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शनिवार, 20 मार्च 2021

विद्या बालन और संजीव कुमार

एक कला-प्रेमी एवं स्वयंभू समीक्षक के रूप में मेरी दृष्टि में भारतीय रजतपट का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता यदि कोई रहा है तो वह है स्वर्गीय संजीव कुमार । यदि भारतीय सिनेमा अथवा इसे तनिक संकुचित करते हुए कहें तो हिंदी सिनेमा के एक सदी से अधिक के इतिहास में संपूर्ण अभिनेता कहलाने की अर्हता रखने वाले एकमात्र कलाकार मेरी दृष्टि में तो संजीव कुमार ही रहे हैं । अत्यन्त आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी संजीव अपने आप में अभिनय कला का जीता-जागता विद्यालय थे तथा यह भारतीय सिनेमा एवं सिने-प्रेमियों का दुर्भाग्य ही है कि वे अल्पायु में ही दिवंगत हो गए । वे प्रत्येक भूमिका के लिए उपयुक्त थे चाहे वह नायिका के साथ रूमानी ढंग से नाचने-वाले पारंपरिक नायक की भूमिका हो अथवा परंपरा से हटकर की जाने वाली कोई जटिल भूमिकाचाहे युवक की भूमिका हो अथवा परिपक्व आयु के व्यक्ति अथवा वृद्ध की भूमिका, चाहे सकारात्मक भूमिका हो अथवा नकारात्मक भूमिका, चाहे गम्भीर भूमिका हो अथवा हास्य भूमिका, चाहे प्रमुख भूमिका हो अथवा सहायक भूमिका  उनकी एक फ़िल्म का नाम था - 'अपने रंग हज़ार' । और सचमुच उनके रंग हज़ार ही थे । वे हर रंग में रंग जाते थे, हर सांचे में ढल जाते थे । चाहे फ़िल्म ख़राब हो या उनका किरदार ख़राब ढंग से लिखा गया होवे कभी ख़राब अभिनय नहीं करते थे । उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दो बार जीता तथा 'नया दिन नई रात' (१९७४) में अकेले ही नौ भूमिकाएं निभाकर विश्व रिकॉर्ड बना डाला । उनकी अभिनय कला का आकाश अनंत था । उन जैसा अदाकार न उनसे पहले कोई आया था और न ही १९८५ में उनके दुनिया से चले जाने के बाद कोई आया । 

हाल ही में मैंने पिछले साल प्रदर्शित हुई फ़िल्म 'मिशन मंगलको डिज़्नी हॉटस्टार पर देखा । फ़िल्म अच्छी है जिसमें दर्शकों के लिए मनोरंजन एवं प्रेरणा दोनों ही तत्व हैं । फ़िल्म की जान हैं विद्या बालन । नायक के रूप में अक्षय कुमार ने भी अच्छा अभिनय किया है लेकिन फ़िल्म देखते समय तथा उसके उपरांत उस पर सोच-विचार करते समय भी मुझे लगा कि कोई और अभिनेता इस भूमिका में होना चाहिए था । कौन ? किसे होना चाहिए था विद्या बालन के साथ अग्रणी भूमिका में ? कौन 'मिशन मंगलमें उनके साथ सर्वोपयुक्त लगता ? मेरे अंतर्मन ने उत्तर तो दिया लेकिन वह उत्तर व्यावहारिक नहीं है क्योंकि विद्या बालन के साथ अभिनय करते हुए जिस अभिनेता का चित्र मेरे मानस-पटल पर उभरावह तो कभी का इस संसार से जा चुका है 


