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सोमवार, 3 मई 2021

मौत और उसके बाद

सुबह-सुबह अपनी एक पोस्ट ब्लॉगर पर डालकर हटा ही था कि रीडिंग लिस्ट में अत्यन्त लोकप्रिय ब्लॉगर, लेखिका, कवयित्री, शायरा एवं कला-मर्मज्ञा डॉ. शरद सिंह की पोस्ट पर नज़र पड़ते ही दिल धक् से रह गया - कोरोना ने मेरी दीदी डॉ. वर्षा सिंह को मुझसे छीन लिया....।

यकबारगी तो ऐतबार ही नहीं हुआ। क्या ये आंखें जिन शब्दों को पढ़ रही हैं, वे सच हैं? क्या सत्य ही असाधारण लेखिका, कवयित्री, शायरा एवं कला-प्रेरिका वर्षा जी नहीं रहीं? क्या यह विदुषी अब केवल स्मृति-शेष है? कुछ दिवस पूर्व ही वर्षा जी एवं शरद जी ने अपनी माता विद्यावती जी को खोया है। शरद जी के मानस पर उस क्षति का जो प्रभाव पड़ा, वह उनकी कतिपय पोस्टों में स्पष्ट झलका। लेकिन जैसे कि संसार चलता है, यही अपेक्षा थी कि ये दोनों बहनें अपनी माता के अवसान से उत्पन्न अवसाद से अंततः उबरेंगी। पर वर्षा जी का असमय चला जाना तो ऐसा आघात है जिसे सह पाना तो मुझे अपने लिए ही संभव नहीं लग रहा। ऐसे में उनकी सगी बहन शरद जी की स्थिति की तो केवल एक अत्यन्त पीड़ादायी कल्पना ही की जा सकती है।

कोई भी पूर्णतः आकस्मिक परिघटना चाहे अच्छी हो या बुरी, अंतस में उतरकर अवशोषित होने एवं वैचारिक परिदृश्य का अंग बनने में समय लेती है क्योंकि अनपेक्षित होने के कारण मन उस पर तुरंत तो विश्वास ही नहीं कर पाता (सच कहा जाए तो विश्वास करना ही नहीं चाहता)। घटना बुरी हो तो उससे उपजे दुख का अहसास भी धीरे-धीरे ही होता है, ठीक उसी तरह जिस तरह 'दर्द अब जा के उठा, चोट लगे देर हुई'। आंसू तत्काल इसलिए नहीं निकल पाते क्योंकि वह सूचना सम्पूर्ण व्यक्तित्व को जड़ कर देती है, मस्तिष्क को निष्क्रिय कर देती है, वाणी को मूक कर देती है। लेकिन आंसू न निकलना इस बात का सबूत नहीं कि दिल ग़मगीन नहीं है। 

वर्षा जी से मेरा परिचय पुराना नहीं। विगत वर्ष ही मैंने पहले उनकी ग़ज़लें और फिर उनके लेख पढ़ने आरम्भ किए थे। यद्यपि मैं ब्लॉगर पर जनवरी 2011 से सक्रिय हूँ, तथापि मेरा ब्लॉगरों से विशेष परिचय नहीं रहा। मेरे अपने लेख पढ़ने के लिए (और टिप्पणी करने के लिए) कभीकभार ही लोग आया करते थे। मैं इससे अप्रभावित इसलिए रहा क्योंकि मैंने तो सदैव स्वांतः सुखाय के निमित्त ही लिखा चाहे कोई उसे पढ़े चाहे न पढ़े (ये पंक्तियां भी मैं केवल अपने लिए ही लिख रहा हूँ, अपने मन की घुटन एवं अवसाद के विरेचन हेतु लिख रहा हूँ)। मैं केवल इसलिए साथी ब्लॉगरों के पृष्ठों पर नहीं गया कि बदले में वे भी मेरे पृष्ठ पर आएं और टिप्पणी करें। वैसे भी मेरे जैसे विचार रखने वाले लोग मुझे विरले ही मिलते हैं। पर...

