राजू श्रीवास्तव नहीं रहे। एक गंभीर लेख लिखने की योजना थी मेरी लेकिन इस कार्य को स्थगित करके उस असाधारण कलाकार को श्रद्धांजलि देना मुझे उचित लगा जिसने हास्य के संसार में अपनी एक पृथक् पहचान बनाई। हंसी और मुस्कान बिखेरकर गजोधर भैया लाखों-करोड़ों के दिलों में बस गए। कानपुर से मुम्बई आए इस साधारण चेहरे-मोहरे के कलाकार में नक़ल उतारने (मिमिक्री करने) का नायाब हुनर था। शायद ही किसी को याद हो कि उन्होंने 'मैंने प्यार किया' (१९८९) फ़िल्म में एक छोटी-सी भूमिका निभाई थी। आगे चलकर उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी काम किया एवं 'बिग बॉस' सहित कई टीवी शो में भी आए; राजनीति में भी रुचि ली एवं उत्तर प्रदेश फ़िल्म विकास परिषद के अध्यक्ष भी बने लेकिन शोहरत तो उन्हें रंगमंच से ही मिली जहाँ उन्होंने दर्शकों को ख़ूब हंसाया, बरसोंबरस हंसाया। इसीलिए उनके आकस्मिक निधन ने उनके प्रशंसकों की आँखों में आँसू उमड़ा दिए।
मैंने रोनित रॉय तथा उनकी प्रमुख भूमिका वाले सोनी टीवी के धारावाहिक 'अदालत' पर पहले भी एक लेख लिखा है। आज राजू को श्रद्धांजलि देने के लिए मैं इसी धारावाहिक के एक (दो कड़ियों में प्रस्तुत) कथानक का वर्णन कर रहा हूँ जिसमें राजू की महत्वपूर्ण भूमिका है। 'अदालत' की १४६ वीं तथा १४७ वीं कड़ियों में प्रस्तुत इस कथा का नाम है - 'इंद्रधनुष क़ातिल'। वस्तुतः यह नाम राजू के लिए ही है जिनका इस कथा में भी नाम 'राजू' ही रखा गया है।
'इंद्रधनुष क़ातिल' स्वभावतः एक रहस्यकथा है जिसमें 'इन्द्रधनुष' नामक एक नाटक के प्रमुख पात्र राजू चौरसिया (राजू श्रीवास्तव) पर एक दूसरे कलाकार की हत्या का आरोप लगता है। इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं और राजू एक ऐसे पात्र की भूमिका निभा रहे हैं जिसमें सात पृथक्-पृथक् व्यक्तित्व समाहित हैं। कभी वह कोई बन जाता है तो कभी कोई और। भूमिका को पूर्ण समर्पण के साथ निभाते-निभाते यह कलाकार अपने पात्र का ही दूसरा संस्करण बन जाता है तथा जब वह किसी (नाटक वाले) एक व्यक्तित्व के रूप में होता है तो कुछ अंतराल के उपरांत जब वह किसी और रूप में (या अपने वास्तविक जीवन के रूप में) परिवर्तित होता है तो उसे पहले की अपनी कोई बात स्मरण नहीं रहती। चिकित्सकीय भाषा में इसे बहु व्यक्तित्व विकार (multiple personality disorder) कहते हैं। अब इस निर्दोष व्यक्ति की रक्षा का दायित्व कौन वहन कर सकता है सिवाय सत्य के पथिक वकील के.डी. पाठक (रोनित रॉय) के जिनके जीवन का ध्येय ही सत्य का साथ देते हुए निर्दोषों को दंड से बचाना है (संयोगवश राजू श्रीवास्तव का वास्तविक नाम भी सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ही था)।
