पेज

मंगलवार, 23 मई 2023

हमारा छोटा-सा लेकिन मनभावन और अनुशासित पड़ोसी देश

जीवन का अधिकांश भाग व्यतीत हो जाने पर भी इस मास से पूर्व मैंने कभी भारत की भूमि से बाहर क़दम नहीं रखा था। सन २०२० में जब मेरे विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ आने वाली थी तो मेरी पुत्री ने वर्षारंभ में ही अपने माता-पिता (एवं छोटे भाई) को उस अवसर पर कहीं विदेश ले जाने की योजना बना ली थी। किन्तु भाग्य का खेल ! कोरोना महामारी के प्रसार के चलते कहीं आना-जाना संभव ही नहीं रहा। तथापि मेरी पुत्री की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण मैं एवं मेरा परिवार हरिहरेश्वर नामक एक सुरम्य स्थान पर उस अवसर का उत्सव मना सके। 

विगत मास मेरी पुत्री ने भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझीकोड से एम.बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। मैं तथा उसकी माता कोझीकोड जाकर दीक्षांत समारोह में सम्मिलित भी हुए। तदोपरांत मेरी पुत्री ने सम्पूर्ण परिवार को कहीं विदेश ले जाने का निर्णय एक बार पुनः लिया। मैं एक राजकीय संस्थान के आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग में नौकरी करता हूँ एवं अप्रैल का मास वार्षिक लेखों को अंतिम रूप देने का मास होता है। अतः मई के प्रथम सप्ताह तक तो कहीं भ्रमण हेतु अवकाश लेना संभव नहीं हो सका। मई के द्वितीय सप्ताह में मेरी पुत्री द्वारा निर्धारित (एवं प्रबंधित) कार्यक्रम के अनुसार हम हमारे पड़ोसी देश भूटान की यात्रा पर गए। लगभग पाँच दिवस का यह पारिवारिक पर्यटन अत्यन्त सुखद रहा। भूटान हेतु पासपोर्ट-वीज़ा आदि प्रपत्रों की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन अंततः मेरी (एवं मेरी जीवन-संगिनी की भी) विदेश-यात्रा हुई तो सही। 

हम पश्चिम बंगाल के हवाई अड्‍डे बागडोगरा पहुँचे और वहाँ से सड़क-मार्ग द्वारा भारत एवं भूटान की सीमा पर स्थित कस्बे जयगाँव जहाँ हमने होटल 'व्हाइट हाउस' में रात्रि-विश्राम किया। अगले दिन संबंधित पर्यटन एजेंसी द्वारा नियुक्त गाइड हमें ठीक सीमा पर स्थित भूटान पासपोर्ट कार्यालय की औपचारिकताएं पूरी करवाने के उपरांत कार द्वारा आगे ले गया। भूटान का पहला नगर जो हमने देखा, वह है फुंशोलिंग।

फुंशोलिंग में हम पहले दिन घूमे-फिरे और वहाँ से भूटान की राजधानी थिम्फू गए जहाँ हमारा रात्रि-विश्राम निर्धारित कार्यक्रमानुसार एक होटल मंत्र होममें हुआ। मंत्र होममें कार्यरत कर्मी-दल का नेतृत्व एवं समन्वय पसांग नामक एक महिला कर रही थी जो न केवल अत्यन्त सेवाभावी सिद्ध हुई वरन वह हिन्दी तो इतनी साफ़सुथरी बोल रही थी कि यदि उसकी मुखाकृति से उसके भूटानी होने का ज्ञान न हो जाता तो वह भारतीय ही प्रतीत होती। वस्तुतः हमारे लिए यह भी एक सुखद आश्चर्य ही था कि हमें होटल-रेस्तरां सहित अधिकांश स्थलों पर कार्यभार महिलाओं के ही हाथ में देखने को मिला। 

