२५ फ़रवरी, २०१८ की सुबह फैली इस ख़बर पर कानों ने यकीन करने से इनकार कर दिया कि निर्विवाद रूप से भारतीय रजतपट की सबसे अधिक लोकप्रिय नायिकाओं में से एक – श्रीदेवी नहीं रहीं । भारत में ही नहीं संसार भर में बिखरे उनके करोड़ों प्रशंसकों को एक ऐसा आघात लगा जिससे उबरना तो क्या, जिसे आत्मसात् करना भी अल्पकाल में संभव नहीं । बहुत समय लगेगा हम सभी को इस सत्य को स्वीकार करने में कि अपनी निश्छल-निर्मल हँसी और मर्मस्पर्शी अभिनय का जादू चलाने वाली और कई भारतीय भाषाओं के दर्शकों के हृदय पर एकछत्र राज करने वाली यह अद्भुत तारिका अब दिगंत में विलीन हो चुकी है, स्मृति-शेष रह गई है ।
(संभवतः पारिवारिक परिस्थितियों के वशीभूत
होकर) बाल्यावस्था से ही अभिनय के क्षेत्र में उतर पड़ने वाली श्रीदेवी ने अपने
जीवन का अधिकांश भाग एक अभिनेत्री के रूप में कार्य करते हुए व्यतीत किया । तमिल, तेलुगू और मलयालम फ़िल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करते-करते
श्रीदेवी को हिन्दी फ़िल्मों में भी काम मिलने लगा । कन्नड़ अभिनेत्री लक्ष्मी को शीर्षक भूमिका में
प्रस्तुत करती अविस्मरणीय हिन्दी फ़िल्म ‘जूली’ (१९७५) में ‘माई हार्ट इज़ बीटिंग’ गीत पर उस परिवार के सदस्यों की भूमिकाएं निभा रहे कलाकारों के साथ नृत्य
करती बालिका श्रीदेवी की स्मृति संभवतः सभी सिने-प्रेमियों को होगी । कमल हासन और
रजनीकान्त जैसे दक्षिण भारतीय सितारों के साथ ढेरों फ़िल्में करने वाली श्रीदेवी को
किसी हिन्दी फ़िल्म की नायिका के रूप में पहली बार ‘सोलवां
साल’ (१९७९) में देखा गया लेकिन उन्हें पहचान ‘हिम्मतवाला’ (१९८३) से मिली । उसकी सफलता के उपरांत
श्रीदेवी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । उन्होंने न केवल हेमा मालिनी तथा रेखा सरीखी
शीर्षस्थ नायिकाओं के वर्चस्व को तोड़ा वरन जयाप्रदा, रति
अग्निहोत्री, पद्मिनी कोल्हापुरे तथा पूनम ढिल्लों जैसी अपनी
समकालीन नायिकाओं को लोकप्रियता के मापदंड पर बहुत पीछे छोड़ दिया । अभिनय के साथ
ही विभिन्न प्रकार के नृत्यों में भी प्रवीण श्रीदेवी को ‘नगीना’ (१९८६) और ‘मिस्टर इंडिया’
(१९८७) ने व्यावसायिक सफलता के नए शिखरों तक पहुँचाया और अंततः वह दिन भी आया जब अपनी
आगामी फ़िल्म के लिए नायिका खोज रहे हिन्दी फ़िल्मों के अत्यंत सम्मानित निर्माता-निर्देशक
यश चोपड़ा की दृष्टि उन पर पड़ी ।
‘चाँदनी’ की देशव्यापी सफलता के उपरांत उसी वर्ष ‘चालबाज़’ प्रदर्शित हुई जो कि ‘सीता और गीता’ (१९७२) नामक पुरानी हिन्दी फ़िल्म का रीमेक थी । नायिका-प्रधान मूल फ़िल्म में हेमा मालिनी ने दो पूर्णतः विपरीत प्रकृति वाली जुड़वां बहनों की दोहरी भूमिका निभाई थी । श्रीदेवी ने भी ‘चालबाज़’ में वही कमाल कर दिखाया जो हेमा मालिनी ने ‘सीता और गीता’ में कर दिखाया था । उनके दो भिन्न-भिन्न रूपों ने दर्शकों के दिल जीत लिए ।
इधर यश चोपड़ा ने अपनी नई फ़िल्म की रूपरेखा तैयार की जो पुनः एक प्रेमकथा ही थी लेकिन एक नए प्रकार की प्रेमकथा जिसको पारंपरिक भारतीय दर्शकों की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए चित्रपट पर निरूपित करना एक बहुत बड़ा जोखिम था । इसकी कहानी एक युवती के अपने से आयु में बहुत बड़े एक ऐसे पुरुष से प्रेम करने की बात कहती थी जो कि अपनी युवावस्था में उसकी दिवंगत माता से एकपक्षीय प्रेम करता था । यश चोपड़ा ने इस साहसिक कथा को फ़िल्माने का जोखिम उठाया और ‘लम्हे’ (१९९१) रूपहले परदे पर उतरी । पुरुष की भूमिका में अनिल कपूर को लिया गया लेकिन माता और पुत्री की दोहरी भूमिका के लिए एक बार पुनः यश जी की नज़र जाकर श्रीदेवी पर ही ठहरी । जैसी कि आशंका थी, यह अत्यंत सुंदर फ़िल्म पारंपरिक सोच वाले भारतीय समाज द्वारा स्वीकार नहीं की जा सकी और व्यावसायिक दृष्टि से असफल रही । किन्तु श्रीदेवी ने इस कठिन परीक्षा को उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण किया और दर्शकों तथा समीक्षकों दोनों से ही अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा लिया । राजस्थानी लोकगीत – ‘मोरनी बागां मां बोले आधी रात मां’ पर श्रीदेवी का प्रदर्शन कौन भूल सकता है ? ‘लम्हे’ चाहे व्यावसायिक दृष्टि से सफल न रही हो, आज उसे ‘क्लासिक’ की श्रेणी में रखा जाता है ।
