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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

क्या आपको हमसे कोई काम है ?

अपने सामाजिक जीवन में यदि किसी वाक्य से सचमुच मुझे घृणा है तो वह है लोगों का पूछना – क्या आपको हमसे कोई काम है ?’ वे लोग ही नहीं वरन् उनके परिवारजन भी जब उनके घर जाने अथवा फ़ोन करने पर पूछते हैं – ‘क्या आपको उनसे कोई काम है ?’ अथवा ‘आपको उनसे क्या काम है ?’ तो मेरा मन जुगुप्सा से भर जाता है । क्या हमारे सामाजिक संबंध अब क्या केवल काम तक ही सीमित रह गए हैं ? क्या बिना किसी काम के कोई किसी से मिल नहीं सकता या बात नहीं कर सकता ? काम है तो ही संबंध है और काम नहीं है तो कोई मतलब नहीं ?  

मुझे कई बार अपने मित्रों के यहाँ संपर्क करने पर उनकी पत्नियों के व्यवहार से भी बड़ी वितृष्णा हुई जब उन्होंने मुझे भलीभाँति जानते हुए भी मुझसे पूछा - ‘आपको उनसे कोई काम है क्या ?’ अथवा ‘जो भी काम होबता दीजिए’ अथवा ‘आप दो घंटे बाद फ़ोन कर लीजिए’ अथवा ‘वो तो कल मिलेंगे’ । ऐसे में अगर मैंने केवल उनके हालचाल जानने के लिए ही फ़ोन किया था अथवा प्रेमवश ही मैं उनके घर पर गया था तो आप समझ सकते हैं कि मुझे कैसा लगा होगा । मानसिकता यही है कि कोई बिना किसी गरज़ या मतलब के भला उनके पति से क्यों मिलेगा ? 

कई बार ऐसे मौकों पर मैंने अनुभव किया है कि हमारे मध्यमवर्गीय लोगों की पत्नियाँ अगर गृहिणियाँ हैं (या कामकाजी भी हैं) तो वे उन्हें कुछ ऐसा आभास दिलाकर रखते हैं कि वे (पुरुष) तो मानो भारत के प्रधानमंत्री से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं और किसी भी ऐरेग़ैरे (जैसे कि जितेन्द्र माथुर) से सामान्य रुप से और सहजता से उपलब्ध हो जाना उनके जैसे ‘अति महत्वपूर्ण व्यक्ति’ (यानी कि वी.आई.पी.) के लिए उचित नहीं है । माथुर साहब जैसे मामूली आदमी को थोड़ा इंतज़ार करवाया जाना चाहिएथोड़ा लटकाया जाना चाहिएथोड़ा उन्हें अपनी मामूली औक़ात का एहसास करवाया जाना चाहिए । अगर यूँ ही मिल लिए या फ़ोन पर बात कर ली तो माथुर साहब को पता कैसे चलेगा कि हम ‘क्या चीज़’ हैं । पत्नियाँ (यानी कि पति-परायणा भारतीय नारियाँ) पति की हर बात को सर-माथे लेती हैं और ऐसा ही व्यवहार करती हैं मानो आने वाला या फ़ोन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनके अति महत्वपूर्ण पतिदेव से मिलने के लिए मरा जा रहा कोई गरज़मंद (यानी कि मंगता) है । मूर्ख कौन साबित हुआ ? निस्संदेह माथुर साहब जो कि बिना किसी काम के ही मिलने करने चले आए या फ़ोन कर बैठे । सामाजिक मेल-मिलाप ? आधुनिक लोगों के पास उसके लिए जब वक़्त ही नहीं है (हो तो भी जताना यही है कि नहीं है) तो उनसे कैसे मिलें या बात करें ? उनकी तरह फ़ालतू थोड़े ही हैं । 

कई बार झल्लाकर मैं - ‘आपको हमसे क्या काम है ?’ या ‘आपको उनसे क्या काम है ?’ के उत्तर में कह देता हूँ - ‘कोई काम नहीं है ।’ तब या तो सामने वाला (या वाली) सकपका जाता (या जाती) है या फिर अगर रूबरू बात हो रही है तो मेरे सिर की ओर इस तरह देखता (या देखती) है मानो सोच रहा (या रही) हो कि इस (गधे) के सिर से सींग कहाँ ग़ायब हो गए ? 

मैं शायद किसी दूसरी दुनिया का ही बाशिंदा हूँ जो किसी भी मिलने वाले या फ़ोन करने वाले परिचित से यह नहीं पूछता कि उसे मुझसे क्या काम है क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते बिना किसी काम के भी किसी से मिला जा सकता हैबात की जा सकती है या फ़ोन किया जा सकता है । लेकिन मै इस मामले मे निस्संदेह अल्पसंख्यक हूँ । 

अपने तीन दशक के कार्यशील जीवन में मैंने यही पाया है कि आधुनिक जीवन की से बड़ी सच्चाई यदि कोई है तो वह है – निहित स्वार्थ । क्या आपको हमसे कोई काम है ?’ या ‘आपको हमसे क्या काम है ?’ जैसे प्रश्नों के पीछे भी यही मानसिकता कार्य करती है कि बिना किसी काम के कोई किसी से भला क्यों संपर्क करेगा ? यदि आप बिना किसी काम के ही किसी से संपर्क कर रहे हैं तो यह ‘समझदार’ वर्ग आपको संदेह की दृष्टि से देखेगा और सोचेगा कि शायद हालचाल पूछने के बहाने भूमिका बाँधी जा रही है और असली काम कुछ समय बाद बताया जाएगा । 

समझदार और दुनियादार लोगों के संसार में तो बिना किसी काम के कोई किसी से मिलता नहींबात करता नहींतो फिर मैं अपने आपको किस तरह से परिभाषित करूँ ? मुकेश और राजकपूर का क्लासिक गीत याद आता है - ‘सब कुछ सीखा हमनेना सीखी होशियारीसच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी’ । पर क्या मुझ जैसे अनाड़ियों के कारण ही इस पेशेवर युग में भी सामाजिकता क़ायम नहीं है ?

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12 टिप्‍पणियां:

  1. आमतौर पर ऐसा ही होता है। हालाँकि इंसान की स्वार्थी प्रवृत्ति भी बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार है! बहुत से लोग केवल तभी संपर्क करते हैँ जब भी उन्हें कोई काम होता है! 'इसलिए कोई काम था या है' पूछ लेना हमारी आदत में शुमार होता चला गया। आप के तर्क गलत नहीं हैं!

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    1. आपकी बात बिलकुल ठीक है वीरेंद्र जी । हृदयतल से आभार आपका ।

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  2. बहुत अच्छा लेख... यथार्थ ही यथार्थ...

    अब सोचिए, कि ऐसी स्त्रियों के पति से किसी आवश्यक काम के चलते यदि कोई महिला बात भी कर ले तो क्या होता होगा...

    हा.. हा..हा...मैं तो बेहतर जानती हूं...

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  3. काम है तो ही संबंध है और काम नहीं है तो कोई मतलब नहीं ?
    समझदार और दुनियादार लोगों के संसार में तो बिना किसी काम के कोई किसी से मिलता नहीं,

    चेतना को जगाती आपकी पंक्तियां ..बेहद उम्दा..

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  4. बहुत रोचक शैली में एक बहुत बड़ी सच्चाई वयक्त की हैं आपने | बिलकुल अधिकतर ऐसा ही होता है और हो रहा है |

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