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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

भारतीय क्रिकेट टीम के संकटमोचन : बिन्नी और मदन

अब जबकि भारतीय क्रिकेट दल द्वारा शक्तिशाली ऑस्ट्रेलियाई दल को उसके घर में ही पराजित करके विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप में  अंकतालिका के शीर्ष पर विराजमान होने पर भारतीय क्रिकेट-प्रेमी मंत्रमुग्ध हो रहे हैं तो मुझे दो ऐसे भारतीय हरफ़नमौला (ऑलराउंडर) खिलाड़ियों की याद आ रही है जिन्होंने न केवल १९८३ के विश्व कप में एवं उसके दो वर्षों के भीतर ही ऑस्ट्रेलिया में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में भारत की ऐतिहासिक विजयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी वरन अस्सी के दशक में विभिन्न टेस्ट मैचों में भी भारतीय क्रिकेट दल के लिए संकटमोचन सिद्ध हुए थे । ये कभी हिम्मत न हारने वाले एवं जीवट के धनी हरफ़नमौला थे - मदन लाल तथा रोजर बिन्नी ।

रोजर माइकल हम्फ़्री बिन्नी ने १९७९ में भारत के लिए पहला मैच खेला लेकिन इस प्रतिभाशाली ऑलराउंडर को अपनी पहली टेस्ट शृंखला में गेंद और बल्ले दोनों ही से संतोषजनक प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय चयनकर्ताओं का विश्वास जीतने में लंबा समय लगा । जल्दी ही उन्हें भारतीय दल से बाहर कर दिया गया जिसके लिए चयनकर्ताओं की आलोचना भी हुई । आख़िर १९८३ के विश्व कप के लिए कपिल देव के नेतृत्व में जब भारतीय दल का चयन हुआ, तब बिन्नी को अवसर मिला तथा उन्होंने इस अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए अपने शानदार प्रदर्शन से भारत की अविस्मरणीय विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारतीय टेस्ट एवं एकदिवसीय क्रिकेट टीम में अपने लिए पक्का स्थान बनाया जिसके बाद वे बीच-बीच में दल से बाहर होते रहने के बावजूद १९८७ तक भारत के लिए खेले ।


मदन लाल शर्मा को भारत के लिए खेलने का अवसर १९७४ में ही मिल गया था जिसके बाद उन्होंने भारत के लिए टेस्ट ही नहीं, सीमित ओवरों के एक दिवसीय मैच भी उन दिनों खेले, जिन दिनों यह प्रारूप अपनी शैशवावस्था में था । मदन लाल को विश्व कप क्रिकेट की पहली गेंद फेंकने (बाउल करने) का श्रेय प्राप्त हुआ जब उन्होंने १९७५ में इंग्लैंड में हुए पहले विश्व कप के उद्घाटन मैच में इंग्लैंड के ही विरुद्ध नई गेंद से भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण की शुरुआत की और अपना नाम इतिहास में लिखवा लिया । वे भारतीय क्रिकेट की एक ऐतिहासिक उपलब्धि के भी साक्षी बने जब १९७६ में भारत ने वेस्ट इंडीज़ की अत्यंत शक्तिशाली टीम को पोर्ट ऑव स्पेन टेस्ट में चौथी पारी में चार सौ से भी अधिक रनों का लक्ष्य प्राप्त करके हरा दिया । इस टेस्ट में मदन लाल ने भारत की पहली पारी में सर्वाधिक ४२ रन बनाए थे जबकि दूसरी पारी में वे मैदान में बृजेश पटेल के साथ उस ऐतिहासिक क्षण में उपस्थित थे जब विजयी लक्ष्य प्राप्त हुआ । भारतीय क्रिकेट में कपिल देव का युग आरंभ होने के बाद प्रायः मदन लाल ही उनके नई गेंद के जोड़ीदार रहे तथा १९८१ में बंबई टेस्ट में जब भारत ने इंग्लैंड को दूसरी पारी में केवल १०२ रन पर धराशायी करके टेस्ट जीता था तो मदन लाल ने केवल २३ रन देकर पाँच विकेट लिए थे । १९८२-८३ में छः टेस्ट मैचों के पाकिस्तान दौरे में भारत बुरी तरह हार गया लेकिन मदन लाल ने इमरान ख़ान की ख़ौफ़नाक स्विंग गेंदबाज़ी का ज़ोरदार तरीके से सामना किया तथा कराची टेस्ट की दूसरी पारी में नॉट आउट रहते हुए ५२ रन तथा फ़ैसलाबाद टेस्ट की पहली पारी में ५४ रन बनाए । यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उस ज़माने में वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ आउट-फ़ील्डरों में से एक थे । घरेलू क्रिकेट में भी वे भरपूर योगदान देते थे । परंतु रोजर बिन्नी की ही भाँति मदन लाल को भी भारतीय चयनकर्ताओं का विश्वास लगातार नहीं मिल सका । अतः वे भी भारतीय दल में कभी ले लिए जाते थे तो कभी बाहर कर दिए जाते थे । अंततः उनके भी अंतर्राष्ट्रीय खेल जीवन का स्वर्णिम अध्याय १९८३ का विश्व कप ही बना ।

