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बुधवार, 20 जुलाई 2022

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

भूपिंदर नहीं रहे। न जाने क्यों अट्ठारह जुलाई के दिन का कोमल भावनाओं एवं संगीत से संबंध रखने वाले कलाकारों से एक विचित्र-सा संबंध मुझे दृष्टिगोचर हुआ ? ठीक एक दशक पूर्व इसी दिन अपने समय में प्रेमिल चलचित्रों के पर्याय बन चुके राजेश खन्ना दिवंगत हुए थे। उस घटना के परिणामस्वरूप मेरी लेखनी से उनकी कालजयी फ़िल्म 'अमर प्रेम' (१९७२) पर एक लेख फूट पड़ा था। आज भूपिंदर के देहावसान के दुखद समाचार ने मुझे 'हो के मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा' गीत की याद दिला दी। मैंने 'परिचय' में रेखांकित किया है कि हिन्दी फ़िल्मी गीतों में मेरा सर्वप्रिय गीत यही है। 

६ फ़रवरी, १९४० को अमृतसर में एक संगीत शिक्षक के पुत्र के रूप में जन्मे भूपिंदर के हृदय में संगीत के प्रति प्रेम विलम्ब से जागृत हुआ किन्तु एक बार जागृत हो गया तो उसके उपरान्त संगीत से उनका संबंध जीवनपर्यन्त रहा। उन्होंने गिटार तथा वायलिन बजाना सीखा एवं ग़ज़ल गायकी में रूचि लेना आरंभ किया। अंततः तो वे ग़ज़ल गायक के रूप में ही सुविख्यात हुए किन्तु उनके गायन की यात्रा तब आरंभ हुई जब १९६२ में (जिन दिनों वे आकाशवाणी में सेवारत थे), प्रारब्ध ने उनकी भेंट हिन्दी फ़िल्मों के महान संगीतकार मदन मोहन जी से करवा दी। मदन मोहन जी की प्रेरणा से वे दिल्ली से मुम्बई (बम्बई) चले आए। प्रसिद्ध फ़िल्मकार चेतन आनंद जी ने जब भारत-चीन युद्ध पर आधारित अपनी अमर कृति 'हक़ीक़त' (१९६४) का निर्माण किया तो उसका संगीत मदन मोहन जी ने दिया। और कैफ़ी आज़मी साहब के रचे हुए हृदयस्पर्शी गीतों पर मदन मोहन जी ने कालजयी संगीत का सृजन किया। इन दोनों विभूतियों ने सात मिनट की अवधि तथा चार अंतरों वाला एक असाधारण गीत सिरजा जिसकी आरंभिक पंक्ति है - हो के मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा। इसके द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ अंतरों को गाने हेतु मदन मोहन जी ने तीन वरिष्ठ एवं दिग्गज गायकों - क्रमशः मोहम्मद रफ़ी, तलत महमूद एवं मन्ना डे का चयन किया किन्तु गीत की स्थायी एवं प्रथम अंतरे के गायन हेतु उन्होंने अत्यंत युवा भूपिंदर को चुना। और भूपिंदर का गाया हुआ वह प्रथम गीत ही हिंदी फ़िल्म संगीत के इतिहास की अनमोल धरोहर बन गया। इस गीत को पटल पर देखते समय संगीत, साहित्य तथा सिनेमा के प्रेमी इस प्रकार मंत्रमुग्ध हो जाते हैं कि किसी को सूझता ही नहीं कि गीत को गाते हुए जो अभिनेता फ़िल्म के दृश्य में दिखाई दे रहे हैं; वे भी कोई अन्य नहीं, स्वयं भूपिंदर ही हैं। 