पर एक बार जो वर्षा जी के ब्लॉग पर गया तो फिर कभी उस पर जाए बिना रहा ही नहीं गया। मैं शायर नहीं लेकिन शायरी को पढ़ना ही नहीं, पढ़कर सुनाना भी मुझे अच्छा लगता है। वर्षा जी की न जाने कितनी ही ग़ज़लों को पढ़कर मुझे लगा कि इन्हें तो याद करना होगा ताकि किसी महफ़िल में सुना सकूं। जिस तरह ग़ज़ल कहना एक हुनर है, वैसे ही ग़ज़ल पढ़ने का भी एक शऊर होता है जो हर किसी को नहीं आता। मुझे आता है और इसीलिए जब मैंने 'बुक कैफ़े' में जय प्रकाश पांडेय जी द्वारा वर्षा जी के ग़ज़ल-संग्रह 'ग़ज़ल जब बात करती है' की चर्चा (यूट्यूब पर) सुनी तो मुझे लगा कि वर्षा जी की प्रतिभा और पुस्तक की गुणवत्ता ही नहीं, शायरी की विधा के साथ भी न्याय नहीं हुआ। वर्षा जी के हिंदी ही नहीं, बुंदेली बोली के आलेखों को भी एक बार पढ़ा तो लगा जैसे जी ही नहीं भरा, पुनः पढ़ना चाहिए। 

लेकिन मेरे लिए जो सम्मान की बात रही, वह यह थी कि वे मेरे लेखों पर आईं और कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की बल्कि जो कहा दिल से कहा, संबंधित लेखों को आद्योपांत ठीक से पढ़ने और समझने के उपरांत कहा। मैं लम्बे लेख लिखता हूँ और कई बार उन्हें समझने के लिए जो समय और श्रम चाहिए, वह पढ़ने वालों के पास नहीं होता। ऐसे में इतनी व्यस्त रहने वाली साहित्य-सर्जिका एवं कलावंती का मेरे लेखों को इतना समय देना एक असाधारण बात ही थी। मैंने वर्षा जी को कभी नहीं देखा, उनकी आवाज़ कभी नहीं सुनी, उनके व्यक्तित्व के बारे में इतने विलम्ब से जाना और जानने की प्रक्रिया अभी आरंभ ही हुई थी पर ...। 

पर न जाने कौनसे बेनाम रिश्ते की डोर उनसे कब बंधी, पता ही नहीं चला। मुझे बहुत अच्छे से यह मालूम है कि किसी इंसान का असली मोल हमें उसके दूर हो जाने के बाद ही पता लगता है। लेकिन मुझे तो अपनी सृजन-यात्रा में उनका मोल पता लग गया था कि वे अचानक ही दूर हो गईं। बार-बार मन में यही बात उठ रही है कि काश यह समाचार ग़लत निकले, वे अभी इस फ़ानी दुनिया में मौजूद हों लेकिन हम ज़िन्दगी की सच्चाई से भाग तो नहीं सकते। जब मैं जिसका वर्षा जी से कोई नामलेवा रिश्ता नहीं था, उनके जाने की सिर्फ़ ख़बर पाकर अपने को नहीं संभाल पा रहा तो शरद जी पर क्या बीत रही होगी? 

कल ही मैंने नेटफ़्लिक्स पर 'रामप्रसाद की तेरहवीं' नामक नवीन फ़िल्म देखी जिसकी कहानी एक मृत्यु की रू में होने वाले घटनाक्रम पर आधारित है। काश कि न देखता! चारों ओर मौत ही की तो बात हो रही है। विगत कुछ मास में मेरे भी कई रक्त-संबंधी काल-कवलित हो गए हैं। ऐसी प्रत्येक मृत्यु के समाचार को सुनकर मन में यही आया है कि जीवन की बात होनी चाहिए, जीवन को संजीवनी मिलनी चाहिए। मौत के बाद क्या है? मरने वाले के पीछे जो  बच गए हैं, उनकी तक़लीफ़ें और ग़म बस (अगर उन्हें मरने वाले से सच्चा लगाव रहा हो तो) ! लेकिन वर्षा जी के जाने ने मुझे झकझोर दिया है। तर्कपूर्ण ढंग से सोचने का जी ही नहीं कर रहा। आंखें ख़ुश्क हैं मगर लगता है जैसे रोम-रोम रो रहा है। 

संक्रमण के भय से अपनी लगभग समस्त गतिविधियां बंद कर देने वाले अपने सहकर्मियों से मैं यही कहता आ रहा हूँ कि मौत तो ज़िन्दगी का आख़िरी अंजाम है, मौत से डरना अहमक़ों का काम है। ख़ुद को भी एक मुद्दत से यही शेर याद दिलाता आ रहा हूँ - मुझे मालूम है अपना अंजाम नासेह; मैं इक रोज़ मर जाऊंगा, यही न? पर अब महसूस कर रहा हूँ कि मौत की बातें करने में और किसी अपने (या अपने-से लगने वाले) की मौत के रूबरू होने में कितना फ़र्क़ है। तीन दिन पहले ही तो कुँअर बेचैन जी शायरी के शैदाइयों को ग़मज़दा छोड़कर रूख़सत हुए हैं। और अब वर्षा जी छोड़ गईं।