थिम्फू में दो दिन बिताने के उपरांत आगे के दो दिन हमने पारो नामक कस्बे में गुज़ारे। वहाँ हम पेमा यांगसेल नामक होटल में रुके जो कि मुख्य बाज़ार के अत्यन्त निकट स्थित है। वहीं पर हम टाइगर नेस्टनामक पर्यटन-स्थल गए जो कि इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि मैंने तथा मेरी धर्मपत्नी ने तो जहाँ तक घोड़े जा सकते थे, वहाँ तक की यात्रा घोड़ों पर ही की जबकि हमारे दोनों बच्चे गाइड (जो कि हमारी ही आयु-वर्ग का व्यक्ति लगता था लेकिन हृष्ट-पुष्ट एवं ऐसे मार्गों पर चलने का अभ्यस्त था) के साथ पैदल ही आए। घोड़े प्रस्थान-स्थल से टाइगर नेस्टके मध्य का लगभग आधा मार्ग ही तय करवा सकते हैं जहाँ एक कैफ़ेटेरिया स्थित है। उससे आगे तो सभी को पैदल ही जाना होता है। सो हम भी गए। वापसी में भी हमने कैफ़ेटेरिया से तीन घोड़े किराये पर लिए ताकि जैसे हम ऊपर चढ़े थे, वैसे ही नीचे भी उतरते। हमारी बेटी भी इस बार घोड़े पर ही बैठकर नीचे तक आई। मेरा जी तो पूरे मार्ग में ही धुक-धुक करता रहा। लगा कि घोड़ा (और साथ में उस पर सवार मैं भी) अब गिरा, तब गिरा। पर ऐसा हुआ नहीं। किन्तु जब मेरी धर्मपत्नी अपने घोड़े पर लगाई गई ज़ीन के फिसल जाने से नीचे गिर गईं तो उनका मूड उखड़ गया और बाक़ी का रास्ता उन्होंने (हमारे बेटे की ही तरह) पैदल तय किया। हमने तो बस इस बात का शुक्र मनाया कि गिरने पर भी उन्हें कोई चोट नहीं आई। सम्भवतः एक बड़ा कोट जो उन्होंने पहन रखा था, उसने उनकी रक्षा की।


पारो की विशेषता यह है कि वहाँ से हिमालय की चोटियों पर जमी चाँदी-सी चमकती सफ़ेद बर्फ़ स्पष्ट दिखाई देती है और यह दृश्य आँखों को बड़ी शीतलता प्रदान करता है। जिस दिन हम टाइगर नेस्ट गए थे, उससे एक दिन पूर्व ही हमने पुनाखा की घाटी में बहने वाली मो छू नदी में राफ़्टिंग (हवा भरकर बनाई गई रबर की नाव को चप्पुओं द्वारा बहते पानी की ऊंची-नीची लहरों पर खेना) की थी। यह अनुभव भी हमारे लिए अत्यन्त रोमांचक एवं आनंददायक रहा था। वहाँ ऐसी दो नदियाँ हैं - फो छू तथा मो छू। भूटानी लोग एक नदी को पुरुष तथा दूसरी को स्त्री मानते हैं। इसीलिए ऐसे नाम हैं। भूटानी भाषा में 'छू' का अर्थ होता है 'नदी', 'फो' का अर्थ होता है 'पुरुष' तथा 'मो' का अर्थ होता है 'स्त्री'। इनके संगम-स्थल पर स्थित 'ज़ोंग' नामक क़िले पर भी हम गए जहाँ भीतर जाना कुछ नवनिर्माण कार्य चलने के कारण संभव नहीं हो सका। 

भूटान बौद्ध धर्म को मानने वाला देश है। अतः वहाँ के अधिकांश पर्यटन-स्थल वस्तुतः बौद्ध विहार अथवा मठ ही हैं जहाँ भगवान बुद्ध अथवा बोधिसत्व की विशालकाय प्रतिमाएं स्थित हैं। अपनी इस पाँच दिवसीय भूटान-यात्रा में हमने नयनाभिराम दृश्यावलियों के अतिरिक्त अधिकांशतः उन्हीं को (अथवा उनके भिन्न-भिन्न स्वरूपों को) ही देखा। गाइड के माध्यम से हम वहाँ के कुछ रीति-रिवाजों से भी परिचित हुए तथा कुछ प्रार्थनाओं से भी। 