के.डी. पाठक अपने सहायक वरुण (रोमित राज) के साथ मामले की छानबीन में लग जाते हैं। वरुण पुलिस इंस्पेक्टर श्रीकांत दवे (अजय कुमार नैन) का भी अपने काम में सहयोग लेता है। अदालत में के.डी. के सामने हैं उनके चितपरिचित प्रतिद्वंद्वी सरकारी वकील इंदर मोहन जायसवाल (आनंद गोराडिया) जबकि मामले की सुनवाई कर रहे हैं अनुभवी न्यायाधीश महोदय ऋषि धींगड़ा (प्रदीप शुक्ला)। संदेह के घेरे में कई व्यक्ति हैं। नाट्य संस्था के स्वामी हैं एक और राजू अर्थात् राजू श्रेष्ठ (जो कई दशक पूर्व हिन्दी फ़िल्मों में बाल कलाकार मास्टर राजू के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुआ करते थे)। उनके साथ-साथ नाटक की नायिका से लेकर सह-कलाकार, दिग्दर्शक, तकनीशियन, अन्य कर्मचारी आदि सभी इस हत्या हेतु संदिग्ध हैं। परंतु के.डी. पाठक के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है राजू को यह स्मरण करवाना कि वस्तुतः क्या हुआ था क्योंकि वे तो कभी किसी व्यक्तित्व में घुस जाते हैं तो कभी किसी में। अंततः अपेक्षानुसार सत्य की विजय होती है तथा राजू की निर्दोषिता प्रमाणित होती है।
'इन्द्रधनुष क़ातिल' दोहरा मनोरंजन प्रदान करता है। यह न केवल रहस्यकथाओं एवं न्यायालय की कार्रवाइयों को देखने में रुचि रखने वालों को आरम्भ से अंत तक बाँधे रखता है वरन हास्य देखने में रुचि रखने वालों को भी वह देता है जो उन्हें चाहिए अर्थात् भरपूर हंसी जो कि राजू श्रीवास्तव की कला के माध्यम से जागृत होती है। राजू ने दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। कथानक के अंत में राजू को न्यायालय द्वारा मुक्त कर दिए जाने के उपरांत के.डी. पाठक एवं राजू के मध्य हुआ वार्तालाप तथा उन दोनों के द्वारा बोले गए संवाद दर्शक के हृदय को स्पर्श कर लेते हैं। राजू के अतिरिक्त अन्य सभी कलाकारों ने भी अपने-अपने चरित्रों के साथ न्याय किया है। स्वस्थ एवं शालीन मनोरंजन प्रदान करने हेतु इस कथानक की पटकथा रचने वाले लेखक तथा इसके निर्देशक भी साधुवाद के पात्र हैं। मुश्किल से डेढ़ घंटे की अवधि (दोनों कड़ियाँ मिलाकर) वाली इस कथा को यूट्यूब पर देखा जा सकता है तथा सम्पूर्ण मनोरंजन प्राप्त किया जा सकता है।
राजू श्रीवास्तव ने तेरह अगस्त, २०२२ को दिल का दौरा पड़ने के बाद इक्कीस सितम्बर, २०२२ को दुनिया छोड़ने से पहले चालीस दिन तक मौत से जंग लड़ी। सादगी से युक्त किन्तु इन्द्रधनुष की भांति उत्साहित करने वाले व्यक्तित्व के धनी इस असाधारण कलाकार में ऐसा जीवट होना अपेक्षित ही था। मुझे याद आता है कि स्वर्गीय राज कपूर भी जिन फ़िल्मों में एक सीधे-सादे मगर सोने जैसा दिल रखने वाले इंसान की भूमिका निभाते थे, उनमें अपने किरदार का नाम 'राजू' ही रखते थे।
राजू श्रीवास्तव को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
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'इन्द्रधनुष क़ातिल' के यूट्यूब लिंक:
https://www.youtube.com/watch?v=UqoVVo04ip0&vl=en
https://www.youtube.com/watch?v=_eU1L3N3udQ&vl=en
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (2-10-22} को "गाँधी जी का देश"(चर्चा-अंक-4570) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
शुक्रिया कामिनी जी।
हटाएंबहुत सुंदर प्रविष्टि
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंराजू श्रीवास्तव जी की स्मृति में उनके अभिनय को याद करते हुए भावपूर्ण लेख । उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को शत शत नमन ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आपका आभार माननीया मीना जी।