मैं नहीं जानता कि वर्षा जी के परिवार में शरद जी के अतिरिक्त और कौन-कौन हैं, मैं यह भी नहीं जानता कि इनका निवास-स्थान कहाँ है, और न ही यह जानता हूँ कि उनकी आयु कितनी थी। वर्षा जी के जीवन की समस्त उपलब्धियों का तो ठीक से अनुमान भी नहीं लगा सकता। लेकिन उनकी देह मिट्टी हो गई है, इस हक़ीक़त से मुँह कैसे फेरूं? 'ग़ज़लयात्रा 'पर वर्षा जी की (16 अप्रैल को) पोस्ट की हुई आख़िरी ग़ज़ल - 'है ज़रूरी सावधानी' का आख़िरी शेर है - 'रह न जाए याद बनकर बूंद-"वर्षा" की कहानी' क्या सचमुच उनकी कहानी अब याद बनकर ही रह गई है? आज सुबह से यही लग रहा है जैसे मेरी रूह का कोई हिस्सा उससे जुदा हो गया है। आपने अपना यह आख़िरी शेर क्यों लिखा वर्षा जी? आख़िर क्यों?

32 टिप्‍पणियां:

  1. आ. डा. वर्षा जी के निधन की खबर पाकर स्तब्ध हूँ।
    कई बार उनकी प्रतिकियाओं ने मुझे प्रेरित किया है।
    ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा हेतु शांति की प्रार्थना करता हूँ।

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  2. दुखद! मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है की वर्षा जी नही रही। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे🌻

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  3. पाबला जी के बाद वर्षा जी का जाना ब्लॉग जगत के लिये बहुत बड़ी क्षति है😢।
    ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

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  4. नि:शब्द! न नम आंखों को कुछ दिख रहा है न कंठ से कोई शब्द फूटने को तैयार है... कितना धुंधला-सा लगता है जीवन का यह चित्रपट! वर्षा जी की स्मृति सदैव मन के एक विक्षुब्ध कोने में काल के इस क्रूर दंश से सिसकती रहेगी। वर्षा जी प्रणाम। हमारी यादों के अंतरिक्ष में आपकी ग़ज़ल सर्वदा अनंत को साधती रहेगी।😢😢😢🙏🙏🌹🌹🙏🙏

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (4-5-21) को "कला-प्रेरिका वर्षा जी नहीं रहीं" (चर्चा अंक 4056) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  6. जितेंद्र जी आपका लेख पढ़कर निशब्द हूँ।आपने सबके मन की बात लिख दी। ब्लॉग जगत का चमकता सितारा यूँ अस्त हो जायेगा, सोचा न था। वर्षा जी का आकस्मिक निधन स्तब्ध और व्याकुल कर गया। अभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं। दोपहर में whaats up पर प्रिय श्वेता के बिलखते शब्द पढ़कर सन्नाटे में आ गयी। मेरे रौंगटे खड़े हो गए! श्वेता इतनी व्यथित थी कि उसके लिए सांत्वना के पर्याप्त शब्द ना मिल सके। अभी ना जाने उसका क्या हाल होगा कह नहीं सकती। शरद जी के लिए बहुत वेदना हो रही है। माँ के बाद माँ जैसी ममतामयी बहन को खोना कितना दर्दनाक रहा होगा, अनुमान लगाते भी आँसू बहने लगते हैं। ईश्वर करे शरद जी सकुशल हों। उनके लिए भी चिंता होने लगी है। वर्षा जी की पुण्य स्मृति को नमन लिखते हुए कलेजा फटा जा रहा है। अलविदा वर्षा जी🙏🙏 आप बहुत याद आयेगी। अश्रुपुरित नमन🙏🙏😪😴😥 😪😪