१९८३ के विश्व कप के लिए जब कपिल देव के नेतृत्व में चौदह सदस्यीय भारतीय दल चुना गया तो मदन लाल को तो चुना ही गया, रोजर बिन्नी को भी लंबे समय के उपरांत वापस बुलाया गया । दोनों ने ही अपनी धारदार गेंदबाज़ी का कमाल पहले ही मैच से दिखाना शुरु कर दिया जब पहले के दोनों विश्व कपों में एक भी मैच न हारने वाली शक्तिशाली वेस्ट इंडीज़ टीम को भारत ने पहले ही मैच में चौंतीस रन से हरा दिया । इस मैच में बिन्नी ने तीन महत्वपूर्ण विकेट लिए । अगले ही मैच में मदन ने तीन महत्वपूर्ण विकेट लेकर मैन ऑव द मैच का पुरस्कार जीता जब भारत ने ज़िम्बाब्वे की टीम पर आसान जीत दर्ज़ की । आगे के दो मैच बुरी तरह से हारने के बाद ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध दूसरे मैच में भी भारत पर पराजय का संकट आ खड़ा हुआ जब भारत ने केवल १७ रन के कुल योग पर पाँच विकेट खो दिए । ऐसे में कपिल देव ने नॉट आउट रहते हुए १७५ रनों की असाधारण पारी खेली और भारत को सुरक्षित स्कोर तक पहुँचाया । लेकिन कपिल की यह ऐतिहासिक पारी बिना साझेदारों के संभव नहीं हो सकती थी । पहले बिन्नी ने उनका साथ दिया और छठे विकेट के लिए ६० रन जोड़े । फिर मदन उनके साथी बने और आठवें विकेट के लिए ६२ रन की भागीदारी हुई (आख़िर में कपिल का साथ विकेटकीपर किरमानी ने दिया जिन्होंने उनके साथ १२६ रनों की अविजित साझेदारी की) । 

अब भारत फिर से सेमीफ़ाइनल की दौड़ में आ गया था लेकिन अंतिम मैच ऑस्ट्रेलिया के साथ था जिसने भारत को पहले मैच में बहुत बुरी तरह (१६२ रनों से) हराया था । भारत ने ऑस्ट्रेलिया को २४८ रन का लक्ष्य दिया जिसके जवाब में मदन और बिन्नी की धारदार गेंदबाज़ी के सामने ऑस्ट्रेलियाई टीम चारों खाने चित्त हो गई और भारत ने ११८ रनों की शाही जीत के साथ शान से सेमीफ़ाइनल में प्रवेश किया । बिन्नी ने चार विकेट लेकर ऑस्ट्रेलियाई पारी की रीढ़ तोड़ दी और मैन ऑव द मैच बने जबकि मदन ने भी चार विकेट लेकर ऑस्ट्रेलियाई पारी का परदा गिरा दिया ।