भूटान के लोग अपने राजा (जिग्मे खेसर नामग्याल वांग्चुक) तथा रानी (जेत्सुन पेमा वांग्चुक) को बहुत स्नेह एवं सम्मान देते हैं (यद्यपि शासन-प्रशासन का दायित्व प्रमुखतः प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्यपालिका पर ही होता है एवं विधि-विधान वहाँ की संसद ही बनाती है)। राजा-रानी के आकर्षक चित्र एवं होर्डिंग भूटान के कोने-कोने में दृष्टिगोचर होते हैं। भूटान की मुद्रा नोंग्त्रुम है जिसके प्रत्येक नोट पर राजा का चित्र छपा होता है। वैसे यह भारतीय रुपये से कुछ कम मूल्य रखती है किन्तु भूटान के दुकानदार तथा सेवादाता इसे भारतीय रुपये के समतुल्य ही रखते हैं तथा कई बार तो बड़े भूटानी नोट का छुट्‍टा भारतीय रुपये में दे देते हैं। यद्यपि मेरी पुत्री ने हमारे भूटान में प्रवेश करने से पूर्व ही पर्याप्त राशि की भूटानी मुद्रा (भारतीय रुपये देकर) प्राप्त कर ली थी, तथापि बहुत-से स्थानों पर हमने पाया कि लेने वालों को उसके स्थान पर भारतीय रुपये के नोट भी स्वीकार थे। 

भूटान को थंडर ड्रैगन की भूमि कहा जाता है तथा यहाँ के विभिन्न स्थलों, स्मारकों एवं प्रतिमाओं पर ड्रैगन (मुख से आग फेंकने वाला अजगर) की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। ड्रैगन भूटान के राष्ट्रीय प्रतीक-चिह्न का भी अंग है तथा स्वभावतः भूटान के राष्ट्रीय ध्वज पर भी अंकित रहता है। मेरे परिवार ने (पारो के बाज़ार में स्थित दुकानों से) विभिन्न मित्रों एवं संबंधियों के निमित्त तो पृथक्-पृथक् स्मृति-चिह्न क्रय किये ही, अपने गृह के निमित्त भी ड्रैगन की एक प्रतिमा क्रय की। 

लेकिन भूटान की जो बात मैं हमेशा याद रखूंगा, वह है वहाँ के लोगों का (सच्चा, न कि दिखावटी) देश-प्रेम और अनुशासन। कई दशक पहले मैंने बाल-पत्रिका 'चम्पक' में प्रकाशित होने वाली कॉमिक 'चीकू' के माध्यम से 'ज़ेब्रा क्रॉसिंग' के बारे में जाना था और यह सीख अपने मन में बैठाई थी कि पैदल चलते समय सड़क हमेशा ज़ेब्रा क्रॉसिंग (ड़क पर काली-सफ़ेद पट्टियों से बनाया गया निशान) से ही पार की जानी चाहिए। पारो में एक बार जब मैंने ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर क़दम रखा तो दूसरी तरफ़ से आ रही गाड़ियाँ तुरन्त रुक गईं और तभी फिर से स्टार्ट हुईं जब मैं ड़क पार कर गया। इसके ठीक विपरीत भारत में मैंने प्रायः देखा है कि न तो पैदल चलने वालों को तथा न ही वाहन-चालकों को ज़ेब्रा क्रॉसिंग का कोई ज्ञान होता है (होता है तो भी वे उसे महत्व नहीं देते)। विगत कुछ वर्षों से विशाखापट्टणम में निवास करते हुए तो मैं यह दिन-प्रतिदिन देखता हूँ कि प्रथम तो ज़ेब्रा क्रॉसिंग यदि धुंधली हो गई हो अथवा मिट गई हो तो उसे ठीक से पुनः बनाया ही नहीं जाता, द्वितीय यह कि यदि वह ठीक से दिखाई दे रही हो एवं कोई पैदल यात्री उस पर से ड़क पार कर रहा हो तो भी वाहन-चालकों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा वे उसी भांति तीव्र गति से वाहन चलाते हुए आते हैं कि वह पैदल चलने वाला अभागा यदि स्वयं सावधान न रहे तो वे उसे कुचल कर ही मानें। यह है विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश (जी हाँ, इस मामले में अब हम चीन को भी पीछे छोड़ रहे हैं) तथा उसके एक राज्य से भी छोटे एवं मात्र सात-आठ लाख की जनसंख्या वाले देश का अंतर। वहाँ जुर्माने होते हैं (जिसकी नौबत बहुत ही कम आती है) जबकि हमारे यहाँ रिश्वतख़ोरों की जेबें भरती हैं (या बेगुनाहों को पकड़कर 'टारगेट' पूरे किए जाते हैं)। वहाँ स्वच्छता है, यहाँ गंदगी (अभिजात्य वर्ग के आवासीय क्षेत्रों को अनदेखा कर दें तो)। वहाँ के नागरिक कर्तव्यपरायण हैं, यहाँ के (तथाकथित रूप से सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत व्यक्तियों सहित) अधिसंख्य नागरिकों को अपने कर्तव्यों की सुध ही नहीं। हाँ, अपनी वतनपरस्ती का ढोल हम (वक़्त-बेवक़्त) बराबर बजाते रहते हैं। आप भारत-भूटान सीमा पर एक ही दृष्टि में इस अंतर को देख सकते हैं। सीमा-रेखा के उस ओर न भिक्षुक हैं (यद्यपि भगवान बुद्ध की सभी प्रतिमाओं में उनके हस्त में भिक्षापात्र बनाया जाता है), न कोई अस्वच्छ्ता, न यातायात की कोई अनुशासनहीनता जबकि सीमा-रेखा के इस ओर अपने देश में आते ही आपके पास मंगते आ जाते हैं; आप अस्वच्छता, कानफोड़ू कोलाहल एवं अनियंत्रित यातायात के मध्य में स्वयं को पाते हैं तथा तीन दिशाओं से यह अनुभूति आपके निकट चली आती है कि संभल जाइए, अब आप भारत में हैं। 