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  7. आज विश्वास नहीं कर पा रहे कि वर्षा जी नहीं रही। उनका खूबसूरत, तेजस्वी मुखड़ा आँखों से ओझल नहीं हो पा रहा। उनके ब्लॉग पर जाते ही सुंदर छवि चित्र बरबस सम्मोहन में मेंबांध लेता था। मैंने हाल ही में हुई उनकी माता जी के निधन के फलस्वरूप उनके ब्लॉग पर श्रद्धाञ्जली शब्द लिखे थे। अपनी अस्वस्थता में शायद वे उनका उत्तर ना दे पाईं और उत्तर अपने साथ लेकर चली गयी। ज्यादा परिचय ना होने पर भी भी स्नेह स्वरूप उनके शुभ कामना संदेश फेसबुक पर यदा कदा मिलते रहते थे। एक दो बार वहाँ अनौपचारिक संवाद भी हुआ जो मेरे लिए अविस्मरणीय है। आभासी संसार भी एक परिवार जैसा ही लगता है अब तो। यहाँ भी कोई अनहोनी परिवार जैसे ही दर्द देती है। वर्षा जी की रचनाएँ आँखें नम करती रहेंगी। उनका भावपूर्ण लेखन सदैव पाठकों को रिझाता रहेगा। नमन वर्षा जी।
    आभार जितेंद्र जी, इतने कम परिचय में भी भावनाओं की प्रगाढ़ता और आत्मीयता आप की सहृदयता की परिचायक है। आज आपकी दो तीन रचनाओं पर लिखने वाली थी, पता ना था वर्षा जी के लिए इस तरह लिखना होगा। एक सहयोगी की आकस्मिक विदाई पर आपके भावपूर्ण लेख ने भी आँखों को बार बार नम किया। आभार, साधुवाद 🙏🙏😔

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  8. लौट आओ दोस्त
    हुई सूनी दिल की महफ़िलें,
    नज़्म है उदास
    थमे ग़ज़लों के सिलसिले,
    अंतस में घोर सन्नाटे हैं।
    सजल नैनों में ज्वार - भाटे हैं
    बिछड़े जो इस तरह गए
    ना जाने किस राह चले?
    कौन देगा शरद को
    स्नेह की थपकियाँ
    किसके गले लग बहन की।
    थम पाएंगी सिसकियां
    किस बस्ती जा किया बसेरा
    हुए क्यों इतने फासले!!
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  9. आपका लिखा एक एक शब्द मन को विह्वल कर रहा है . आज फेसबुक खोलते ही सबसे पहली पोस्ट शरद जी की देख हतप्रभ रह गयी . 20 अप्रेल को माँ को खोने का दर्द इनकी ग़ज़ल में छलका था . कल यूँ ही याद कर रही थी कि शायद अभी माँ के जाने के दर्द से उबर नहीं पायीं है दोनों इसीलिए न कुछ लिख रही हैं और न ही ब्लॉग पर आना हुआ है . ये कहाँ पता था की ज़िन्दगी के लिए जद्दोजहद में लगी हैं . हमारा 11-12साल पुराना साथ था . बीच में मैं ही ब्लॉगिंग से दूर हो गयी . वापसी पर वर्षा जी द्वारा स्वागत करना कभी भूलेगा नहीं . यूँ तो मैं ग़ज़ल लिखती नहीं हूँ , बस कभी कभी लिख दी जाती है उस पर भी उनके द्वारा मेरे ब्लॉग पर उनकी अंतिम टिप्पणी हमेशा याद रहेगी कि ग़ज़ल की दुनिया में आपका स्वागत है . वर्षा जी आप सच में बहुत याद आएँगी . कितना ही हम मनोबल बढ़ाने का प्रयास करें लेकिन रोज़ ऐसी ख़बरें तोड़ कर रख देती हैं .
    वर्षा जी आपको अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🤑🤑

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  10. जीतेंद्र जी आपके ब्लॉग पर आकर ये पोस्ट देख आश्चर्यचकित हो गई, कि आपने ये क्या लिख दिया,अभी तो वर्षा जी की मां को गए कुछ ही दिन हुए शायद कोई गलतफहमी हुई है,पर ऐसा नहीं हुआ शरद जी की पोस्ट देखकर कलेजा फट गया,आंखों में वर्षा जी की चिरपरिचित छवि,जो उनकी गजलों, रचनाओं में दिखती थी निकल ही नही रही । सच ये भगवान का कृत्य सही नही है,अभी तो वर्षा की को बहुत कुछ लिखना था ,वो निरंतर बहुत बढ़िया सृजन गजल कविताओं के रूप में कर रही थीं ।
    मैं तो उनकी टिप्पणी लिखने की कला ही देखा करती थी,कभी भी कोई अधूरी प्रतिक्रिया नहीं देती थीं,निरंतर पूर्णता लिए हुए हर लेखन होता था उनका,
    रेणु जी की कविता ने तो रुला दिया,कुछ लिखना मुश्किल हो रहा है,जितेन्द्र जी आपका इतना अपनत्व भरा लेखन मन को छू गया । अलविदा प्रिय वर्षा जी,ईश्वर आपको चांद सितारों के बीच सजाए, आप एक तारे की तरह हमेशा चमकें,आपको मेरा शत शत नमन 😢😢🙏🙏🌹🌹