सेमीफ़ाइनल में इंग्लैंड को सहजता से पराजित करके भारत फ़ाइनल में पहुँचा जहाँ क्लाइव लॉयड के नेतृत्व में शक्तिशाली वेस्ट इंडीज़ की टीम लगातार तीसरा विश्व कप जीतने के लिए तैयार बैठी थी । वेस्ट इंडीज़ के ख़तरनाक तेज़ गेंदबाज़ों ने भारतीय पारी को केवल १८३ रनों पर समेट दिया लेकिन भारत ने ज़ोरदार जवाबी प्रहार किया और मदन लाल ने तीन विकेट लेकर वेस्ट इंडियन पारी की कमर तोड़ दी । इन तीन विकेटों में विवियन रिचर्ड्स का बेशकीमती विकेट भी शामिल था जिसका कपिल देव ने पीछे की ओर भागते हुए असाधारण कैच लपका था । रोजर बिन्नी ने वेस्ट इंडीज़ के कप्तान लॉयड को आउट किया और अंततः भारत ने तैंतालीस रनों से मैच, फ़ाइनल और कप जीतकर इतिहास रच दिया । पूरे विश्व कप में बिन्नी और मदन की गेंदबाज़ी छाई रही । जहाँ बिन्नी ने सर्वाधिक अट्ठारह विकेट लिए, वहीं मदन ने सतरह विकेट लिए । 

कुछ महीनों बाद पाकिस्तान की टीम भारतीय दौरे पर आई जिसमें इमरान ख़ान और अब्दुल क़ादिर जैसे कई बड़े खिलाड़ी शामिल नहीं थे । लेकिन बंगलौर में खेले गए पहले टेस्ट में पाकिस्तान के दोयम दर्ज़े के गेंदबाज़ी आक्रमण के सामने भारत के सूरमा बल्लेबाज़ों ने घुटने टेक दिए और भारत ने ८५ रनों पर ही छः विकेट खो दिए  । ऐसे में रोजर बिन्नी और मदन लाल भारत के लिए संकटमोचन बने और उन्होंने सातवें विकेट पर १५५ रनों की रिकॉर्ड साझेदारी निभाकर भारत को संकट से निकाला । बिन्नी अंत तक आउट नहीं हुए और उन्होंने ८३ रन बनाए जबकि मदन ने ७४ रन बनाए । दोनों के ही टेस्ट करियर के ये सर्वोच्च स्कोर रहे । मदन ने तीन महत्वपूर्ण विकेट भी लिए और मैन ऑव द मैच का पुरस्कार जीता ।

इसी शृंखला के दूसरे टेस्ट (जालंधर) में बिन्नी ने अपना लगातार दूसरा अर्द्धशतक (५४ रन) बनाया लेकिन तीसरे टेस्ट (नागपुर) में उन्हें भारतीय एकादश में सम्मिलित नहीं किया गया । इस टेस्ट के अंतिम दिन पहली पारी में ७७ रनों से पिछड़े भारत ने अपनी दूसरी पारी में भी आठ विकेट खो दिए और अचानक ही पराजय का ख़तरा मंडराने लगा । ऐसे में मदन ने विकेटकीपर किरमानी के साथ नवें विकेट पर ५५ रनों की अविजित साझेदारी की और टेस्ट को ड्रॉ करवाया । 

इसके तुरंत पश्चात् विश्व कप में अपनी पराजय से लगी चोट को सहलाते हुए क्लाइव लॉयड किसी घायल सिंह की भाँति अपना दल लेकर छः टेस्ट मैचों की शृंखला खेलने के लिए भारत पहुँचे । कानपुर में खेले गए पहले टेस्ट में वेस्ट इंडीज़ ने ४५४ रनों का स्कोर खड़ा किया और फिर मैल्कम मार्शल की अगुआई में उसके तेज़ गेंदबाज़ों ने ऐसी डरावनी गेंदबाज़ी की कि भारत के आठ विकेट केवल नब्बे रनों पर ही गिर गए और फ़ॉलोऑन का ख़तरा सर पर आ गया । ऐसे में रोजर बिन्नी और मदन लाल एक बार फिर संकट के साथी बनकर विकेट पर आ डटे और भारत के नामी बल्लेबाज़ों को बल्लेबाज़ी का सबक देते हुए नवें विकेट पर ११७ रनों की साझेदारी निभा डाली । बिन्नी ३९ रन बनाकर आउट हुए जबकि मदन ने अंत तक नॉट आउट रहते हुए ६३ रन बनाए । भारत न फ़ॉलोऑन बचा सका, न ही टेस्ट लेकिन बिन्नी और मदन के खेल का लोहा सभी को मानना पड़ा । 