वर्ष १९८७ में फ़िल्म ‘मिस्टर इंडिया’ के निर्माण के साथ ही श्रीदेवी का संबंध फ़िल्म-निर्माता बोनी कपूर (वास्तविक नाम – अचल कपूर) से जुड़ा । निर्माता के रूप में स्थापित होने का प्रयास कर रहे बोनी कपूर तथा नायक के रूप में इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने हेतु संघर्षरत उनके छोटे भाई अनिल कपूर दोनों के ही लिए श्रीदेवी का इस फ़िल्म की नायिका की भूमिका स्वीकार करना मानो वरदान सिद्ध हुआ । साथ ही यह फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर के करियर में भी मील का पत्थर साबित हुई । ‘काटे नहीं कटते ये दिन ये रात’, ‘करते हैं हम प्यार मिस्टर इंडिया से’ और ‘बिजली गिराने मैं हूँ आई’ जैसे गीतों पर श्रीदेवी के बिंदास नृत्यों और अभिनय ने धूम मचा दी । संभवतः इस फ़िल्म के बनने की प्रक्रिया के मध्य ही किसी पल बोनी और श्रीदेवी के हृदय के तार जुड़ गए और वह प्रेम आरंभ हुआ जिसकी परिणति एक दशक के उपरांत उनके विवाह में हुई । मुझे याद है कि अपने एक साक्षात्कार में अनिल कपूर ने स्पष्ट कहा था – ‘बोनी ने मेरे लिए केवल एक फ़िल्म ‘वो सात दिन’ (१९८३) बनाई थी; अपनी अन्य सभी फ़िल्मों का निर्माण उन्होंने केवल श्रीदेवी के लिए किया था ।’
श्रीदेवी से विवाह करने के इच्छुक पुरुषों की कभी कमी नहीं रही होगी । फिर भी उन्होंने किसी कुंवारे पुरुष के स्थान पर बोनी के रूप में एक दूजवर को क्यों चुना जिसने अपनी पहली पत्नी और अपने दो बच्चों की माता – (अब दिवंगत) मीना शौरी से विवाह-विच्छेद करके श्रीदेवी से विवाह किया ? इस प्रश्न का उत्तर संभवतः श्रीदेवी की उस संघर्षपूर्ण जीवन-गाथा में अंतर्निहित है जो बाल्यावस्था में ही आरंभ हो गई थी । किसी भी प्रेम को स्थायित्व वह विश्वास प्रदान करता है जो दूसरे व्यक्ति पर निस्संकोच किया जा सके । श्रीदेवी को संभवतः किसी अविवाहित पुरुष के स्थान पर यह विश्वास विवाहित बोनी से प्राप्त हुआ जिन्होंने उनकी माता की बीमारी तथा उसके उपरांत उनके देहावसान के समय में उन्हें वास्तविक एवं भावनात्मक संबल दिया । बेल करीबी दरख़्त का ही आसरा पकड़ती है । अमरलता रूपी श्रीदेवी को संभवतः बोनी जैसे दृढ़ एवं सबल वृक्ष का सहारा ही विश्वसनीय लगा । बोनी ने पहले से विवाहित होकर भी श्रीदेवी से विवाह करना क्यों चाहा, इसका उत्तर अब बोनी के अंतस में ही रहेगा ।
अस्सी के दशक के अंत में हिन्दी फ़िल्मों के आकाश पर धूमकेतु की तरह उभरीं माधुरी दीक्षित के आगमन के साथ ही श्रीदेवी का करियर ढलान की ओर बढ़ा । बोनी द्वारा बनाई गई ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ (१९९३) नामक महत्वाकांक्षी फ़िल्म घोर असफल रही । रूमानी नायिका के रूप में श्रीदेवी की अंतिम प्रदर्शित फ़िल्म ‘मेरी बीवी का जवाब नहीं’ (२००४) थी जिसके दर्शकों के समक्ष आने में अत्यंत विलंब हुआ । वस्तुतः श्रीदेवी की अंतिम ऐसी फ़िल्म १९९७ में प्रदर्शित ‘कौन सच्चा कौन झूठा’ थी जिसमें उनके नायक ऋषि कपूर थे ।
बोनी से विवाह के उपरांत दो पुत्रियों – जाह्नवी तथा खुशी की माता बनने वाली श्रीदेवी ने अपने जीवन के आगामी कई वर्ष अपनी घर-गृहस्थी को समर्पित किए । सहारा चैनल के धारावाहिक ‘मालिनी अय्यर’ में शीर्षक भूमिका में आने के उपरांत दर्शकों के समक्ष वे ‘इंगलिश विंगलिश’ (२०१२) में आईं और पुनः अपने असाधारण प्रदर्शन से सभी को चौंकाते हुए सिद्ध कर दिया कि कालचक्र ने उनकी अभिनय-प्रतिभा पर कोई प्रभाव नहीं डाला था । ‘मॉम’ (२०१७) में उन्होंने पुनः अभिनय के शिखर को छुआ और यह नियति की विडम्बना ही है कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार अपनी इसी फ़िल्म की भूमिका के लिए मरणोपरांत मिला । अपने जीवन में उन्होंने एक अच्छी कलाकार ही नहीं, एक अच्छी पुत्री, एक अच्छी बहन, एक अच्छी जीवन-संगिनी तथा एक अच्छी माता भी बनकर दिखाया । अब वे हमारे दिलों में रहेंगी । उनकी फ़िल्मों ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया है । चाँदनी के लम्हे अब उसके चाहने वालों की यादों में सदा के लिए बस चुके हैं । उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई, यह इस बात का जीवंत प्रमाण है कि उन्होंने कला-प्रेमी भारतीय जनमानस पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है – ऐसी छाप जिसे समय की धूल भी धुंधला न सके ।
