िल्मों के इतिहास के एक अहम दस्तावेज़ में बदल डाला है । ओ.पी. नैय्यर के साथ-साथ विभिन्न गायक-गायिकाओं, गीतकारों, संगीतकारों और फ़िल्म-जगत के स्वनामधन्य लोगों की छवियां दर्शाते ये चित्र सच्चे संगीत-प्रेमियों के लिए उस युग का झरोखा हैं जब गीत-संगीत केवल एक व्यवसाय-मात्र न होकर एक साधना हुआ करता था

किताब की ख़ामियों की अगर बात की जाए तो यह कहना ही होगा कि प्रूफ़-रीडिंग स्तरीय नहीं है और अशुद्धियों की भरमार है । पुस्तक का विन्यास भी बेहतर हो सकता था । कुछ अध्यायों के शीर्षक भिन्न और अधिक उपयुक्त हो सकते थे । अलबत्ता कागज़ और छपाई की गुणवत्ता उच्च है तथा आवरण-पृष्ठ भी आकर्षक एवम् प्रशंसनीय है । चूंकि यह लेखक का प्रथम प्रयास है, अतः सिने-संगीत के प्रेमी विशेषतः ओ.पी. नैय्यर के प्रशंसक पुस्तक की त्रुटियों को क्षम्य मानकर उदार हृदय से इसे स्वीकार कर सकते हैं । आशा है, लेखक इन बातों को अपने ध्यान में रखेंगे तथा सुनिश्चित करेंगे कि उनकी अगली पुस्तक दोषमुक्त हो एवम् उसका प्रस्तुतीकरण बेहतर हो । बहरहाल ओ.पी. नैय्यर की मौसीक़ी के शैदाइयों के लिए यह किताब एक अनमोल तोहफ़ा है, इस बात में शक़ की कोई गुंजाइश नहीं ।

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14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०१-२०२१) को 'टीस'(चर्चा अंक-३९५५ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. ओ.पी. नैय्यर जैसे मौलिक संगीतकार पर पूरी किताब लिखना कोई छोटी बात नहीं... वाकई बड़ा काम है यह...लेखक पराग डिमरी को बधाई🙏

    ... और इस पुस्तक पर सारगर्भित समीक्षा लिखने तथा ब्लॉग पाठकों को परिचित कराने के महती कार्य के लिए आपको साधुवाद सहित अनंत शुभकामनाएं आदरणीय माथुर जी 🙏

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  3. बहुत बढ़िया समीक्षा, जितेंद्र भाई।

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  4. पराग डिमरी साहब को बहुत बहुत बधाई! बहुत शानदार तथ्यों के साथ मौलिक लेखन शोध परक सृजन!
    पुस्तक समीक्षा पुस्तक के प्रति रूचि बढ़ा रही है साथ ही ओ पी नैयर साहब के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ा रही है।
    लेखक समीक्षक दोनों को शानदार लेखन की बधाई एवं साधुवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी आपका । पुस्तक पठनीय भी है एवं संग्रहणीय भी ।

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  5. ओ.पी.नैय्यर जी पर लिखी गई पराग डिमरी की पुस्तक की बेहतरीन समीक्षा के लिए बधाई। आपकी समीक्षा ने इस पुस्तक को पढ़ने की इच्छा जगा दी है। उम्दा लेखन के लिए साधुवाद माथुर जी 🌹🙏🌹
    - डॉ शरद सिंह

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  6. हार्दिक आभार माननीया शरद जी । यदि आप संगीत-प्रेमी हैं तो इसे अवश्य पढ़िए ।

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