मैं जब भी हिंदी सिनेमा के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में स्वर्गीय संजीव कुमार के विषय में सोचता था, मेरे मन में स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उभरता था कि हिंदी सिनेमा की सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री किसे कहा जा सकता है । कई अभिनेत्रियों के नाम मेरे समक्ष आते थे पर जिस प्रकार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में संजीव कुमार के नाम पर मेरा मन स्थिर हो जाता था, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में किसी के भी नाम पर मेरा मन स्थिर नहीं हो पाता था । हिंदी चित्रपट की सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री किसे माना जाए, यह प्रश्न मेरे मन में अनुत्तरित ही रहता था । लेकिन 'मिशन मंगल' देखते-देखते अचानक मुझे इस सवाल का जवाब मिल गया । विद्या बालन ! निश्चय ही विद्या बालन जो संजीव कुमार ही की भांति प्रत्येक भूमिका के लिए उपयुक्त हैं, उन्हीं की तरह सुंदर हैं, उन्हीं की तरह असाधारण प्रतिभा की स्वामिनी हैं तथा उन्हीं की तरह हर रंग में रंग जाने और हर सांचे में ढल जाने की कूव्वत रखती हैं । 

संजीव कुमार मूल रूप से गुजराती थे (उनका वास्तविक नाम हरिभाई जरीवाला था) लेकिन उनकी फ़िल्में देखते समय कहीं से भी पता नहीं लगता कि वे वास्तव में भारत के किस प्रदेश के थे क्योंकि वे अपनी भूमिका में पूरी तरह से उतर जाते थेजो चरित्र निभाते थेस्वयं वही हो जाते थे । ठीक यही बात विद्या बालन के साथ भी है । वे मूल रूप से एक तमिल परिवार की हैं । उनके जन्म के परिवार में घर के भीतर तमिल एवं मलयालम में वार्तालाप किया जाता है । पर उनकी किसी भी फ़िल्म को देखते समय उनके दक्षिण भारतीय होने अथवा मुम्बई में उनका पालन-पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा होने का कोई आभास नहीं मिलता है क्योंकि वे भी जो चरित्र निभाती हैंवही बन जाती हैं  'परिणीता(२०५) एवं 'कहानी' (२०१२) जैसी फ़िल्मों में बंगाली युवती की भूमिका में उन्हें देखकर कहीं से भी महसूस नहीं होता कि वे बंगालन नहीं हैं ।

नाटकों से अपनी अभिनय-यात्रा आरंभ करने वाले संजीव कुमार अपने फ़िल्मी करियर में प्रारंभिक वर्षों में महत्वहीन भूमिकाएं करने को भी विवश हुए, बहुत-सी फ़िल्मों में सहायक भूमिकाएं कीं तथा नायक बने भी तो 'बी' ग्रेड कहलाने वाली फ़िल्मों में । एक 'श्रेणी के नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने में उन्हें एक दशक से अधिक समय लग गया । एकता कपूर के धारावाहिक 'हम पाँचमें पहली बार परदे पर आने वाली विद्या बालन इस संदर्भ में संजीव कुमार की तुलना में सौभाग्यशालिनी रहीं कि पूर्णकालिक रूप से अभिनय के क्षेत्र में पदार्पण करने पर उन्हें प्रारंभ में ही प्रमुख भूमिकाएं करने के अवसर मिले तथा अपनी पहली ही हिंदी फ़िल्म 'परिणीतासे उन्होंने ढेरों प्रशंसाएं बटोरीं । लेकिन वास्तविक अर्थों में अपनी पहचान बनाने में उन्हें भी समय लगा । वस्तुतः 'कहानीकी सफलता के उपरांत ही उनकी गणना चोटी की नायिकाओं में होनी आरंभ हुई । जिस तरह संजीव कुमार किसी भी भूमिका को निभाने की चुनौती से कभी नहीं कतराए तथा उन्होंने 'खिलौना' (१९७०) में एक विक्षिप्त व्यक्ति से लेकर 'कोशिश' (१९७२) में एक गूंगे-बहरे व्यक्ति तक की भूमिकाएं निर्भय होकर स्वीकार कीं, उसी तरह विद्या बालन ने भी 'द डर्टी पिक्चर' (२०११) में सिल्क स्मिता की कठिन भूमिका भयमुक्त होकर निभाई जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता 