हटाएंधरती के हास्यसितारे को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुतबहुत आभार आदरणीया अनीता जी।
हटाएंविनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंश्र्लाघनीय श्रृद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंउनके अभिनित धारावाहिक पर गहन समीक्षक दृष्टि।
सुंदर पोस्ट।
सादर श्रद्धांजलि 🙏 राजू श्रीवास्तव जी को।
हृदय से आपका आभार माननीया कुसुम जी। यदि रुचि हो तो 'अदालत' धारावाहिक के 'इंद्रधनुष क़ातिल' नामक कथानक को देखें। आपको निश्चय ही एक अच्छी अनुभूति प्राप्त होगी।
हटाएंजितेन्द्र जी,अदालत को मैने भी बहुत बार देखा था पर अब कुछ याद नहीं।पर आपने जिक्र किया है तो लालसा जाग उठी है राजू श्री वास्तव जी के सरल और सहज अभिनय का ये रंग देखने के लिए।राजू श्री वास्तव का असमय और अप्रत्याशित जाना हर आँख नम कर गया।उनकी सलामती के लिए उठे अनगिन हाथों की दुआएँ काम ना आ सकी।हरमन अजीज ये कलाकार गया तो यूँ लगा कोई अपना बेहद खास बिछुड गया हो।परिवार के लिए तो उनका जाना किसी वज्रपात से कम नहीं।आपने बहुत भावपूर्ण और मर्मांतक श्रद्धांजलि लेख लिखा है राजू जी के लिए ।निश्चित रूप से ये कोई विशेष प्रस्तुति ही होगी जिसे आपने अपने लेख में याद किया है।सच में राज कपूर के ' रजत पट नायक ' 'राजू'
जवाब देंहटाएंही थे राजू श्रीवास्तव ।उनका दिल सोने का तो दूसरों को मुस्कुराने के लिए मजबूर कर देने का ज़ज़्बा कोहिनूर से कम ना था। उनकी जीवटता और फर्श से अर्श तक पहुँचना आम आदमी के लिये प्रेरणादायक रहेगा।वे सभी के मनों में सदैव बसे रहेंगे। हमारे अत्यंत प्रिय राजू श्री वास्तव जी की पुण्य स्मृति को सादर अश्रुपूरित नमन🙏🙏
आभारी रहूँगी यदि आप 'इन्द्रधनुष कातिल का लिंक मेरे व्हात्ट्स अप्प पर भिजवा दें 🙏🙏
जी रेणु जी। लिंक मैं इस लेख में भी दे देता हूँ तथा आपको पृथक् रूप से भी भेज देता हूँ। आपने दिवंगत राजू जी के लिए जो कहा, वह पूर्णतः सत्य है। उन्हें सदा स्मरण किया जाता रहेगा। हृदय से आभारी हूँ मैं आपका।
हटाएंकुछ व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग पर विलंब से आने के लिए क्षमा करिएगा जितेन्द्र भाई साहब ।
जवाब देंहटाएंराजू श्रीवास्तव जी का इस तरह असमय अचानक चले जाना हर किसी को दुखी कर गया । उनके अभिनय और उनकी कॉमेडी की खासियत थी कि हर एक व्यक्तित्व में ढल जाना बेजान चीजों पशु पक्षियों के चरित्र में भी जान डालने की उनकी क्षमता का हर इंसान कायल था । यही कारण है कि उनके जाने पर सबकी आंखें नम हो गईं । अभी हाल फिलहाल तो कोई भी हास्य कलाकार उनके आसपास भी नहीं है, उनकी कमी पूरी होना बहुत मुश्किल है । उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
मैं सहमत हूँ आपसे जिज्ञासा जी कि राजू श्रीवास्तव हर व्यक्तित्व में ढल जाते थे और इस मामले में उनका कोई सानी नहीं था। हार्दिक आभार आपका।
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