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  11. आदरणीय जितेंद्रजी, ऐसे मौकों पर मैं कुछ कह नहीं पाती, मेरे शब्द ही गुम हो जाते हैं और अन्यों के शब्दों में ही अपने भावों को तलाशती रह जाती हूँ। बस उनका चेहरा, उनकी तस्वीर में देखा हुआ वह तेजोमय, मुस्कुराता चेहरा आँखों के सामने से हटता नहीं है। नींद भी कोसों दूर है आँखों से ! ईश्वर से सिर्फ प्रार्थना ही कर सकती हूँ कि आदरणीया, प्यारी वर्षा दीदी को असीम शांति प्रदान करें। शत शत नमन।

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  12. खोने का दर्द वही समझ सकता है जिसने अपनों को खो दिया हो। आपके आलेख से वर्षा जी के बारे में पता चला। उन्हें मेरी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि। ज्यादा क्या लिखूं इस साल 19 अप्रैल को अपने पिता कवि घनश्याम को खोकर लगा दुनिया ही लुट गयी। महज 10 मिनट ही तो हुए थे उनके पास से हटे हुए और इसी समय अंतराल में नियति ने उन्हें हमसे हमेशा के लिए छीन लिया। एक माह पूर्व ही बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्हें डॉ शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव स्मृति सम्मान मिला था। उनके कहने पर पहली बार बिहार के किसी मंच से मैन अपनी स्वरचित गजल पढ़ी थी। अब उनके गीत-गजलों को पुस्तक का रूप देकर उन्हें सच्ची साहित्यिक श्रद्धांजलि देने की जिम्मेदारी हम दोनों भाईयों के कंधों पर है।
    दो पंक्तियों के माध्यम से विगत कुछ महीनों
    में अपनों को अलविदा कह गए साहित्यसेवी दिवंगत आत्मा को नमन करता हूँ।
    ऐसे भी कोई जाता है
    अपनों को कोई रुलाता है
    फिर हमको क्योंकर छोड़ गए
    दुनिया से मुंह क्यों मोड़ गए
    तुम याद हमेशा आओगे
    रह-रहकर हमें रुलाओगे
    खट्ठी-मिट्ठी यादें बनकर
    स्मृतियों में बस जाओगे
    तुम भले नजर न आओगे
    पर सदा राह दिखलाओगे।

    शत-शत नमन🌼🙏

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  13. स्तभ हूँ ये खबर सुन कर! मैं मैम को बस कुछ ही महीने से जानती हूँ, मैम बहुत ही सरल स्वभाव की ही थी! मैं निशब्द हूँ क्या कहूँ समझ नही आ रहा! आपको शत-शत नमन 🙏🙏🙏🙏😭😭😭😭

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  14. श्रद्धांजलि के रूप में पेश है, उनकी ही लिखी कुछ पंक्तियों से प्रभावित, एक कविता, मेरी ओर से एक श्रद्धासुमन -
    https://purushottamjeevankalash.blogspot.com/2021/05/blog-post_4.html

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  15. स्तब्ध हूँ ,यह खबर पढकर । आदरणीय वर्षा जी की गजलें पढी हैं मैंने भी ,लग रहा है मानो चमकता सितारा अस्त हो गया । विनम्र श्रद्धांजलि 🙏

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  16. जितेंद्र भाई,ब्लॉगिंग की इस आभासी दुनिया मे हम लोग आपस मे मिलते तो नही है। लेकिन न मिलते हुए भी कई ब्लोगरों से एक अनजाना लेकिन मजबूत रिश्ता बन जाता है। आपने जिन शब्दों में यह लेख लिखा है, वो इस बात की पुष्टि करते है।
    बहुत ही दुखद घटना। वर्षा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  17. हमने आदरणीय वर्षा जी की गजलों कोपढा है
    इस खबर को सुनकर.....
    विनम्र श्रद्धांजलि....।