संजीव कुमार के मुख पर तब भी परिपक्वता थी जब वे अत्यंत युवा थे । यही तथ्य विद्या बालन पर भी लागू है जिन्होंने अपने नायिका बनने से पूर्व किए गए कई विज्ञापनों में एक भरी-पूरी भारतीय गृहिणी को यथार्थता के साथ परदे पर तब प्रस्तुत किया था जब वे बीस वर्ष की भी नहीं हुई थीं । संजीव के तन पर आयु के साथ-साथ (तथा संभवतः उनकी बीमारी एवं जीवन-शैली के कारण भी) मोटापा छाने लगा था लेकिन मोटे होने पर भी उनके व्यक्तित्व के पुरुषोचित आकर्षण में कोई कमी नहीं आई थी । यही बात विद्या के साथ भी है । उन्होंने 'द डर्टी पिक्चरके लिए भूमिका की मांग के अनुरूप मोटापे को अपनाया था लेकिन अब विवाहोपरांत गृहस्थ जीवन में होने तथा आयु के चालीस पार हो जाने के कारण वे स्वाभाविक रूप से भी मोटी हो गई हैं पर उनका स्त्रियोचित सौंदर्य यथावत् ही है ।

यदि 'मिशन मंगल' में अक्षय कुमार की जगह संजीव कुमार होते तो विद्या बालन के साथ वे इस फ़िल्म को असाधारण ऊंचाइयों तक ले जाते । मगर अफ़सोस ! ये दोनों असाधारण कलाकार समकालीन नहीं रहे  संजीव कुमार अपने करियर के शीर्ष पर पहुँच चुके थे जब विद्या का जन्म हुआ था । और जब विद्या एक अबोध बालिका ही थींतब संजीव ने संसार से विदा ले ली । आज संजीव तो स्मृति-शेष ही हैं लेकिन विद्या से उनके प्रशंसकों को अभी भी उनके उत्कृष्ट अभिनय के अनेक रंग देखने को मिल सकते हैं क्योंकि संजीव ही की भांति विद्या भी कभी ख़राब अभिनय नहीं करती हैंउनकी भूमिका चाहे जैसी हो । दोनों ही कलाकारों के अभिनय की रेंज असीमित रही है । ये दोनों ही कभी सुपर-स्टारडम की भागमभाग में शामिल नहीं रहे, न ही कभी फ़िल्मी गलियारों और फ़िल्मी पत्र-पत्रिकाओं में इन्हें अव्वल नंबर का नायक या नायिका माना गया । लोकप्रियता तथा व्यावसायिक मूल्य की कसौटी पर इनके समकालीन दूसरे नायक-नायिकाओं को सदा इनसे ऊपर ही माना गया । पर सबसे बड़ा सच यही है कि सिने-प्रेमियों के दिलों पर इन्होंने हमेशा राज किया और हमेशा राज करेंगे 

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15 टिप्‍पणियां:

  1. संजीव जी मेरे भी पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। विद्या बालन असाधारण हैं। बहुत बढि़या आलेख। शुभकामनाएँ।

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  2. संजीव कुमार को मैं भी एक अप्रितिम कलाकार। मानता हूं । इनमें हर तरह के रोल करने की प्रतिभा थी । सही समीक्षा ।

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  3. सही कहा आपने जितेंद्र जी! कि दोनों ही कलाकारों के अभिनय की रेंज असीमित रही है ।
    वाकई संजीव कुमार और विद्या बालन उत्कृष्ट एवं प्रतिभावान कलाकार हैं इतने बड़े गैप के बाद भी दोनों में जो समानताएं हैं उनके आधार पर दोनों की तुलनख पर आपकी समीक्षा एकदम सटीक एवं खरी है।

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  4. संजीव कुमार का नाम बॉलीवुड के मंझे हुए एक्टर्स में गिना जाता है संजीव कुमार ने बॉलीवुड की कई शानदार फिल्मों से दर्शकों के दिलों को जीता संजीव कुमार बॉलीवुड के उन कलाकारों में से एक थे, जो अपने से ज्यादा उम्र के किरदार करने के लिए जाने जाते संजीव और विद्या जी के बहुत बढि़या आलेख लिख है जितेन्द्र जी

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    1. आप ठीक कह रहे हैं संजय जी । संजीव ने अनेक बार अपने से ज़्यादा उम्र के किरदार निभाए थे । हार्दिक आभार आपका ।

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