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श्रीदेवी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा । हिन्दी सिनेमा जगत में अभिनेत्रियों के काम की चर्चा अधूरी रहेगी उनके जिक्र के बिना । आपका लेख उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता
जवाब देंहटाएंहै । उनके व्यक्तित्व को नमन।
हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी । सच कहा आपने कि हिंदी सिने अभिनेत्रियों की चर्चा उनके ज़िक्र के बिना अधूरी ही रहेगी ।
हटाएंश्री देवी के जीवन चरित्र पर सटीक और समुचित जानकारी के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया जिज्ञासा जी ।
हटाएंश्री देवी मेरी भी पसंदीदा अभिनेत्री थीं। श्री देवी और चाँदनी फिल्म के विषय में रोचक जानकारी पसंद आयी। आपको बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय वीरेन्द्र जी ।
हटाएंश्री देवी जी की अदाकारी बहुत अच्छी लगती है मुझे..उनकी फिल्मों के बहाने जीवन चित्रण बहुत अच्छा लगा..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे..वे अपनी अदाकारी के लिए हमेशा याद की जाएंगी..
जवाब देंहटाएंआपने ठीक कहा अर्पिता जी कि श्रीदेवी अपनी अदाकारी के लिए हमेशा याद की जाएंगी । हार्दिक आभार आपका ।
हटाएंशानदार समीक्षा ।भारतीय सिनेमा में श्रीदेवी का आगमन जितना सुखद था उतना ही उनका इस लोक से असमय अकाल के गाल में समा जाना ।बधाई आपको और आपकी अनुपम लेखनी को।
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
आपका तो आगमन ही मेरे लिए सम्मान की बात है तुषार जी । उस पर यह प्रशंसा । हार्दिक आभार आपका ।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर समीक्षा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय आलोक जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा ।
जवाब देंहटाएंआभार शांतनु जी ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 01 -03 -2021 ) को 'मौसम ने ली है अँगड़ाई' (चर्चा अंक-3992) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदयतल से आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र जी ।
हटाएंसर, आपने बहुत ही खूबसूरती से समिक्षा की
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया मनीषा जी ।
हटाएंकल से दो बार पढ़ी आपकी यह समीक्षा बहुत ही बारीकी से और भावपूर्ण सृजन किया है। पढ़वाने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार।
हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी ।
हटाएंश्रीदेवी बहुत अच्छी अदाकारा रही हैं ।आपने चांदनी से लेकर लम्हे और बाद कि मूवी के विषय में बहुत विस्तार से जानकारी दी । बढ़िया लेख ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया संगीता जी ।
हटाएंसटीक जानकारी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी ।
हटाएंबॉलीवुड की श्रेष्ठतम कलाकार श्रीदेवी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है आपका यह लेख आदरणीय !
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन आपकी विशेषता है।
नमन आपकी लेखनी को 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत-बहुत शुक्रिया वर्षा जी ।
हटाएंआपकी यह समीक्षा पढ़वाने हेतु आभार श्री देवी अपनी अदाकारी के लिए हमेशा याद की जाएंगी..
जवाब देंहटाएंआप ठीक कह रहे हैं संजय जी । हार्दिक धन्यवाद आपको ।
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