दिल्ली में खेले गए इस शृंखला के दूसरे टेस्ट में पहली पारी में भारत ने ज़बरदस्त बल्लेबाज़ी करते हुए ४६४ रन बनाए जिसमें बिन्नी के भी ५२ रन शामिल थे । अंतिम दिन दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाज़ों की ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बल्लेबाज़ी का नतीज़ा यह निकला कि केवल १६६ रनों पर आठ विकेट गिर गए और एक अनचाहा संकट सामने आ गया । फिर से भारत के संकटमोचन बिन्नी और मदन ने धीरज के साथ विकेट पर टिकते हुए नवें विकेट पर ५२ रन जोड़े और मैच का रुख़ भारत की हार से परे करते हुए अनिर्णय की ओर मोड़ा । 

अहमदाबाद में हुए तीसरे टेस्ट में मदन को भारतीय एकादश से बाहर कर दिया गया । ऐसे में बिन्नी ने कपिल के साथ भारतीय गेंदबाज़ी आक्रमण की शुरुआत करते हुए देखते-ही-देखते वेस्ट इंडीज़ के तीन विकेट सस्ते में चटका दिए । लेकिन छः ओवर डालने के बाद ही मांसपेशियों के खिंचाव के कारण उन्हें मैदान से बाहर जाना पड़ा और उसके बाद वे मैच में गेंदबाज़ी नहीं कर सके । नतीजा यह निकला कि गेंदबाज़ी का लगभग पूरा दायित्व कपिल देव पर ही आ गया और दूसरी पारी में कपिल की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी (नौ विकेट) के बावजूद भारत टेस्ट हार गया  

भारत यह शृंखला बुरी तरह से हारा लेकिन बिन्नी ने सभी टेस्ट खेलते हुए कई उपयोगी पारियां खेलीं जबकि मदन को केवल तीन टेस्ट मैचों में अवसर मिला । एक गेंदबाज़ के रूप में यह मदन के करियर का सबसे ख़राब दौर था जब उन्हें लगातार पाँच टेस्ट मैचों में कोई विकेट नहीं मिला । लेकिन एक सच यह भी था कि एक कप्तान के रूप में कपिल ने उन पर अधिक विश्वास नहीं जताया और उनके द्वारा खेले गए इस शृंखला के तीन टेस्ट मैचों में उन्हें बहुत कम ओवर दिए । 

कुछ माह के उपरांत (१९८४ में) शारजाह में आयोजित प्रथम एशिया कप क्रिकेट प्रतियोगिता में कपिल भारतीय दल का हिस्सा नहीं रहे लेकिन सुनील गावस्कर के नेतृत्व में भारतीय दल ने श्रीलंका और पाकिस्तान को सरलता से हराते हुए कप जीत लिया । जीत का अधिकतम श्रेय (तथा प्रमुख पुरस्कार) विकेटकीपर-बल्लेबाज़ सुरिंदर खन्ना ले गए लेकिन बिन्नी और मदन ने भी भारत की विजयों में महत्वपूर्ण योगदान दिया । श्रीलंका के विरुद्ध हुए प्रथम मैच में मदन ने तीन विकेट लिए जबकि पाकिस्तान के विरुद्ध हुए द्वितीय मैच में बिन्नी ने तीन विकेट लिए । 

कुछ माह के अंतराल के पश्चात् पाँच एक दिवसीय मैचों की शृंखला खेलने के लिए किम ह्यूज के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम भारत आई तो सलामी बल्लेबाज़ जोड़ी का चयन भारत के लिए एक समस्या बन गया क्योंकि कप्तान सुनील गावस्कर मध्य क्रम में खेलना चाहते थी और दूसरे बल्लेबाज़ फ़ॉर्म में नहीं थे । ऐसे में चौथे मैच में रवि शास्त्री के साथ रोजर बिन्नी को पारी की शुरुआत के लिए भेजा गया । बिन्नी ने शास्त्री के साथ प्रथम विकेट पर शतकीय साझेदारी निभाते हुए अपने एक दिवसीय करियर का सर्वश्रेष्ठ स्कोर (५७ रन) बनाया लेकिन उसके उपरांत कभी उन्हें ऐसा अवसर पुनः नहीं दिया गया । 

तदोपरांत पाकिस्तान के संक्षिप्त दौरे (भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आकस्मिक निधन के कारण यह दौरा बीच में ही समाप्त कर दिया गया था) के पश्चात् जब डेविड गोवर के नेतृत्व में इंग्लैंड का दल भारत के लंबे दौरे पर आया तो बिन्नी और मदन, दोनों को ही भारतीय दल से बाहर कर दिया गया । इंग्लैंड की कमज़ोर टीम ने भी भारत को उसके घर में ही (टेस्ट और एक दिवसीय मैचों, दोनों की ही) शृंखला में परास्त किया और गावस्कर को कप्तान के रूप में पहली बार घरेलू टेस्ट शृंखला में पराजय सहनी पड़ी । 