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  18. आँखें नम हो गई,हृदय व्याकुल हो उठा,कभी नहीं मिले पर वे मेरे लिए अजनबी नहीं थी,वास्तव में हम सबको ब्लाॅगिंग ने एक सूत्र में बाँध दिया है।न जानते हुए भी सब अपने लगते हैं।उनका इतनी जल्दी और ऐसे चले जाना विश्वास से परे है। ईश्वर उनके परिवार को कठिन घड़ी में शक्ति प्रदान करें।

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  19. बहुत दुखद है, उनके निधन से स्तब्ध हूं। मैं तो अभी ब्लॉग पर आया हूं लेकिन उनकी प्रतिक्रियाएं आती थीं और वह में बेहतर करने की प्रेरणा होती थी।

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  20. बहुत ही दुखी हूँ यह सब जानकर। पता नहीं शरद जी और उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी
    सच में जितेंद्र जी हमारा यह आभासी परिवार हमारे लिए कितना अपना सा और महत्वपूर्ण हो गया है ये आ. वर्षा जी के जाने से पूरा ब्लॉग जगत ही शोकाकुल और गमगीन है..मुझे तो उनके लिए श्रद्धांजली लिखने में भी हिचक हो रही है लगता है अभी पता चलेगा कहीं से कि वर्षा जी ठीक हैं...
    खैर...
    बस आप सभी से विनती है कि सब अपना ख्याल रखें पूरी तरह सतर्क रहें..।

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  21. सच में विश्वास से परे है उनका जाना, कितने वर्षों से जानता हूँ उन्हें, ब्लॉग जगत के रिश्ते सच में अपने लगते हैं ... उनका जाना गहरा आघात है ... इश्वर परिवार को दुःख सहने की क्षमता दे ...

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  22. ऐसे सत्य को स्वीकार करना भी कितना कठिन है ... अनुभव हो रहा है । नि:शब्द ....

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  23. स्तब्ध है पुरा ब्लाग जगत ,यूं भी कोई रूठता है जीवन से भला, अपनों को तो सभी रुलाते हैं जाने वाले, पर ये एक अनदेखा कौनसा अपनत्व है कि बिना किसी जान-पहचान मेल-जोल ना कोई खून का संबंध, रो रही है हर आँख जो भी ये प खबर पढ़ रहा है ।
    जीतेन्द्र जी आप ने विस्तार से जो भाव रखें हैं वो ही हर ब्लागर मित्रों के भाव हैं‌।
    प्रभु दिवंगत आत्मा को ऊंच स्थान प्रदान करें।
    शरद जी एंव परिवार जनों को इस वज्रघात को सहन करने की शक्ति दें।
    ॐ शांति।

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  24. बहुत दुखी हूँ जबसे यह खबर मिली कि वर्षा जी अब हमारे बीच नहीं मन इस सच को मानने को तैयार ही नहीं होता। कुछ दिन पहले ही उन्हें ब्लॉग की एक पोस्ट के जरिए जाना उन्हें पढ़ने का मौका मिला क्या पता था कि यह साथ इतनी जल्दी छूट जाएगा। ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और उनके परिवार को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करे🙏 ॐ शांति 🙏

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  25. ऐसे सत्य को स्वीकार करना भी कितना कठिन है ... अनुभव हो रहा है । नि:शब्द ....

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  26. इस पोस्ट पर आगमन एवं भावाभिव्यक्ति हेतु सभी ब्लॉगर मित्रों के प्रति मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।

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  27. बहुत मार्मिक पोस्ट |विनम्र श्रद्धांजलि |वर्षा जी का असामयिक निधन साहित्य और परिवार के लिए आपूरणीय क्षति है |किसी शायर ने कहा है -केएल उसकी आँखों ने क्या जिंदा गुफ़्तगू की थी /गुमान तक न हुआ वो बिछड्ने वाला है |

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    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय तुषार जी। मैं जानता था कि इस हादसे की रू में मेरे दिल का हाल आप ज़रूर समझेंगे। जो शेर आपने कहा है, वो जैसे मेरे ही दिल से निकली कराह है।

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  28. बहुत ह्रदय विदारक रोम रोम को झकझोरने वाली खबर । इनकी पूज्या माँ तो बड़ी बहिनजी कुसुम सिन्हा की बहुत अच्छी परिचित थी । घर पर उनकी बहुत बातें हुआ करती थीं ।

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    उत्तर
    1. जी आलोक जी। मैं समझ सकता हूं कि इस समाचार से आप लोगों को कितना आघात लगा होगा।

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