और हाँ, भूटान में हमने ढेर सारी गोरैया देखीं जिनके संबंध में भारत में 'गोरैया दिवस' पर बस कविताएं ही लिखी जाती हैं, उनके दर्शन अब दुर्लभ ही हैं। 

आभार मेरी पुत्री का जिसने अपने माता-पिता एवं लघुभ्राता हेतु इस मनभावन एवं अविस्मरणीय यात्रा का प्रबंध किया। 

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार लिखा है....। मन प्रसन्न हो गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका यात्रा वृतांत पढ़ कर मन को अच्छा लगा, यात्रा का कुछ अंश मैंने भी महसूस कर लिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. Very happy wedding anniversary, belated. Beautifully expressed the feelings. May God bless you both to have many more chances to visit other countries too.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Wedding anniversary falls on 1st December. That was celebrated (silver jubilee) at Harihareshwar in 2020. This was just a family outing. Hearty thanks to you.

      हटाएं
  4. जितेन्द्र जी,सबसे पहले तो सपरिवार प्रथम विदेश यात्रा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई । भूटान की सहोदर तुल्य भूमि भारत के लिए सदैव ही अतुल्य स्नेह और आत्मीयता की पात्र रही हैं।वहाँ के शांतिप्रिय और मातृभूमि के अनन्य प्रेमी लोगों की छवि समस्त विश्व के लिए अनुकरणीय है। आज भी सफल राजशाही का अनुकरण करने वाले इस छोटे -से देश के बारे में बहुत कुछ सुना और पढा है पर आप जैसे सजग बुद्धिजीवी के द्वारा प्रामाणिक जानकारी की बात ही कुछ और है।आपके विचारों में अपने देश की अवव्स्था की टीस छिपाये नहीं छिप पा रही। अपने देश में भी नैसर्गिक सौंदर्य की कोई कमी नहीं।पर अपनी गलत आदतों और लापरवाही की वजह से हम अनूठी सांस्क़तिक विरासत और विशाल मानव शक्ति के बावजूद विश्व के लिए प्रेरणा ना बन सके।भूटान के मानवतावादी संस्कारों और कानूनो के बारे में जानकर अच्छा लगा।भूटान के राजपरिवार के बारे में एक बात और याद आती हैं कि कुछ साल पहले जव वहाँ अवांछित तत्वों ने इस शांतिप्रिय देश की शान्ति को भंग करने की कोशिश की तो वहाँ के तत्कालीन राजकुमार ( संभवतः आज के राजा)की अगुवाई में इन आतंकवादियों का सफाया किया गया और वे राजकुमार गम्भीर रूप से चोटिल भी हुये। ।इस तरह के प्रजा पालक शासक को प्रजा क्यों अपने हृदय में ना बसाये भला!
    अपने देश में आजादी के बाद इस तरह का कोई उदाहरण कभी सामने नहीं आया जिसमें किसी नेता का कोई वारिस खुशी और स्वेच्छा से कभी सीमा पर जाकर लड़ा भी हो या देश के लिए जान दी हो। अच्छा लगा कि होनहार बिटिया ने अपने परिवार के लिए इस सुखद और अविस्मरणीय यात्रा की व्यवस्था की और अप कोअपने छोटे-से परिवार का साक्षातकार एक नई संस्कृति और संस्कार से करवाया।बिटिया को MBA की उच्च डिग्री प्राप्त करने के पर ढेरों शुभकामनाएं और स्नेहाशीष।उसकर जीवन पथ सदैव निष्कंटक रहे यही कामना है।इस सुन्दर, विस्तृत और ज्ञानवर्धक आलेख के लिए कोटि कोटि आभार। प्रार्थना है कि आप भविष्य में अनेक विदेश यात्राओं का आनन्द ले।लेख पर देर से उपस्थित होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।आजकल गर्मी की वजह से बिजली और नेट की समस्या आती रहती है।
    परिवार के सुन्दर और नयनाभिराम चित्रों को साझा करने के लिए एक और आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अपने आप में एक स्वतंत्र आलेख सरीखी विस्तृत तथा मूल्य-संवर्द्धक टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार माननीया रेणु जी.