फ़रवरी १९८५ में विक्टोरिया में यूरोपीय सैटलमेंट की डेढ़ सौ वीं जयंती के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया में आयोजित बेंसन एंड हेजेज़ विश्व क्रिकेट चैम्पियनशिप के लिए जब सुनील गावस्कर के नेतृत्व में भारतीय दल चुना गया तो चयनकर्ताओं ने विवेक का परिचय देते हुए रोजर बिन्नी और मदन लाल को पुनः भारतीय दल में सम्मिलित किया । भारत ने सम्पूर्ण प्रतियोगिता में उच्च स्तरीय खेल का प्रदर्शन करते हुए अपने सभी मैच एवं अंततः प्रतियोगिता भी जीत ली जो निश्चय ही एक असाधारण उपलब्धि थी । बिन्नी अस्वस्थ होने के कारण फ़ाइनल नहीं खेल सके लेकिन उन्होंने  भारत की विजयों में अपनी भूमिका निभाते हुए स्पर्द्धा में आठ विकेट लिए जबकि मदन ने सात विकेट लिए । बिन्नी ने पाकिस्तान के विरुद्ध पहले ही मैच में चार विकेट चटकाए जबकि मदन ने न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध कठिन सेमीफ़ाइनल मैच में चार विकेट लिए । 

उसके उपरांत भारत ने रोथमैंस कप भी जीता लेकिन अगले विदेशी दौरों के लिए भारतीय दल के चयन में मदन लाल को पूरी तरह से उपेक्षित किया गया जबकि रोजर बिन्नी को श्रीलंका में हुई अप्रत्याशित पराजय के उपरांत ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के दौरों के लिए चुना गया । ऑस्ट्रेलिया दौरे में भारत बार-बार विजय के निकट पहुँच कर भी चूक गया लेकिन इंग्लैंड दौरे में कप्तान कपिल देव को अंततः चिर-प्रतीक्षित विजय मिल ही गई । लॉर्ड्स में हुए प्रथम टेस्ट में विजय के उपरांत भारतीय तेज़ गेंदबाज़ चेतन शर्मा के अस्वस्थ होने के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई कि उनके स्थान पर किसे लिया जाए । मदन लाल तो भ्रमणकारी भारतीय दल के सदस्य ही नहीं थे । लेकिन वे उन दिनों इंग्लैंड में ही थे और लंकाशायर की ओर से काउंटी क्रिकेट चैम्पियनशिप में खेल रहे थे । ऐसे में भारतीय दल प्रबंधन ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड से (तथा इंग्लैंड के भी संबंधित प्राधिकरण से) अनुमति लेकर मदन लाल को हैडिंग्ले (लीड्स) में खेले गए दूसरे टेस्ट के लिए भारतीय एकादश में सम्मिलित किया । और फिर जो हुआ, वह इतिहास है । 

२० जून, १९८६ से आरंभ हुए इस टेस्ट में  भारत के पहली पारी के २७२ रनों के उत्तर में इंग्लैंड की टीम मैदान में उतरी और कपिल के साथ मदन ने भारतीय गेंदबाज़ी आक्रमण का श्रीगणेश किया । देखते-ही-देखते मदन ने इंग्लैंड के दो विकेट और कपिल ने एक विकेट चटका दिए और स्कोर केवल चौदह रन पर तीन विकेट हो गया । कुछ देर बाद बिन्नी ने गेंद संभाली और अपने तब तक के करियर की सबसे प्रभावी गेंदबाज़ी करते हुए इंग्लैंड के पाँच विकेट गिरा दिए । मदन ने इंग्लैंड की इस पारी के कुल तीन विकेट लिए और भारत के इन दोनों हरफ़नमौला सीमरों के आगे इंग्लैंड की पारी १०२ रनों पर ढेर हो गई । भारत ने यह टेस्ट (और साथ ही शृंखला भी) मुश्किल से सवा तीन दिन में २७९ रनों के भारी अंतर से जीता जो उस समय टेस्ट क्रिकेट में इस दृष्‍टि से भारत की सबसे बड़ी जीत थी । मैन ऑव द मैच का पुरस्कार दिलीप वेंगसरकर को मिला लेकिन भारतीय गेंदबाज़ी के हीरो बिन्नी और मदन ही थे । इस मैच जिताऊ प्रदर्शन के बावजूद यह मदन के करियर का अंतिम टेस्ट साबित हुआ । एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों में वे अंतिम बार भारत के लिए १९८७ में  खेले । उन्हें भारत में ही आयोजित रिलायंस विश्व कप के लिए भी भारतीय दल में नहीं चुना गया । 