भूपिंदर कभी काम पाने के निमित्त किसी के पीछे नहीं भागे। इसीलिए उन्होंने फ़िल्मी गीत कम ही गाए लेकिन जो गाए, उनमें से अधिकांश ऐसे रहे जो संगीत के शैदाइयों के लिए हीरे-जवाहरात से भी ज़्यादा क़ीमती साबित हुए। इसी वर्ष सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर भी दिवंगत हुई हैं। भूपिंदर ने लता जी के साथ शास्त्रीय राग 'यमन कल्याण' पर आधारित 'बीती ना बिताई रैना' (परिचय-१९७२) तथा 'नाम गुम जाएगा' (किनारा-१९७७) जैसे अविस्मरणीय गीत गाए। 'घरौंदा' (१९७७) फ़िल्म के लिए रूना लैला जी के साथ मिलकर 'दो दीवाने शहर में' मस्ती के साथ गाया तो उसी गीत का एकाकी संस्करण 'एक अकेला इस शहर में' उदास स्वर में भी गाया। फ़िल्मी गायन के क्षेत्र में उन्हें ब्रेक देने वाले मदन मोहन जी ने ही उनसे गुलज़ार साहब द्वारा फ़िल्म 'मौसम' (१९७५) हेतु रचित असाधारण गीत 'दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन' गवाया - लता जी के साथ भी (द्रुत गति में) एवं अकेले भी (मद्धम गति में)। इनके अलावा 'रुत जवां जवां' (आख़िरी ख़त-१९६६), 'आने से उसके आए बहार' (जीने की राह-१९६९), 'ज़िंदगी मेरे घर आना' (दूरियाँ-१९७९), 'थोड़ी सी जमीन थोड़ा आसमान' (सितारा-१९८०), 'हुज़ूर इस क़दर भी न इतरा के चलिए' (मासूम-१९८३) और 'आवाज़ दी है आशिक़ नज़र ने' (ऐतबार-१९८५) जैसे कई यादगार गीतों में भूपिंदर ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा।

उन्होंने कई फ़िल्मी गीतों के लिए अपना स्वर देने के स्थान पर गिटार ही बजाया। क्या 'चिंगारी कोई भड़के' (अमर प्रेम-१९७२), 'तुम जो मिल गए हो' (हंसते ज़ख़्म-१९७३), 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' (यादों की बारात-१९७३) और 'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना' (चलते चलते-१९७६) जैसे सुमधुर गीतों को सुनते समय हम कल्पना कर सकते हैं कि उस गीत के संगीत में जो गिटार बज रहा है, उसे भूपिंदर बजा रहे हैं ? 

लेकिन उनका मन ग़ज़ल गाने में ज़्यादा रमता था। उन्होंने निदा फ़ाज़ली साहब की कालजयी ग़ज़ल 'कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता' को अपने स्वर में भी अजरअमर कर दिया। यह ग़ज़ल फ़िल्म 'आहिस्ता आहिस्ता' (१९८१) में सम्मिलित की गई जिसे ख़य्याम साहब ने संगीतबद्ध किया। और 'ऐतबार' (१९८५) फ़िल्म के लिए भूपिंदर द्वारा आशा भोसले जी के साथ गाई हुई ग़ज़ल 'किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है' निस्संदेह हिन्दी सिने-संगीत की सर्वश्रेष्ठ ग़ज़लों में सम्मिलित की जा सकती है (इसे हसन कमाल जी ने लिखा था एवं बप्पी लहरी जी ने संगीतबद्ध किया था)। अंततः जब सत्तर के दशक के अंत में टेप पर बजाई जाने वाली कैसेटों के युग के सूत्रपात के साथ ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़लों का दौर आरम्भ हुआ तो भूपिंदर की गाई हुई ग़ज़लों ने शायरी और मौसीक़ी दोनों ही के शैदाइयों के दिल लूट लिए। 

१९७८ में भूपिंदर की मुलाक़ात बांग्लादेश की निवासिनी मिताली मुखर्जी से हुई जो ख़ुद भी एक गायिका थीं (और हैं)। सरहदें दिलों को मिलने से भला कब रोक पाई हैं ? प्यार हुआ और फिर भूपिंदर-मिताली शादी के बंधन में भी बंधे। दोनों मिलकर गाने लगे और फिर भूपिंदर-मिताली के 'आरज़ू', 'अर्ज़ किया है', 'गुलमोहर', 'तू साथ चल', 'दर्द'-ए-दिल', 'आपस की बात', 'अक्सर', 'जज़्बात', 'मोहब्बत', 'एक आरज़ू', 'शमा जलाए रखना', 'एक हसीन शाम', 'चाँदनी रात', 'आपके नाम' और 'दिल की ज़ुबां' जैसे सुरीले एलबम लोगों के दिलों पर छा गए। मिताली ने अपने एकल एलबम भी निकाले और इन दोनों ने बांग्ला भाषा में भी अपने गीतों के एलबम संगीत-प्रेमियों को प्रस्तुत किए। उन्हें गुलज़ार साहब का भी भरपूर साथ मिला जिसके परिणामस्वरूप संगीत तथा साहित्य दोनों ही के रसिकों को अनमोल उपहार मिले। भूपिंदर-मिताली द्वारा मिलकर गाई गई ग़ज़ल 'राहों पे नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना, आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना' एक ऐसा नायाब शाहकार है जिसे एक बार सुन लेने के बाद भूलना शायद ही मुमकिन हो।  