      हटाएं
  5. यात्रा के संस्मरण पढ़ कर अच्छा लगा। पुत्री अध्ययन के अलावा परिवारिक संबंधों में और और निखार कर लाने में रूचि रखती है।‌

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर यात्रा वृतांत,ऐसे महसूस हुआ कि हम भी घूम आऐ,आपको व परिवार को बहुत सारी शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से आपके प्रति आभार प्रकट करता हूँ माननीया मधूलिका जी.

      हटाएं
  7. सुंदर अनुभव - इतनी सहजता से वर्णित कि मन एकदम ग्रहण कर लेता है .

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर जीवंत यात्रा वृत्तांत। पहली विदेश यात्रा की हार्दिक बधाई। लेख दोनों देशों के लोगों की प्रवृत्ति के फर्क को भी दर्शाता है। वैसे कई भारतीय लोगों के चेहरे भी मोंगोलॉइड फीचर लिए होते हैं तो आप चेहरे देखकर भी अंदाजा नहीं लगा सकते कि वो भारतीय नहीं हैं। उत्तराखंड के कई लोगों के चेहरे मोहरे भी ऐसे ही होते हैं। मुझे लगता है ये पहाड़ी लुक है। यहाँ तक कि मेरी पत्नी का चेहरा भी ऐसा ही है और अब क्योंकि पुत्र को उनकी आँखें विरासत में मिली हैं तो पुत्र का लुक भी ऐसा ही आता है। बहरहाल अच्छी रहा ये वृत्तांत पढ़ना। उम्मीद है ऐसे और वृत्तांत आते रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैं आपके द्वारा प्रस्तुत तथ्य से सहमत हूँ विकास जी क्योंकि ऐसा मैंने भी देखा है. लंबे समय से इंतज़ार कर रहा था कि मेरे इस पृष्ठ पर आप कब आते हैं. देर लगी आने में आपको, शुक्र है फिर भी आए तो. हृदय से आभार आपका.

      हटाएं
  9. भूटान यात्रा का बहुत ही अच्छा विवरण प्रस्तुति किया है आपने। जेब्रा क्रासिंग के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी. एक छोटे से देश में भी ट्रैफिक नियमों का कितना अच्छा पालन होता है यह हमारे लिए सीख है। ऐसा ही हमने काठमांडू में देखा था जहाँ ट्रैफिक सिग्नल न होते हुए भी सुव्यवस्थित यातायात सञ्चालन होता है वह भी महिला पुलिस के माध्यम है और एक है जहाँ ट्रैफिक पुलिस की अहमियत समझते ही नहीं। ..
    हार्दिक शुभकामनाएं सुखद यात्रा लाभ लेने के लिए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. काठमांडू में सुव्यवस्थित यातायात संचालन के बारे में जानकर अच्छा लगा. मेरी अभिलाषा भी है कि जीवन में कभी नेपाल की यात्रा करूं. भूटान में तो हमें बिना पुलिस के स्व-अनुशासन ही दृष्टिगोचर हुआ. हमारे यहाँ राष्ट्र-प्रेम का ढोल ही बजता है. नागरिकों में स्वतः अनुशासन का पालन करने की भावना बहुत ही कम है. हृदय की गहनता से आभार आपका.

      हटाएं
  10. बहुत सुन्दर यात्रा वृतान्त । देर से ही सही वैवाहिक वर्षगाँठ की बधाई स्वीकारें ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अब तो विवाह की आगामी वर्षगांठ (एक दिसंबर) निकटस्थ है मीना जी. हृदयतल से आभार आपका.

      हटाएं
  11. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें. यात्रा का सुन्दर वृतांत अच्छा लगा. बिटिया को भी उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनायें. सादर अभिवादन सर

    जवाब देंहटाएं