बिन्नी बहरहाल रिलायंस विश्व कप में खेले और उसके उपरांत उनके अंतर्राष्ट्रीय करियर का भी समापन हो गया । लेकिन उससे पूर्व उन्होंने भ्रमणकारी पाकिस्तानी दल के विरूद्ध टेस्ट शृंखला में भारत का प्रतिनिधित्व किया जिसके कलकत्ता टेस्ट में उन्होंने अपने टेस्ट करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी करते हुए पहली पारी में छः विकेट  और दूसरी पारी में दो विकेट लिए लेकिन भारत वह मैच जीतने में सफल नहीं रहा । बिन्नी के टेस्ट करियर का पाकिस्तान और बंगलौर से कुछ अजीब-सा नाता रहा । उन्होंने अपने  प्रथम एवं अंतिम टेस्ट पाकिस्तान के विरुद्ध बंगलौर में ही खेले और अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ी भी पाकिस्तान के विरुद्ध (१९८३ में) बंगलौर टेस्ट में ही की । 

बिन्नी और मदन ने बाद के वर्षों में भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ताओं की भूमिका भी निभाई । मदन भारतीय क्रिकेट टीम के प्रशिक्षक भी बने और वे इतने अनुशासन-प्रिय थे कि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे नामी खिलाड़ियों को भी खरी-खरी सुनाने से चूकते नहीं थे । सम्भवतः इसीलिए एक कोच के रूप में उन्हें लंबा कार्यकाल नहीं दिया गया क्योंकि भारत में ठकुरसुहाती कहने वालों की ही कद्र है । बिन्नी के पुत्र स्टुअर्ट ने भी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उनके नाम एक दिवसीय क्रिकेट में भारत की ओर से सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी (बांग्लादेश के विरुद्ध केवल चार रन देकर छः विकेट) का रिकॉर्ड है । 

रोजर बिन्नी और मदन लाल आज अपने जीवन के वार्धक्य में हैं और अपने स्वर्णिम अतीत को स्मरण करके आनंदित हो सकते हैं । भारतीय क्रिकेट टीम में हरफ़नमौला खिलाड़ी इनके जाने के बाद भी आए लेकिन जो जीवट इन दोनों में था - मुश्किल हालात में भी हौसला न हारने और जूझने का, वह फिर किसी भारतीय हरफ़नमौला क्रिकेटर में देखने को नहीं मिला । भारतीय क्रिकेट इनके योगदान को सदैव स्मरण रखेगा । 

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13 टिप्‍पणियां:

  1. इनके बारे में सिर्फ सुना था, आज विस्तार से जानकर अच्छा लगा।

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 22-01-2021) को "धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये"(चर्चा अंक- 3954) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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  3. ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम की शानदार जीत की खुशी के साथ-साथ इस समय आपके इस ज्ञानवर्धक और उत्साहपूर्ण लेख को पढ़कर बहुत खुशी हुई..बढिया लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें..

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  4. भारतीय क्रिकेट टीम के संकटमोचन : बिन्नी और मदन....बहुत ही सुन्दर जानकारी क्रिकेट जगत के दोनों खिलाडिय़ों का योगदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।

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    1. हार्दिक आभार सुधा जी । इनका योगदान निश्चय ही अविस्मरणीय है और रहेगा ।

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  5. मूल प्रकाशित लेख (11 दिसम्बर, 2019 को) पर ब्लॉगर मित्र की टिप्पणी :

    Neeraj KumarDecember 16, 2019 at 6:44 AM
    इस लेख को पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा !

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    जितेन्द्र माथुरDecember 16, 2019 at 7:02 PM
    हार्दिक आभार नीरज जी ।

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  6. बेहतरीन लेख🏏🐼
    स्टुअर्ट बिन्नी वो छाप नही छोड़ पाए जिसके लिए रोजर बिन्नी जाने जाते है।

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