मैं इस महान गायक और संगीतज्ञ के साथ न्याय करने योग्य लेख लिखने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ। संगीत के संसार में भूपिंदर के योगदान पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है एवं लिखा जाना चाहिए। इस वक़्त मैं अपनी बात को भूपिंदर द्वारा फ़िल्म 'बाज़ार' (१९८२) के लिए गाई गई (बशर नवाज़ जी की लिखी हुई एवं ख़य्याम साहब द्वारा संगीतबद्ध) नज़्म की इन पंक्तियों के साथ विराम देता हूँ -  

करोगे याद तो हर बात याद आएगी 
गुज़रते वक़्त की हर मौज ठहर जाएगी

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37 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बेहतरीन...
    अश्रु पूरित श्रद्धा सुमन
    सादर

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  3. भूपिन्दर जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर समग्रता से प्रकाश डालता यह लेख उनके प्रशंसकों के लिए संग्रहणीय है । भूपिन्दर जी को शत शत नमन .

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  4. शत शत नमन। भूपेन्द्र जी के,सभी पहलुओं पे प्रकाश डालतीं रचना।बहुत बढ़िया।

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  5. आदरणीय जितेन्द्र जी, आज आपके लिखे लेख ने भूपेंद्र जी के बारे में कई जानकारियां दी। तथ्यों और विवरणों ने लेख को संग्रहणीय बना दिया है।
    भूपेंद्र जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
    सादर

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  6. भूपेंद्र जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏 । रोचक जानकारी मिली । बहुत बढ़िया लेख ।

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  7. भूपेंद्र जी के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालती बहुत ही सुंदर और सविस्तर रचना। भूपेंद्र जी को शत शत नमन।

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  8. भूपिन्दर जी को शत शत नमन, आदरणीय आपकी ब्लाग से भूपिन्दर जी के जीवन के बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल हुई ।

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  9. बेहतरीन संस्मरण .भूपेन्द्र जी की स्मृतियों को नमन.विनम्र श्रद्धांजलि

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  10. आदरणीय जितेंद्र जी जिस दिन भूपिंदर साब के गुजरने की खबर आयी और उनके बारे में पढ़ा तो मन में यह भी आया कि आप भी भूपिंदर जी को जरूर याद करेंगे।आप ने निराश नहीं किया। बहुत अच्छा लगा सर आपको पढ़कर। बहुत-बहुत बधाई आपको।

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  11. भूपिंदर जी को विनम्र श्रद्धांजलि! सादर नमन!

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  12. बहुत सुंदर, नायाब जानकारी दी है आपने इस पोस्ट में जितेन्द्र जी । बहुत बारीक चीजों पर आपकी पारखी नज़र आलेख में जिज्ञासा पैदा कर गई । बहुत आभार आपका ।

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  13. महान गायक और संगीतज्ञ भूपिंदर जी के जीवन वृत्त को विस्तार से प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद आपका। उनकी गयी गजले सुनकर आज भी मन भाव विभोर हो उठता है।

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  14. भूपिंदर जी एक आत्मसम्मानी महान कलाकार थे।
    उनकी आवाज़ में इतनी गहराई थी कि सुनने वाले के हृदय तक उतरती थी।
    भूपिंदर जी के बारे में विस्तृत जानकारी वाली
    पोस्ट उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
    सार्थक पोस्ट।
    साधुवाद।

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    1. आपकी बात से मैं पूर्णरूपेण सहमत हूँ माननीया कुसुम जी। हार्दिक आभार आपका।

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  15. महान संगीतज्ञ भूपिन्दर जी वाकई कमाल के गायक रहे । आपने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बहुत ही लाजवाब एवं संग्रहणीय संस्मरण लिखकर उन्हें अद्भुत श्रद्धांजलि दी है।

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  16. What a tribute to the legendary Sri Bhupender ji!
    Well-paced and so informative for many

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  17. नमन!!! भूपिंदर जी के कृतित्व को दर्शाता आलेख।

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